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यौनकर्मियों के बच्चों का तोहफा

२८ दिसम्बर २०१२

भारत में कुछ यौनकर्मियों के बच्चों ने हाथ से लिखी एक पत्रिका शुरू की है और इसके सहारे वह देह व्यापार की काली छाया से बाहर निकलने की जुगत में है.

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तस्वीर: DW/S.Rahman

10 साल की फरजाना अस्पताल में काम कर रहे एक डॉक्टर की तस्वीर बना रही है. 13 साल का हैदर इंजीनियर बनने के सपने के बारे में लिखने में व्यस्त है और 14 साल की नीता एक पिंजरे में बंद पक्षी के दर्द पर कविता लिख रही है जो आजाद होना चाहता है, आकाश में उड़ना चाहता है. बिहार में मुजफ्फरपुर के लाल बत्ती इलाके में रहने वाले हैदर, फरजाना और नीता यौनकर्मियों के बच्चे हैं. स्थानीय गैर सरकारी संगठन परचम के अस्थायी दफ्तर में ये तीनों मासिक पत्रिका जुगनू का अगला अंक तैयार कर रहे हैं.

जुगनू हाथ से लिखे पन्नों की फोटोकॉपी के रूप में लोगों तक पहुंचता है. इसके 32 पन्नों में कविताएं, तस्वीरें और लेख होते हैं जो ज्यादातर मुजफ्फरपुर और आस पास के लाल बत्ती इलाके में रहने वाले बच्चों की लिखी होती है. कभी कभी यौनकर्मी या सामाजिक कार्यकर्ता भी इसमें अपनी बात कहते हैं. जुगनू यौनकर्मियों के बच्चों को अपने सपने बांटने और काबीलियत को निखारने का एक मौका दे रहा है.

Indien - Kinder von Prostituierten verlegen ihre eigene Zeitung in Muzaffarpur
तस्वीर: DW/S.Rahman

असुविधाओं और तिरस्कार के बीच पलते यौनकर्मियों के बच्चे अकसर स्कूली पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाते. लड़कियां अपनी मांओं की जगह ले लेती हैं तो लड़के अपराध की दुनिया का रुख कर लेते हैं. परचम इन बच्चों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश कर रहा है. मासिक पत्रिका निकालने में सहयोग करने के अलावा वह इन बच्चों को स्कूल में बने रहने की प्रेरणा देने और तरह तरह की ट्रेनिंग दिलाने की कोशिश में जुटा है.

पत्रिका का लक्ष्य

परचम की प्रमुख नसीमा ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमारे बच्चों के पास समाज की मुख्यधारा में रहने वाले दूसरों बच्चों जैसी सुविधाएं नहीं हैं. इनमें से कई तो स्कूल भी छोड़ चुके हैं. पत्रिका के लिए साथ आने से बच्चे अपने हुनर का इस्तेमाल कर रहे हैं और भविष्य के लिए इन बस्तियों से बाहर निकलने का सपना देख रहे हैं." कोठों पर पैदा हुए बच्चों के लिए वहां से निकल पाना बेहद मुश्किल है. नसीमा बताती हैं, "लाल बत्ती इलाके से जुड़े होने का कलंक इन बच्चों के जिंदगी पर हर जगह असर डालता है लेकिन यह बच्चे सुरंग के दूर सिरे पर रोशनी देख पा रहे हैं जो जुगनु से आ रही है."

जुगनू की संपादक 19 साल की निकहत हैं और उन्होंने बताया कि यह अपनी तरह की पहली पत्रिका है. यूनिवर्सिटी में पढ़ रही हैं और पत्रकार बनने की ख्वाहिश रखने वाली निकहत ने बताया, "सारे बच्चों की तरह मैं भी लाल बत्ती इलाके की बेटी हूं. समाज यह यकीन नहीं करता कि हम लाल बत्ती इलाके के पेशे के अलावा और भी कुछ कर सकते हैं. उन्हें गलत साबित करने के लिए हमने जुगनू पत्रिका शुरू की है."

Indien - Kinder von Prostituierten verlegen ihre eigene Zeitung in Muzaffarpur
तस्वीर: DW/S.Rahman

बाहर निकलने में मदद

परचम का जुगनू यौनकर्मियों के बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ने में मददगार साबित हो रहा है. इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी के स्थानीय प्रमुख पारेश प्रसाद सिंह बताते हैं कि पत्रिका से जुड़े बच्चे स्कूल में रहने के लिए प्रेरित हुए हैं. सिंह ने डीडब्ल्यू से कहा, "लाल बत्ती इलाके में जुगनू का असर साफ दिख रहा है. पत्रिका में जो कुछ छपता है उससे साफ है हुनरमंद बच्चे वहां फंसे हुए है. उनकी बनाई तस्वीरें, लेख और कविताएं यह सब बताती हैं कि वो समाज की मुख्यधारा के बच्चों से वो अलग नहीं है और उन्हें यहां जगह देने की जरूरत है." प्रसाद ने यह भी कहा कि उनकी मदद नहीं करना गलत होगा.

फरजाना आठ साल की थी तभी से जुगनू के लिए काम कर रही है वह आगे चल कर डॉक्टर बनना चाहती है. उसकी मां रुखसाना खुद तो पढ़ाई नहीं कर सकी लेकिन उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "मैं नहीं चाहती कि मेरी बेटी इस पेशे में आए. वह पढ़ना चाहती है और स्कूल में अच्छी छात्रा के रूप में जानी जाती है. मुझे यकीन है कि उसे एक दिन अच्छी नौकरी मिलेगी."

रिपोर्टः शेख अजीजुर रहमान/एनआर

संपादनः ए जमाल

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