राजनीति में बढ़ते अपशब्द
४ दिसम्बर २०१४लेकिन अपमानजनक भाषा और अपशब्दों का इस्तेमाल पिछले कुछ दिनों में ही अधिक देखने में आ रहा है. इसके विपरीत यह एक आश्चर्य की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुयायी उनकी जरा सी भी आलोचना सुनने को तैयार नहीं हैं और इस तरह का बर्ताव कर रहे हैं मानों भारतीय संसद के इतिहास में पहली बार किसी को स्पष्ट बहुमत मिला है. मोदी की हल्की सी आलोचना को भी ‘प्रधानमंत्री के पद का अपमान' बताया जा रहा है.
ऐसा करने वाले यह भूल जाते हैं कि राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को जितना लोकसभा में जितना भारी बहुमत मिला था वह आज तक भी एक रेकॉर्ड है. लेकिन बिना किसी सबूत के 1987 के बाद भारतीय जनता पार्टी समेत लगभग समूचा विपक्ष संसद में और संसद के बाहर ‘गली-गली में शोर है, राजीव गांधी चोर है' के नारे लगाया करता था.
अब यह परंपरा काफी आगे बढ़ चुकी है. मोदी सरकार में मंत्री के पद पर आसीन और स्वयं को साध्वी कहलाने वाली निरंजन ज्योति ने कुछ दिन पहले दिल्ली में एक जनसभा को संबोधित करते हुए विपक्ष के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया था. इस पर जब बावेला मचने लगा तो पार्टी नेताओं ने यह कह कर बचाव किया कि क्षणिक आवेश में निरंजन ज्योति के मुंह से ऐसा निकल गया.
शुरुआती दिनों में मंत्री महोदया ने अपने इस आपत्तिजनक बयान पर खेद प्रकट करने से भी इनकार कर दिया और उसे ठीक बताया. लेकिन जब संसद के दोनों सदनों में पूरा विपक्ष इस मुद्दे पर एकजुट होकर उनके इस्तीफे की मांग करने लगा और सदन की कार्यवाही लगातार ठप होती रही, तब उन्होंने खेद प्रकट किया. वह भी तब जब मोदी ने स्वयं इस बयान पर नाराजगी व्यक्त की और उनसे माफी मांगने को कहा. अब यह भी कहा जा रहा है कि निरंजन ज्योति गांव की हैं और पहली बार सांसद बनी हैं. इसलिए उन्हें यह नहीं पता कि कहां क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं. मोदी और उनकी पार्टी के नेता मामले को रफा दफा करना चाहते हैं लेकिन विपक्ष मंत्री के इस्तीफे या बर्खास्तगी की मांग पर अड़ा है. यदि मोदी इस मामले पर कड़ा रुख अपनाते तो दूसरे नेताओं तक भी संदेश पहुंचता, लेकिन उनका ऐसा करने का कोई इरादा नजर नहीं आ रहा है.
समाजवादी पार्टी के अबु आजमी और आजम खां और तृणमूल पार्टी के सांसद तापस पाल पहले ही अपने बयानों के कारण अखबारों की सुर्खियों में रहे हैं. तापस पाल ने तो मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थकों की हत्या और उनके घर की महिलाओं के बलात्कार तक की सार्वजनिक रूप से धमकी दे डाली थी. अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने मार्क्सवादी पार्टी के खिलाफ अपशब्द का प्रयोग किया है. इन सब नेताओं को अपनी अशिष्ट भाषा पर कोई सच्चा खेद भी नहीं है. राजनीतिक संवाद के स्तर में गिरावट तो रोज संसद में देखने को मिलती ही है जहां स्वस्थ एवं गंभीर चर्चा बहुत कम होती है और शोर शराबा और अभद्र आचरण ज्यादा. ये सभी लोकतांत्रिक संस्कृति के क्षरण के लक्षण हैं. साध्वी निरंजन ज्योति और ममता बनर्जी के बयान यह दर्शाते हैं कि यह गिरावट किस भयावह स्थिति को जन्म दे रहा है.
ब्लॉगः कुलदीप कुमार
संपादनः अनवर जे अशरफ