रेलवे की दक्षता पर सवालिया निशान
१९ जुलाई २०१०अभी दो महीने से भी कम समय में बीरभूम जिले के साइंथिया रेलवे स्टेशन पर हुए राज्य के इस दूसरे बड़े हादसे में रेलवे की कार्यप्रणाली की पोल खोल दी है. नई ट्रेनों के एलान के बावजूद सुरक्षा और रखरखाव जैसे अहम मुद्दों की अनदेखी करने का आरोप सरकार पर लग रहा है. रेल मंत्री ममता बनर्जी खासकर बंगाल में हर हादसे के बाद साजिश का अंदेशा जताती रही हैं. बीरभूम जिले में सोमवार तड़के हुआ हादसा भी इसका अपवाद नहीं था.
दिल्ली से कोलकाता पहुंचते ही ममता ने कहा कि उनके मन में कई शंकाएं हैं. उनको कई तरह की सूचनाएं मिली हैं और उनकी गहराई से छानबीन की जा रही है. इससे पहले 28 मई को ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस मामले में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने राजनीतिक साजिश का अंदेशा जताया था. लेकिन पहले राज्य की सीआईडी और फिर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से स्पष्ट संकेत मिले हैं कि उस आरोप में कोई दम नहीं था. ज्ञानेश्वरी कांड में अब तक जितने भी अभियुक्त धरे गए हैं वे सब माओवादी ही हैं.
साइंथिया स्टेशन पर हुआ हादसा तो मानवीय भूल का नतीजा है. जब एक ट्रेन स्टेशन पर खड़ी हो तो दूसरी किसी ट्रेन को उसी प्लेटफार्म पर आने का सिग्नल कैसे दिया जा सकता है? रेलवे की कार्यप्रणाली कुछ इस तरह की है कि सिग्नल प्रणाली की मॉनिटरिंग कई स्तर पर की जाती है. अकेले केबिनमैन या सिग्नल देने वाला कर्मचारी ही इसका जिम्मेदार नहीं होता. रेल मंत्री ने इस मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात कही है.
लेकिन सवाल यह है कि पहले गलती का तो पता चले. रेलवे विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले में हो सकता है लापरवाही रेलवे के ड्राइवर से हुई हो. उसने लाल सिग्नल पर ध्यान नहीं दिया हो और ट्रेन को आगे बढ़ाता रहा हो. लेकिन जिस उत्तर बंग एक्सप्रेस के ड्राइवर और उसके सहायक ने स्टेशन पर खड़ी वनांचल एक्सप्रेस को टक्कर मारी उनकी तो इस हादसे में मौत हो चुकी है. दूसरा सवाल यह है कि उत्तर बंग एक्सप्रेस को साइंथिया स्टेशन पर ठहरना था.
अमूमन जिस स्टेशन पर ट्रेन का ठहराव होता है उसके आउटर सिग्नल से ही ट्रेन की रफ्तार धीमी होने लगती है. लेकिन जब यह टक्कर हुई तो उत्तर बंग एक्सप्रेस की रफ्तार काफी तेज थी. उसकी रफ्तार का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसकी टक्कर से वनांचल एक्सप्रे का एक डिब्बा रेलवे प्लेटफार्म के सामने पटरी के ऊपर बने एक ओवरब्रिज पर चढ़ गया. दो ट्रेनों की आमने-सामने टक्कर में तो ऐसा होना स्वाभाविक है. लेकिन किसी खड़ी ट्रेन के डिब्बे अगर इस धक्के से उतनी दूर और ऊपर जा सकते हैं तो टक्कर मारने वाली ट्रेन की रफ्तार का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है.
तो क्या ट्रेन के ब्रेकों ने काम करना बंद कर दिया था? शुरूआती तौर पर तो यही दो बातें सामने आ रही हैं कि या तो ड्राइवर ने सिग्नल की अनदेखी की या फिर ब्रेक काम नहीं कर रहे थे. लेकिन यहीं यह सवाल भी पैदा होता है कि वही उत्तर बंग एक्सप्रेस साइंथिया के पहले तो तमाम स्टेशनों पर रुकती आ रही थी. तो क्या उसके ब्रेक साइंथिया स्टेशन पर पहुंचने से ठीक पहले खराब हो गए थे? और अगर ब्रेक खऱाब थे जाहिर है ट्रेनों के रखरखाव और मरम्मत के काम में भारी लापरवाही बरती जा रही है.
ममता के रेल मंत्री बनने के बाद राज्य में किसी भी रेल हादसे के बाद राजनीति तेज हो जाती है. इस मामले में भी ऐसा ही है. विपक्ष ने बढ़ते रेल हादसों के लिए ममता को जिम्मेवार ठहराते हुए उनसे अपने पद से इस्तीफा देने की मांग उठा दी है. लेकिन उससे पहले ही ममता ने मन में उठने वाली शंकाओँ की बात कह कर इस मामले को राजनीतिक रंग देने की शुरूआत कर दी है.
अब इस मामले की जांच का काम शुरू हो गया है. लेकिन क्या इससे हादसे की सही वजह सामने आएगी. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ऐसी मिसालें बहुत कम हैं जिनमें हादसे की जांच के बाद दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की गई हो. ऐसे मामलों में अमूमन किसी छोटे कर्मचारी को बलि का बकरा बना कर मामले की लीपापोती की जाती रही है. क्या यह मामला इसका अपवाद होगा. इसका जवाब तो जांच के बाद ही मिलेगा. फिलहाल तो हादसे के बाद इस पर आरोप-प्रत्यारोप का चिर-परिचित राजनीतिक दौर शुरू हो गया है.