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युवा करेंगे तय

३ अप्रैल २०१४

असम और त्रिपुरा के छह लोकसभा चुनावक्षेत्रों में 7 अप्रैल को मतदान के साथ आम चुनाव की शुरुआत होगी. निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आंकड़े दिखाते हैं कि इस बार युवा मतदाता निर्णायक भूमिका निभाएंगे.

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तस्वीर: DW

वर्ष 2014 के आम चुनाव में इक्यासी करोड़ पैंतालीस लाख मतदाता वोट करने के अधिकारी हैं. इसका अर्थ यह है कि पिछले चुनाव की तुलना में इस बार दस करोड़ से भी अधिक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में जुड़े हैं. गौरतलब बात यह है कि पहली बार मतदाता बनने वाले इन दस करोड़ लोगों में से दो करोड़ तीस लाख से भी अधिक मतदाता अठारह वर्ष से उन्नीस वर्ष के आयुवर्ग में हैं.

किशोरावस्था से युवावस्था में कदम रखने वाले इन युवाओं की आंखों में सुनहरे भविष्य के सपने और दिल में आदर्श और दुनिया में कुछ सार्थक बदलाव लाने के अरमान होते हैं. यदि कॉलेजों और विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले कुछ छात्र-छात्राओं को छोड़ दें तो अक्सर इस आयुवर्ग के लोग किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा या दल से भी जुड़े नहीं होते. यानि ऐसा मतदाता किसी भ्रष्ट या आपराधिक छवि वाले उम्मीदवार को वोट देगा, इसकी उम्मीद नगण्य ही है.

निर्णायक तादाद

यदि आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि अठारह से चालीस वर्ष के युवा चुनाव परिणामों को निर्णायक ढंग से प्रभावित करने की स्थिति में हैं. छह राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों, दिल्ली, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मेघालय, छतीसगढ़, मिजोरम, दमन-दीव तथा दादरा-नगर हवेली में इनकी संख्या साठ प्रतिशत से भी अधिक है. केवल चार राज्यों, गोवा, केरल, राजस्थान और तमिलनाडु में इनकी संख्या पचास प्रतिशत से कम है, लेकिन बस जरा सी ही कम. शेष सभी राज्यों में वह पचास प्रतिशत से अधिक हैं. विश्व भर में शायद भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसका मतदाता इतना युवा है.

आश्चर्य नहीं कि भारतीय जनता पार्टी ने अपेक्षाकृत युवा नेता नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है. जिस मोदी लहर की इन दिनों इतनी अधिक चर्चा की जा रही है, वह युवाओं के कंधों पर चढ़कर ही आ रही है. मोदी की लहर है या नहीं, यह तो विवादास्पद प्रश्न है, लेकिन इतना स्पष्ट है कि उनकी चुनाव सभाओं में दिखने वाला जोश और उत्साह मुख्य रूप से युवा कार्यकर्ताओं और समर्थकों का ही है. कांग्रेस ने उनके बरक्स अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है लेकिन आम तौर पर युवा राहुल गांधी को ही अघोषित उम्मीदवार माना जा रहा है.

आम आदमी पार्टी (आप) के नेता अरविंद केजरीवाल भले ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश न किए जा रहे हों, लेकिन मोदी और गांधी की पार्टियों के भ्रष्टाचार को चुनौती देने का काम तो उन्होंने किया ही है. भले ही वह मात्र उनचास दिन दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे हों, लेकिन इस कारण उनमें उनके समर्थक भावी प्रधानमंत्री को तो देख ही सकते हैं. अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का जनाधार भी मुख्य तौर पर युवाओं के बीच है. आधी उम्र गुजार देने के बाद आम नागरिक भ्रष्टाचार का कदम-कदम पर सामना करके इतना परेशान हो चुका है कि वह उसे जीवन की अनिवार्यता के रूप में स्वीकार करने को राजी हो जाता है. लेकिन युवा इसके लिए आसानी से तैयार नहीं होता. उसके सपने और आदर्श वास्तविकता की दीवार से टकराकर चूर-चूर नहीं हो चुके होते. ऐसे लोग ही समाज में परिवर्तन के वाहक होते हैं. सरकारें भी ऐसे ही मतदाताओं के कारण बदलती हैं.

लुभाने की कोशिश

इस स्थिति को भांप कर राहुल गांधी ने एक चुनावसभा में ऐलान कर दिया कि यदि यूपीए सरकार फिर से सत्ता में आई, तो वह अपने कार्यकाल के दौरान दस करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया कराएगी. उनकी इस घोषणा का स्पष्ट उद्देश्य युवा मतदाता को रिझाना है. लेकिन युवा मतदाता बेवकूफ नहीं है. उसे अच्छी तरह पता है कि यदि दस वर्षों में यूपीए सरकार अर्थव्यवस्था का ठीक से प्रबंधन नहीं कर पाई, महंगाई और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में असमर्थ रही और केवल डेढ़ करोड़ से कुछ अधिक लोगों को ही रोजगार उपलब्ध करा पाई, तो अगले पांच सालों में वह कौन-सी जादुई छड़ी से दस करोड़ नए रोजगार पैदा करने की करामात कर दिखाएगी?

लेकिन आंकड़ों के द्वारा युवा मतदाता को प्रभावित करने का खेल शुरू हो गया है. बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा और कांग्रेस नेता जयराम रमेश आंकड़ों की इस लड़ाई में एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा बांधे हुए हैं और परस्परविरोधी दावे कर रहे हैं. लेकिन क्या युवा मतदाता अपने स्वतंत्र विवेक का इस्तेमाल नहीं करेगा? क्या वह अपनी जिंदगी के अनुभवों के आधार पर वोट नहीं देगा?

कांग्रेस और बीजेपी—दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों की प्रमुख परेशानी यही है. दोनों ही भ्रष्टाचार के खिलाफ जबानी जमाखर्च करते रहे हैं और दागी नेताओं को पार्टी में शामिल करके चुनाव लड़ने के लिए टिकट भी देते रहे हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अपनी छवि एक ईमानदार व्यक्ति की है लेकिन उनकी सरकार को देश की सबसे भ्रष्ट सरकार माना जा रहा है. बीजेपी भी अंधाधुंध भ्रष्ट और सांप्रदायिक नेताओं को टिकट दिए जा रही है. ऐसे में युवा मतदाता दोनों को ही सबक सिखा सकता है और चुनाव नतीजों को सनसनीखेज बना सकता है.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार

संपादन: महेश झा