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राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई से तेज होती सांप्रदायिक हिंसा

प्रभाकर मणि तिवारी
११ जुलाई २०१७

पश्चिम बंगाल के जिस बशीरहाट और बादुड़िया इलाके में बीते सप्ताह तीन दिनों तक सांप्रदायिक हिंसा की आग भड़कती रही, वह आजादी के बाद से ही सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल माना जाता रहा है.

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Indien Westbengalen Ausschreitungen
तस्वीर: DW/Prabhakar

पश्चिम बंगाल के बशीरहाट में पहले कभी ऐसी हिंसा नहीं हुई थी. लेकिन कुछ कथित बाहरी लोगों की ओर से हुए हमलों के बाद फर्जी फेसबुक पोस्ट और तस्वीरों के चलते हिंसा और भड़की. इसके पीछे बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सुनियोजित योजना का हाथ बताया जा रहा है. स्थानीय लोगों ने दावा किया है कि हमलावर बाहरी थे. ममता ने इस हिंसा की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं. साथ ही मीडिया की भूमिका की भी जांच की जा रही है. पुलिस ने अफवाहों को बढ़ावा देने के आरोप में दो राष्ट्रीय टीवी चैनलों (टाइम्स नाउ और रिपब्लिक) के खिलाफ मामला दर्ज किया है. बीते लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी के यहां मजबूत होने के बाद राज्य में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं. 

आरोप-प्रत्यारोप

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आरोप है कि इस हिंसा के पीछे बीजेपी और संघ का हाथ है. उन्होंने सीमावर्ती इलाकों में हुई इस हिंसा के लिए केंद्र सरकार को भी जिम्मेदार ठहराया है. ममता कहती हैं, "केंद्र सरकार बांग्लादेश से सटी सीमा पर समुचित सुरक्षा मुहैया कराने में नाकाम रही है. एक सुनियोजित साजिश के तहत गड़बड़ी फैलाने के लिए सीमा पार से लोगों को बुलाया गया और उसके बाद सबको सीमा पार भेज दिया गया." मुख्यमंत्री ने कहा है कि सोशल मीडिया के जरिए फर्जी तस्वीरों को बादुड़िया हिंसा की तस्वीर बता कर सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने का प्रयास किया गया. इस मामले में पुलिस ने एक युवक को गिरफ्तार भी किया है. वह कहती हैं, "बीजेपी ने अपने सियासी फायदे के लिए ऐसा किया. लेकिन सरकार और स्थानीय लोगों के प्रयासों से यह हिंसा सांप्रदायिक दंगे में नहीं बदली." सोशल मीडिया पर अफवाहों को रोकने के लिए सरकार ने इलाके में इंटरनेट सेवाओं पर पाबंदी लगा दी थी जो अब तक जारी है.

जाने-माने अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन भी इस हिंसा से चिंतित हैं. वह कहते हैं कि बंगाल में सांप्रदायिक सद्भाव का लंबा इतिहास रहा है. जिस इलाके में हिंसा हुई वहां आजादी के बाद से ही दोनों तबकों के लोग आपसी सद्भाव और भाईचारे के साथ रहते आए हैं. सेन का कहना है कि इस हिंसा की तह में जाकर इसकी वजहों का खुलासा करना जरूरी है. साथ ही दोषियों की भी शिनाख्त करनी होगी ताकि भविष्य में बंगाल की धनी सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत पर ऐसा कोई धब्बा नहीं लगे.

Indien Westbengalen Ausschreitungen
हिंसा की चपेट मेंतस्वीर: DW/Prabhakar

दूसरी ओर, बीजेपी इस हिंसा के लिए ममता की तुष्टिकरण की नीति को जिम्मेदार ठहरा रही है. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "इलाके में दो दिनों तक हिंदुओं पर हमले होते रहे. उनके घरों और दुकानों में आग लगा दी गई. लेकिन प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा." घोष का दावा है कि अगर प्रशासन ने समय रहते कार्रवाई की होती तो हालात इतने नहीं बिगड़ते.

ताजा स्थिति

हिंसाग्रस्त इलाकों में अब जनजीवन धीर-धीरे पटरी पर लौटने लगा है और लोग एक-दूसरे के जख्मों पर मरहम लगाने में जुट गए हैं. लोग घरों से निकल कर नुकसान का आकलन करने और जली हुई दुकानों और मकानों के अवशेषों से बची-खुची चीजें बटोरने का प्रयास कर रहे हैं. हिंसा की आग में अपनी पुश्तैनी दुकानें, कारोबार और मकान गंवाने वाले दोनों तबके के लोग अब एक-दूसरे को सहारा दे रहे हैं. कहीं मुसलमान लोग हिंदुओं की दुकानों के पुनर्निमाण के लिए चंदा जुटा रहे हैं तो कहीं हिंदू मुसलमानों के घरों को दोबारा खड़ा करने में मदद के हाथ बढ़ा रहे हैं.

स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां कभी हिंदू और मुस्लिम का भेदभाव नहीं रहा. बादुड़िया में किराने की दुकान चलाने वाले नरेश हालदार कहते हैं, "हम मुस्लिमों के त्योहार में उनके घर जाते हैं और वे दुर्गापूजा में हमारे घर आते हैं. यह परंपरा बरसों से चली आ रही है." इलाके की मस्जिद हिंदू घरों के बीच में है. बादुड़िया में सांप्रदायिक सद्भाव और हिंसा के दौरान एक तबके के लोगों को दूसरे तबके के लोगों के हाथों बचाने की अनगिनत कहानियां फिजां में तैर रही हैं.

बढ़ती घटनाएं

पश्चिम बंगाल में अब हिंदू और मुस्लिम संप्रदाय में हिंसक झड़पें अक्सर ही सुर्खियां बटोरने लगी हैं. यह महज संयोग नहीं है कि बीते लोकसभा चुनावों के बाद ही ऐसे मामले बढ़े हैं. खासकर बीते साल हुए विधानसभा चुनावों में भारी बहुमत से जीतकर तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में वापसी के बाद सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस हालांकि वर्ष 2011 में ही सत्ता में आई थी. लेकिन पहले तीन साल के दौरान ऐसी खबरें शायद ही कहीं देखने-सुनने को मिली थीं. बीते लोकसभा चुनावों के बाद राज्य में बीजेपी के मजबूत होते कदमों और तृणमूल कांग्रेस के साथ वर्चस्व की तेज होती जंग ने ही दोनों तबकों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया है. लेफ्टफ्रंट और कांग्रेस के हाशिए पर जाने की वजह से बीजेपी नंबर दो की स्थिति में आ खड़ी हुई है.

Indien Demonstration gegen Regierung Westbengalen in Kalkutta | Dilip Ghosh
बीजेपी का प्रदर्शनतस्वीर: UNI

बीते एक साल के दौरान राज्य के मालदा, मुर्शिदाबाद, हुगली, पूर्व मेदिनीपुर, उत्तर 24-परगना, हावड़ा और बर्दवान जिलों में सांप्रदायिक हिंसा की कम से कम डेढ़ दर्जन घटनाएं हो चुकी हैं. बशीरहाट इलाके में हुई सांप्रदायिक हिंसा इसी सिलसिले की ताजा कड़ी है. कोलकाता से सटा उत्तर 24-परगना देश में आबादी के लिहाज से सबसे ज्यादा घनत्व वाला जिला है. यहां कुल आबादी में 26 फीसदी मुस्लिम हैं. यह जिला बांग्लादेश की सीमा से लगा है. बंगाल में मुस्लिम आबादी लगभग 29 फीसदी है. राज्य की 294 में से कम से कम 140 सीटों पर हार-जीत में इस तबके के वोटरों की अहम भूमिका है.

राज्य के 23 जिलों में से पांच में ही मुस्लिम आबादी ही बहुसंख्यक है. इनमें उत्तर व दक्षिण दिनाजपुर, मालदा, मुर्शिदाबाद और बीरभूम शामिल हैं. इनके अलावा नदिया, उत्तर व दक्षिण 24-परगना में भी मुस्लिमों की खासी आबादी है. इन जिलों के ग्रामीण इलाकों में इसी तबके के वोटर निर्णायक हैं. बंगाल में इस तबके का समर्थन किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए सत्ता में आने की गारंटी है. पहले यह तबका कांग्रेस का साथ देता था. बाद में इस समर्थन की दिशा वाममोर्चा की ओर मुड़ गई. लेकिन बीते कोई एक दशक से यह तबका पूरी तरह ममता और उनकी पार्टी के साथ है. ममता का अल्पसंख्यक प्रेम किसी से छिपा नहीं है. भारी आर्थिक तंगी के बावजूद मौलवियों को पेंशन देने के अलावा उन्होंने कई मदरसों को वित्तीय सहायता तो दी ही है, इस तबके के लिए थोक में विकास योजनाएं भी शुरू की हैं.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अब अगले लोकसभा चुनावों को ध्यान में रख कर अपने हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने और भुनाने के लिए बीजेपी ने भी यहां ममता की चाल से ही उनको मात देने की कवायद शुरू की है. इसके चलते खासकर सीमावर्ती इलाकों में टकराव के मामले बढ़ रहे हैं. आने वाले दिनों में राज्य के खासकर मुस्लिमबहुल इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं तेज होने के अंदेशे से इंकार नहीं किया जा सकता.