रोबोट सूट से नई जिंदगी
४ दिसम्बर २०१३जर्मनी और जापान की साझेदारी में बनी साइबरडाइन केयर रोबोटिक्स ने एक ऐसा रोबोट सूट तैयार किया है जिसे विकलांग लोग पहन सकते हैं और अपनी नसों की मदद से उसे चला सकते हैं. रोबोट सूट बनाने वाली टीम में डॉक्टर, इंजीनियर और थेरेपिस्ट शामिल हैं. कंपनी इलाज में इस्तेमाल होने वाली खास तकनीक से सालाना 21 अरब यूरो कमाती है. अब कंपनी रोबोट सूट से विकलांगों का जीवन कुछ आसान करना चाहती है.
विकलांगों की मदद
यूरोप में रोबोट थेरेपी को बढ़ावा देने के लिए जापान का वित्त मंत्रालय 23 लाख यूरो निवेश कर रहा है. इस खास उपकरण का औपचारिक नाम 'हाईब्रिड एसिस्टिव लिंब' है और इसे जापानी वैज्ञानिक प्रोफेसर योशीयूकी संकाई ने बनाया है. जापान के 160 क्लीनिकों में ये सूट इस्तेमाल किए जा रहे हैं. यूरोप के मरीजों के लिए रोबोट सूट में कुछ बदलाव करने होंगे. पश्चिम जर्मनी के बर्गमांसहाइल विश्वविद्यालय क्लीनिक में प्रोफेसर थोमास शिल्डहाइम यूरोपीय कद काठी के लिए इस सूट को तैयार कर रहे हैं.
फिलिप उन मरीजों में से हैं जिनका इलाज बर्गमांसहाइल में हो रहा है. एक हादसे के बाद 35 साल के फिलिप की कमर के नीचे वाले हिस्सा सुन्न हो गया. लेकिन अब फिलिप नई तकनीक की मदद से चलने की कोशिश कर रहे हैं. फिलिप कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि रोबोट आपको चलाता है. आप अपनी नसों के जरिए इस सूट को चलाते हैं. मरीज की कमर को पकड़ने के लिए इस रोबोट में कटोरी के आकार के हैंडल बनाए गए हैं. रोबोट सूट में सेंसर होते हैं जो तंत्रिका तंत्र से त्वचा पर आने वाले सिग्नल पकड़ लेते हैं. डॉक्टर थोमस शिल्डहाउअर कहते हैं, "अगर कोई मरीज का शरीर पूरी तरह सुन्न न हुआ हो तो आप उसकी पेशियों में सिग्नल पकड़ सकते हैं. रोबोट इस सिग्नल को पकड़ता है और उसे तेज कर बाहरी सूट की मोटरों तक पहुंचाता है."
इस सूट का इस्तेमाल लकवे के मरीज ही नहीं बल्कि पार्किनसंस और हार्ट अटैक के मरीज भी कर सकते हैं. शिल्डहाउअर कहते हैं कि सूट के साथ धीरे धीरे ट्रेनिंग के बाद लंबे समय तक न चलने वाले मरीजों के दिमाग भी रोबोट के मुताबिक काम करने लगते हैं.
क्लीनिकों के लिए अब रोबोट सूट किराये पर दिए जाते हैं. व्हीलचेयर इस्तेमाल करने वाले मरीज रोबोट की मदद से चल सकते हैं. फिलिप अब इसी कोशिश में है. लेकिन इस वक्त सूट के साथ ट्रेनिंग भी काफी महंगी है. दो घंटे की ट्रेनिंग में 500 यूरो आराम से खर्च हो जाते हैं.
रिपोर्टः क्लाउस डेंसे/एमजी
संपादनः ओंकार सिंह जनौटी