योग दिवस पर हो रही है राजनीति
१४ जून २०१५जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, तभी से भारतीय जनता पार्टी के जाने-माने नेता, सांसद और यहां तक कि केंद्रीय मंत्री भी नियमित रूप से अल्पसंख्यकों के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देते आ रहे हैं. लेकिन उनके खिलाफ किसी किस्म की कार्रवाई करना तो दूर, मोदी ने उनकी सार्वजनिक रूप से एक बार भी आलोचना नहीं की. उधर विश्व हिन्दू परिषद और उससे जुड़े संगठन ‘घर वापसी' जैसे कार्यक्रम चलाते रहते हैं और ‘लव जिहाद' का हौवा खड़ा करके उसके खिलाफ अभियान छेड़ते रहते हैं. नतीजतन अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों, के भीतर असुरक्षा का भाव घर करता जा रहा है. यह सभी जानते हैं कि असुरक्षा का भाव अनेक तरह के वास्तविक और काल्पनिक भय को जन्म देता है.
यह सर्वविदित तथ्य है कि एक प्रकार की सांप्रदायिकता दूसरी तरह की सांप्रदायिकता को बल देती है. अल्पसंखकों के बीच भी सांप्रदायिक राजनीति करने वालों की कमी नहीं है. संघ परिवार से जुड़े संगठनों के ऐसे अभियान ऐसे नेताओं और संगठनों को शक्ति देते हैं. फिर जब भी बीजेपी सत्ता में आती है, तभी सरकार की ओर से भी ऐसे कार्यक्रम शुरू कर दिए जाते हैं जिनके कारण अल्पसंख्यकों के मन में यह डर पुख्ता होने लगता है कि उनका धर्म और संस्कृति सुरक्षित नहीं है. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी के कार्यकाल के दौरान स्कूलों में ‘सरस्वती वंदना' को अनिवार्य करने का प्रयास हुआ था जिसकी मुस्लिम समुदाय की ओर से आलोचना की गई थी. यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि मुस्लिम सांप्रदायिक नेता राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम' को गाना भी इस्लाम के विरुद्ध मानते हैं.
क्योंकि बीजेपी योग का राजनीतिक इस्तेमाल करती नजर आ रही है, इसलिए उसके विरोध में मुस्लिम अस्मिता की राजनीति करने वाले नेता और संगठन सक्रिय हो गए हैं. आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉं बोर्ड ने इसका कडा विरोध किया है, लेकिन पूरे इस्लामी जगत में सम्मानित देवबंद का दारुल उलूम योग को किसी धर्म से जुड़ा हुआ नहीं मानता. यूं देखा जाए तो वह है भी नहीं. पतंजलि ने योग की परिभाषा ‘चित्तवृत्ति निरोध' के रूप में की है अर्थात जिस क्रिया के करने से इंद्रियों और चित्त के विकारों पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सके. योग के आसन शारीरिक व्यायाम तो हैं ही, वे इनके द्वारा अपने ऊपर विजय प्राप्त करने का साधन भी हैं. दारुल उलूम ने योग के इस सार को समझ कर ही अपनी राय दी है.
लेकिन योग को जिस तरह से राजनीति के मैदान की गेंद बना दिया गया है, बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि जो योग का विरोध करते हैं, उनकी देश में कोई जगह नहीं है और उन्हें समुद्र में कूद जाना चाहिए, उससे उसका विरोध कम होता नजर नहीं आ रहा. यदि बीजेपी और मोदी सरकार उसका राजनीतिक लाभ उठाना चाहते हैं तो उनके विरोधी भी उसका विरोध करके अल्पसंख्यकों के बीच अपना जनाधार मजबूत करने में लगे हैं. यह प्रतिस्पर्धापरक सांप्रदायिक राजनीति राष्ट्रहित के सर्वथा विपरीत है. सरकार कितना भी क्यों न कहे कि योग का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने संबंधी भारत के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र में इस्लामिक सहयोग संगठन के 47 सदस्य देशों का समर्थन प्राप्त हुआ था और इसे मनाना किसी भी तरह से इस्लाम के खिलाफ नहीं है, लेकिन पिछले कुछ सालों में, और विशेषकर पिछले एक साल में, देश में जिस तरह का माहौल बना है, उसमें उसके इस तर्क का असर होने की संभावना काफी कम है.
अब योग के आसनों से ‘सूर्य नमस्कार' को हटाया जा रहा है और यह भी कहा जा रहा है कि ‘ओम' के स्थान पर लोग ‘अल्लाह' भी कह सकते हैं, लेकिन बात बन नहीं रही है. ‘घर वापसी' कार्यक्रम के कुछ ही माह बाद होने वाले इस आयोजन को अल्पसंख्यक समुदाय हिन्दू धर्म और संस्कृति को जबरन थोपे जाने का एक और प्रयास मान रहे हैं. इस स्थिति के लिए देश का शासक दल ही अधिक जिम्मेदार है.
ब्लॉग: कुलदीप कुमार