रचनात्मकता के बदले पागलपन
२५ मई २०१५पैटर्न हमेशा एक जैसा लगता है. इस्लामिक स्टेट के लड़ाके एक ऐतिहासिक ठिकाने पर कब्जा करते हैं, वहां के लोगों को आतंकित करते हैं, हजारों लोगों को भागने को मजबूर करते हैं. उसके बाद वे सांस्कृतिक धरोहरों को निशाना बनाते हैं, मूर्तियों, खुदाई वाले स्थलों और हजारों साल पुराने शहरों को. आतंकियों की लूटमार और तोड़फोड़ सिर्फ प्राचीन काल के प्रेमियों को ही सदमे में नहीं डालती. कट्टरपंथियों का मकसद साफ है कि इस्लाम से पहले की संस्कृति का कुछ भी न बचे.
उस काल का जब मेसोपोटेमिया के लोग सिर्फ एक देवता की पूजा नहीं करते थे बल्कि कई देवताओं की या जैसा कि कट्टरपंथियों का कहना है, गलत देवताओं की. पैगंबर मोहम्मद के पहले जो कुछ भी था वह आतंकियों के लिए पवित्र नहीं है. इस्लाम की उनकी संकीर्ण व्याख्या से जो भी अलग है, वे उसे नष्ट कर देते हैं.
सांस्कृतिक अपराध
सांस्कृतिक धरोहरों को व्यवस्थित तरीके से तोड़ फोड़ करने की वारदातें पहले भी होती रही हैं. नया यह है कि अब उसमें सारी दुनिया की हिस्सेदारी है. आईएस के समर्थक इसके बारे में वीडियो फिल्म बनाते हैं कि उन्होंने किस तरह हमला किया और अपने पीछे विनाश की क्या लीला छोड़ी. हर कोई इंटरनेट पर देख सकता है कि वे किस तरह से इराक के 11वीं शताब्दी ईसापूर्व के प्राचीन शहर निमरुद को बम से उड़ाते हैं. या फिर वे किस तरह मोसुल के संग्रहालय में असीरियन काल की मूर्तियों को तोड़ते हैं.
आतंकवादियों का आकलन यह है कि सीरिया और इराक में स्वयंभु जिहादियों द्वारा धूल बनाई गई हर मूर्ति, हर चट्टान के साथ वे राष्ट्रीय पहचान के एक हिस्से को भी नष्ट कर रहे हैं. आईएस का यही मकसद है. राष्ट्रीय राज्यों के बदले वह खिलाफत की स्थापना करना चाहता है. धर्मनिरपेक्ष कानून के बदले शरीया कानून की. सांस्कृतिक बहुलता के बदले एक विचारधारा, रचनात्मकता के बदले पागलपन.
कोई नयापन नहीं
हर कहीं जहां इस्लामी कट्टरपंथी जा रहे हैं, विनाश की कहानी पीछे छोड़ रहे हैं.यह सीरिया और इराक के लोगों से उनकी आजीविका छीन रहा है, और वह थोड़ी आजादी भी जो उनके पास थी. नए विचार और नयी खोज को उग्रपंथी अस्वीकार कर रहे हैं. सिर्फ आतंक और विनाश के लिए वे साधन का इस्तेमाल कर रहे हैं, नए आधुनिक साधन भी. उनके बिना आईएस का भी काम नहीं चल रहा.
केवल पश्चिमी देशों में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में नाराजगी, आक्रोश और बेबसी पैदा कर रही आईएस के लड़ाकों की बर्बरता को आईएस के समर्थक उनकी जीत मानते हैं और उनका मकसद दूसरे मोर्चों पर हो रही विफलताओं से लोगों का ध्यान हटाना भी है. शायह यह आईएस की विनाशलीला के बावजूद एकमात्र अच्छी खबर है कि दूरगामी रूप से इस्लामिक स्टेट सफल नहीं हो सकता. क्योंकि वह ऐसा कुछ पीछे नहीं छोड़ रहा जो उसने खुद बनाया हो.