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"राजनीतिक कब्र खोदने जैसा कदम"

१० मार्च २०१५

डीडब्ल्यू के फेलिक्स श्टाइनर बता रहे हैं कि रूस को प्रभावित करने के प्रयास जैसा दिखता यूरोपीय आयोग प्रमुख युंकर का ईयू की संयुक्त सेना बनाने का प्रस्ताव शायद ही सफल हो.

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Symbolbild EU Battlegroup
तस्वीर: Bundeswehr/Vennemann

यूरोपीय आयोग के प्रमुख जाँ क्लोद युंकर का यूरोपीय सेना बनाने के प्रस्ताव के बारे में जानकर हैरानी होती है कि क्या उनके दफ्तर में यूरोपीय इतिहास के बारे में कोई किताब नहीं है. अगर है तो उन्हें यूरोपीय रक्षा समुदाय पर लिखे अध्याय पढ़ने चाहिए. वह युंकर को 60 साल से भी पहले हाथ लगी दुर्भाग्यपूर्ण असफलता की कहानी कहते.

वर्तमान स्थिति से काफी मिलती जुलती लगने वाली उस योजना के तहत कुछ ऐसा हुआ था. जुलाई 1950 में उत्तरी कोरिया ने चीन की मदद लेकर दक्षिण कोरिया पर हमला किया. मकसद था कि दोनों हिस्सों को कम्युनिस्ट शासन के तहत लाया जाए. पश्चिमी यूरोप में भी काफी हद तक इसी तरह के हालात बनने की आशंका दिख रही है. उस समय बनी एक क्रांतिकारी योजना के तहत फ्रांस, इटली, पश्चिमी जर्मनी और बेनेलक्स देशों की सेना को उनके नेशनल कमांड से निकाल कर एक साझा सुप्रानेशनल हाई कमांड में रखने की बात हुई. इसके पीछे विचार यह था कि यूरोप के देश एक साथ ज्यादा मजबूत होंगे, जबकि अलग पूर्वी जर्मनी जैसा देश खासतौर पर कमजोर पड़ जाएगा. उस समय जर्मनी में हिटलर के युग को खत्म हुए दस साल से भी कम समय हुआ था और देश को कई तरह के अविश्वास का सामना करना पड़ता था.

बड़ी शक्तियों को संप्रभुता खोने का डर

इस योजना को मूर्त रूप लेते लेते ही करीब चार साल लग गए लेकिन उसके बाद भी यह सफल नहीं रही. यह सब ईयू की संसद का सबसे शक्तिशाली हिस्सा माने जाने वाली फ्रेंच नेशनल असेम्बली में हुआ. क्योंकि असल में फ्रांस अपनी संप्रभुता को इस हद तक खोने के लिए तैयार नहीं था. इसके अलावा अगस्त 1954 आते आते भीषण युद्ध छिड़ने के डर भी 1950 के मुकाबले काफी कम हो चुके थे.

ऐसा में यह सवाल उठना तो बनता है कि आखिर 2015 का पेरिस 1954 के पेरिस से अलग क्यों होगा? इस तरह युंकर के प्रस्ताव की बुनियाद में वैसी ही कमी है जैसे कि पहले सामने आ चुकी है.

Felix Steiner
डीडब्ल्यू के फेलिक्स श्टाइनरतस्वीर: DW/M.Müller

कौन करता है जर्मन सैनिकों को तैनात करने का फैसला?

यह चिंता केवल फ्रांस की ही नहीं है. सेना की तैनाती के मुद्दों पर जर्मन संसद की ईयू में काफी ज्यादा चलती है. क्या किसी को इस बात में शक है कि जर्मनी के कानूननिर्माता अपने अधिकार यूरोपीय संसद या यूरोपीय आयोग जैसे किसी भी ईयू संस्थान को सौंप देंगे? नहीं - युंकर ने प्रस्ताव के सफल होने की कोई संभावना नहीं बनती. युंकर का मानना है कि रूस को यह जताने के लिए ईयू का साथ आना जरूरी है कि यूरोपीय संघ अपने मूल्यों की रक्षा को लेकर बेहद गंभीर है. लेकिन सवाल यै है कि आखिर ये संयुक्त सेना ऐसा अलग क्या करेगी.

समस्या यह है कि यूरोप की सैन्य शक्ति असल में उसकी सेना के राष्ट्रीय संगठनों में नहीं है. ईयू के देश आज भी अपनी रक्षा करने में असमर्थ है, यूरोपीय देश आज अमेरिका पर शीत युद्ध काल से भी ज्यादा निर्भर हैं. इसके पीछे सीधा सा कारण यह है कि कोई भी रक्षा पर खर्च नहीं करना चाहता. शायद इसीलिए जब युंकर ने इस योजना का जिक्र किया तो उन्हें जर्मनी की सोशल डेमोक्रैट पार्टी की तालियों की गड़गड़ाहट मिली. वे अपनी रक्षा के मामले में भी ज्यादा निवेश नहीं करना चाहते. इस योजना में आपसी तालमेल के कारण उन्हें बहुत सारा खर्च बचाने की संभावना दिख रही है.

छोटे देश हैं काफी आगे

ईयू अपने छोटे सदस्य देशों से बहुत कुछ सीख सकता है. कुछ ने नाटो गठबंधन के तहत अपनी टुकड़ियों को कुछ खास तरह के हथियारों के इस्तेमाल में महारथ दिला दी है. फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन, पोलैंड और इटली जैसे कुछ बड़े देश ही अब भी सेना में एक 'जनरल स्टोर' वाली सोच का पालन कर रहे हैं. इस तरीके में थोड़ा थोड़ा सब कुछ होता है, लेकिन किसी भी एक क्षेत्र में कुछ उल्लेखनीय नहीं होता. ईयू और नाटो स्तर पर ऐसी ईकाइयां मौजूद हैं जो इनकी टुकड़ियों के विशेष प्रशिक्षण या श्रम विभाजन पर ध्यान दें. लेकिन अब तक इनके नतीजे काफी सामान्य रहे हैं.

ईयू के बैटल ग्रुप करीब दस सालों से अस्तित्व में हैं. यह यूरोप, मध्य पूर्व देशों और अफ्रीका क्षेत्र में संकट की स्थिति में तुरंत तैनात किए जा सकने वाला दल है. इसकी जिम्मेदारी बारी बारी कई देश उठाते हैं. कई युद्धक दल पहले से ही काफी बहुराष्ट्रीय भी हैं. लेकिन हकीकत तो यह है कि बीते दस सालों में एक बार भी इनका कोई इस्तेमाल नहीं हुआ है. जाहिर है, अंतत: सबकुछ एक साझा राजनैतिक इच्छाशक्ति पर आ कर ठहर जाता है.

फेलिक्स श्टाइनर/आरआर