युवा वैज्ञानिकों को साथ लाता हुम्बोल्ट फाउंडेशन
२९ जून २०१७जिस मंच से आपको क्वांटम फिजिक्स, ज्वालामुखी की परतों में छिपे रहस्य, ग्लोबल वॉर्मिंग के खतरे और ब्लू स्काई साइंस की बातें सुनने को मिलती हैं, उसी मंच पर आप गीतों से बदलते समाज और पुरानी अफ़्रीकी कहावतों को फिर से इस्तेमाल के लायक बनाने पर शोध को भी सम्मान मिलता देखते हैं. यहां राजनीतिक बंधनों से दूर विज्ञान और शोध के धरातल पर पूरी दुनिया एक साथ नजर आती है. ये मंच बर्लिन में हुम्बोल्ट फाउंडेशन की वार्षिक बैठक का है. हुम्बोल्ट फाउंडेशन विज्ञान और शोध के क्षेत्र में अपने योगदान के लिए दुनिया भर में अहम स्थान रखता है. वह अलग देशों के शोधकर्ताओं को फेलोशिप देकर जर्मनी में रिसर्च करने का मौक़ा भी देता है.
भारत से भी बहुत से स्कॉलर जर्मनी में रिसर्च कर रहे हैं. बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से पीएचडी करने वाली ललिता कोडुमुडी वेंकटरामन डार्मश्टाट की टेक्निकल यूनिवर्सिटी में फेरोइलेक्ट्रिक मैटीरियल पर रिसर्च कर रही हैं. जर्मनी में पिछले एक साल के अपने अनुभव को वह शानदार बताती हैं. उनका कहना है कि अपने विषय पर रिसर्च करने के साथ साथ यहां अपने फ़ील्ड की दूसरी रिसर्च के बारे में भी पता चलता है.
हुम्बोल्ट फाउंडेशन पोस्ट डॉक्टरल यानी पीएचडी के बाद रिसर्च के लिए स्कॉलरशिप देता है. स्कॉलरशिप पाने वाले फाउंडेशन की मदद से जर्मनी के अलग अलग संस्थानों में शोध करते हैं. फाउंडेशन का मकसद विज्ञान और शोध के क्षेत्र में जर्मनी और दुनिया के बीच साझेदारी और एक्सेलेंस को बढ़ाना है. फाउंडेशन के मुताबिक दुनिया भर में उसके 28000 से ज्यादा एलुम्नाई हैं. उनमें से 54 ने प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार जीता है.
सत्यनारायण पटेल का संबंध राजस्थान के चित्तौड़गढ़ से हैं. आईआईटी मंडी से पीएचडी करने के बाद उन्हें हुम्बोल्ट स्कॉलरशिप मिली है. वह सॉलिड स्टेट रेफ्ररिजे़न पर काम कर रहे हैं. वह आसान शब्दों में बताते हैं, "मोबाइल अगर गरम हो जाए तो हम उसमें एसी तो लगा नहीं सकते. इसलिए कुछ ऐसे पदार्थ होते हैं जो मोबाइल, लैपटॉप और ऐसे दूसरे उपकरणों को ठंडा रखते हैं. मैं ऐसे ही पदार्थों पर शोध कर रहा हूं."
ललिता कहती हैं कि हुम्बोल्ट फाउंडेशन से मिलने वाली स्कॉलरशिप की अच्छी बात ये है कि आपका पार्टनर और आपके बच्चे भी आपके साथ रह सकते हैं. निश्चित विषय पर शोध के अलावा जर्मन भाषा सीखने में भी फाउंडेशन मदद करता है. जब हमने पूछा कि क्या आप जर्मन बोल लेती हैं तो ललिता ने मुस्करा कर जर्मन में जवाब दिया, "हां बिल्कुल लेकिन धीरे धीरे."