1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

यूएन यूनिवर्सिटीः दुनिया भर में फैले कैंपस

१५ दिसम्बर २०१०

जिस तरह संयुक्त राष्ट्र के नाम से पूरी दुनिया का अहसास होता है, ठीक यही भावना संयुक्त राष्ट्र के विश्वविद्यालय में भी दिखती है. इसके दुनिया भर में फैले कैंपसों में बड़े उपयोगी शोध हो रहे हैं.

https://p.dw.com/p/QYkw
टोक्यो में यूएन यूनिवर्सिटीतस्वीर: picture-alliance/ dpa

नोहा एल शोकी मिस्र की हैं और जर्मनी के बॉन शहर में अपनी पीएचडी कर रही हैं. उन्होंने मिस्र और ब्रिटेन में पढाई की. साथ ही ब्राजील, बोलिविया, कम्बोडिया और मिस्र में काम भी किया है. संयुक्त राष्ट्र के विश्वविद्यालय में वह दुनिया में साफ पानी की कमी पर शोध कर रहीं हैं. वह बताती हैं, "मुझे यह बात बहुत दिलचस्प लगी कि आप विशेष तरह की वैश्विक समस्याओं की पढाई कर सकते हैं और सभी विषय अभी चर्चा में हैं. मेरे लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण था कि मैं सिर्फ यहां पढाई ही नहीं बल्कि काम भी कर सकूं. यानी संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय सिर्फ शैक्षिक संस्था नहीं है, व्यावहारिक काम भी बहुत हो रहा है."

अहम सवालों से सामना

संयुक्त राष्ट्र के विश्वविद्यालय का मुख्यालय जापान की राजधानी टोक्यो मे है. इसमें पढाई करने वाले युवा शोधकर्ताओं का मकसद है वैश्विक समस्याओं के लिए नए समाधान निकालने की कोशिश करना है. जेकोब रायनर संयुक्त राष्ट्र के बॉन स्थित विश्वविद्यालय के निदेशक हैं. वह बताते हैं, "आप यूं समझ लीजिए कि इस विश्वविद्यालय का कैंपस पूरी दुनिया है. जिन मुद्दों पर यहां काम होता है वे हैं, मानवीय सुरक्षा के सवाल, प्राकृतिक आपदाएं या जलवायु परिवर्तन. जिन इलाकों में इनकी वजह से लोगों को दिक्कतें आती हैं, वहां लोगों के जीने के लिए विकल्प ढूंढ निकालने की जरूरत है. एक बडा सवाल हमारे लिए यह भी है कि भविष्य में और क्या क्या होगा."

संयुक्त राष्ट्र के विश्वविद्यालय का खर्च संयुक्त राष्ट्र नहीं, बल्कि मेजबान देश उठाते हैं. यानी संयूक्त राष्ट्र का यह विश्वविद्यालय आत्मनिर्भर है. उदाहरण के लिए बॉन में संयुक्त राष्ट्र के कई विभाग है और यहां खास तौर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत काम होता है. यही वजह है कि यहां शोध कर रहे वैज्ञानिक इन्हीं मु्द्दों पर ज्यादातर काम कर रहे हैं. जेकोब रायनर का मानना है कि इसके साथ शोधकर्ताओं के लिए बहुत सारे अवसर भी जुडे हुए हैं. वह कहते हैं, "सबसे जरूरी यह है कि शोधकर्ताओं को अलग अलग तरह के विषयों को एक दूसरे के साथ जोडना पड़ता है. यानी इससे बहुत कुछ नया सीखने का मौका मिलता है. उदाहरण के लिए सिर्फ चिकित्सा के सवालों पर काम नहीं होता है बल्कि उसके साथ भूगोल, संस्कृति और दूसरे विषय भी जुडे हुए हैं. दूसरी बात यह है कि आप अलग अलग देशों से आए लोगों के साथ काम कर सकते हैं. यानी आप अपने विषय को लेकर ही नहीं, बल्कि व्यक्तिगत तरीके से भी बड़े दायरे में सोचना सीख सकते हैं और यह हमारे शोधकर्ताओं को दूसरों से अलग बनाता है."

भविष्य की योजनाएं

अब तक संयुक्त राष्ट्र के विश्वविद्यालय में सिर्फ पीएचडी करने वाले छात्रों को ही दाखिला मिलता रहा है. लेकिन भविष्य में योजना यह है कि मास्टर करने वाले छात्रों को भी शामिल किया जाएगा. टोक्यो में तो यह प्रयोग शुरू भी हो गया है. मिस्र से आईं नोहा एल शोकी इस बात पर गर्व करती हैं कि वह दुनिया भर के मशहूर वैज्ञानिकों के साथ काम कर सकती हैं. वह कहती हैं, "मुझे ऐसा नहीं लगता है कि मै छात्रा हूं. मैं एक टीम की सदस्य हूं और प्रोजेक्ट पर हम मिलकर काम करते हैं. मैं अपनी पीएचडी की थीसिस रही हूं. लेकिन मैं उद्योग, पर्यावरण संरक्षण और विकास सहायता के बारे में भी बहुत कुछ सीख रही हूं."

1973 में शुरू किए गए संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय के टोक्यो के अलावा 16 जगहों पर कार्यालय है. लेकिन एशिया में टोक्यो के अलावा सिर्फ चीन में उसकी मौजूदगी है. ज्यादातर औद्योगिक देशों में ही शोधकर्ता काम करते हैं. जेकोब रायनर इसे सही नहीं मानते. वह कहते हैं, "दुनिया भर का जोर तथाकथित तीसरी दुनिया यानी विकासशील देशों पर ही है. इसलिए उन्हें पूरी प्रक्रिया में शामिल करने की जरूरत है. यानी हमें विकासशील देशों के लिए शोध विकसित देशों में बैठकर नहीं करना चाहिए. हमे वहां जाना चाहिए जहां समस्याएं वाकई स्पष्ट हों. सही मायने में वैश्विक विश्वविद्यालय तभी बन सकेगा."

रिपोर्टः डीडब्ल्यू/प्रिया एसेलबोर्न

संपादनः ए कुमार

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें