रोबोट्स का फुटबॉल मुकाबला
२६ जून २०१४पिछले कुछ सालों में रोबोट्स की टीमों में लोगों की दिलचस्पी बढ़ रही है. रोबोट्स का लगातार चौथा रोबो कप मुकाबला अगले महीने ब्राजील में खेला जाएगा. यह रोबोटिक फुटबॉल की दुनिया में एक अहम मुकाबला माना जाता है. कुछ रिसर्चरों का मानना है कि आने वाले दस से बीस सीलों में ये रोबोट्स विश्व के चुनिंदा खिलाड़ियों को मैदान में चुनौती देने लगेंगे. पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी की रोबोटिक्स लैब के प्रमुख डैनियल ली कहते हैं, "संभव है कि बीस सालों में हम रोबोट्स की ऐसी टीम तैयार कर लें जो विश्व कप की बेहतरीन टीमों का मुकाबला कर सकें."
मुकाबले को कितना तैयार?
ली मानते हैं कि रोबोटिक फुटबॉल सिर्फ मजे की बात नहीं बल्कि उससे कहीं ज्यादा है. इसमें कृत्रिम इंटेलिजेंस और जटिल अल्गोरिदम का इस्तेमाल होता है. इनकी मदद से इंसान की दृष्टि और हिलने डुलने संबंधी क्षमताओं की बेहतर जानकारी मिलती है. इसी तरह की तकनीक का इस्तेमाल उन रोबोट्स में भी किया जा सकता है जो घरेलू कामकाज में इस्तेमाल किए जा सकते हैं. खुद से चलने वाली कारों में भी इस तकनीक का बेहतर इस्तेमाल हो सकता है.
ली के मुताबिक पिछले एक दशक में रोबोट्स ने अपने खेल में काफी सुधार किया है. वे पहले चार पैरों वाले हुआ करते थे जबकि अब वे ह्यूमनॉयड यानि इंसान की तरह दो पैरों वाले रोबोट हैं. ली मानते हैं कि रोबोट के इंसानों के साथ फुटबॉल मुकाबले से पहले बहुत सारी दूसरी बातों पर ध्यान देना होगा. वे अभी भी बेतरतीब ढंग से चलते हैं, अक्सर बॉल को ढूंढ नहीं पाते और कई बार आपस में टकराकर एक दूसरे पर गिर भी जाते हैं.
खेल में रणनीति
उनके मुताबिक हमारे पास ऐसी मशीनें तो मौजूद हैं जो हमें शतरंज के मुकाबले में हरा दें, लेकिन बात फुटबॉल की हो तो इंसान आज भी मशीनों को पीछे छोड़ने में सक्षम है. क्योंकि रोबोट्स को मैदान में सबकुछ खुद से करना होता है तो उन्हें मुकाबले के लिए हर काम में दक्ष भी होना पड़ेगा, जैसे गेंद को ढूंढना, रोशनी कम या ज्यादा होने पर खुद को उसके अनुसार ढालना, खेल की रणनीति तैयार करना इत्यादि.
ली कहते हैं, "हमारे रोबोट हर चीज के लिए संभावनाओं के आधार पर हिसाब लगाते हैं. इसका मतलब है इंसान रोबोट से कहीं ज्यादा स्मार्ट है. रचनात्मकता में भी इंसान आगे है."
2013 में नीदरलैंड्स में हुए रोबो कप का खिताब पेनसिल्वेनिया के छात्रों ने अपने नाम किया था. इससे पहले 2012 में मेक्सिको और 2011 में इस्तांबुल में हुए मुकाबले में भी जीत उन्हीं की हुई थी. ली मानते हैं कि इस तरह की रिसर्च में तकनीकी ज्ञान के अलावा खेल की जानकारी भी जरूरी है. सबसे बड़ी चुनौती होती है रोबोट में उस तरह की जानकारी और सूझ बूझ पैदा करना जो कि एक एथलीट में होती है.
ली ने कहा, "मुश्किल बात होती है सामने वाली टीम के इरादे समझना. यह हमारे लिए बड़ी चुनौती है." फुटबॉल खेलने वाले रोबोट्स को तकनीकी रूप से और सक्षम बनाने के लिए रिसर्चर और रास्ते ढूंढने में लगे हैं. वे ऐसी तकनीक विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे वे आपस में मिलकर खेल की रणनीति तय कर सकें. फिलहाल तो यही लगता है कि इंसानों और रोबोट के बीच इस रोमांचक खेल को देखने के लिए अभी दस से बीस साल और इंतजार करना होगा.
एसएफ/एएम (एएफपी)