लकवे के इलाज में उम्मीद की किरण
४ दिसम्बर २०१४इस सिलसिले में जारी ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि इंट्रासेल्युलर सिग्मा पेपटाइड (आईएसपी) नाम की इस दवा को जब चूहों पर जांचा गया, तो वे उठने लगे और उनके बदन में हरकत होने लगी. वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी इस दिशा में और काम किए जाने की जरूरत है लेकिन यह उम्मीद की किरण जरूर है.
अमेरिका में ओहायो की केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी में न्यूरो साइंस के प्रोफेसर जेरी सिल्वर का कहना है, "हम लोग इस संभावना को लेकर बेहद उत्साहित हैं कि एक दिन वे लाखों लोग फिर से उठ सकेंगे, जिन्हें रीढ़ में चोट की वजह से लकवा मार गया है."
नेचर पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह रीढ़ की हड्डी में क्षतिग्रस्त तंत्रिकाओं के रेशों को दुरुस्त करने की कोशिश की जा रही है. तंत्रिकाओं के दबने, मुड़ने या क्षतिग्रस्त होने से मस्तिष्क से मिलने वाले सिग्नल इन रेशों तक नहीं पहुंच पाते हैं. ये तंत्रिका रेशे चोट वाली जगह को पार करते हुए दूसरे रेशों से जुड़ना चाहते हैं लेकिन चोट वाली जगह पर जमा प्रोटियोग्लिकांस नाम का प्रोटीन की वजह से वहीं अटक जाते हैं. प्रायोगिक दवा आईएसपी का काम तंत्रिका कोशिकाओं की सतह पर होता है, जहां वह रुकावट पैदा करने वाली प्रोटियोग्लिकांस की प्रतिक्रिया को खत्म कर देती है.
प्रयोग में 26 चूहों की रीढ़ की हड्डी में चोट पैदा की गई और बाद में सात हफ्ते तक इस दवा से उनका इलाज किया गया. इनमें से 21 चूहों में सकारात्मक नतीजे देखे गए. वे या तो चलने लगे, या अपने भार का नियंत्रण करने लगे या फिर पेशाब करने में उनका नियंत्रण ठीक हो गया. कुछ चूहों में तीनों प्रक्रिया दुरुस्त हुई, कुछ में दो और कुछ में एक.
सिल्वर ने एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा, "यह अभूतपूर्व है. सभी 21 चूहों ने कुछ न कुछ हरकत की है. रीढ़ की हड्डी की बीमारी से ग्रस्त हर शख्स के लिए इनमें से कोई एक काम करना भी बड़ी बात होगी. खास कर पेशाब करने में सुविधा."
लंदन के किंग्स कॉलेज में स्टेम सेल वैज्ञानिक डुस्को इलिच का कहना है कि यह एक बिलकुल अलग तरह की रिसर्च है, "मैं उम्मीद करता हूं कि दूसरे वैज्ञानिक इस रिसर्च को आगे बढ़ाएंगे." हालांकि उन्होंने सचेत किया कि मानव पर परीक्षण से पहले अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
एजेए/ओएसजे (एएफपी)