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यहां आपको दिखेगा दुखी, बेघर, काला सिंगापुर

१९ मई २०१६

सिंगापुर का एक चेहरा ऐसा भी है जहां दुख है, तकलीफें हैं शोषण है. और इस चेहरे के केंद्र में वहां बसे भारतीय हैं. ऐसा चेहरा शायद ही कभी किसी बाहर वाले ने देखा हो. राजगोपाल ने उसे दिखाया है.

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Daniel Libeskind Wohntürme Reflections Keppel Bay
तस्वीर: Imago

सिंगापुर अमीर भारतीयों के लिए छुट्टी मनाने का एक रंगीन ठिकाना है. वहां भारतीय बाशिंदे भी खूब हैं क्योंकि कामगारों और व्यापारियों को भी सिंगापुर खूब आकर्षित करता है. लेकिन उसका एक और चेहरा भी है. एक स्याह चेहरा. यह चेहरा के राजगोपाल की फिल्म 'ब्लैक डेविल' में नजर आता है. इस फिल्म में रोजगोपाल ने सिंगापुर में रह रहे भारतीयों के बेहद खराब हालात को दिखाया है जो चकाचौंध के बीच खो जाते हैं.

फिल्म नस्ल, प्रवासन और सेक्स जैसे विषयों पर बात करती है जो सिंगापुर के अहम मुद्दे हैं. इस फिल्म में मुख्य भूमिका सिंगापुर के उभरते टीवी स्टार शिव कुमार ने निभाई है. डायरेक्टर राजगोपाल ने शिव को कहा कि वह रोल पर रिसर्च करने के लिए उन गलियों में रहे जहां भारतीय मजदूर रहते हैं. बहुत खूबसूरती और बारीकी से फिल्माई गई ये फिल्म बुधवार को कान फिल्म फेस्टिवल में दिखायी गयी. फिल्म की कहानी एक भारतीय के इर्द-गिर्द घूमती है जिसे फिल्म का एक चीनी किरदार 'ब्लैक डेविल' कहकर पुकारता है. जेल से छूटने पर यह भारतीय अपने परिवार और जिंदगी को फिर से समेटने की जद्दोजहद करता है.

Frankreich Cannes Film Festival - K. Rajagopal & Seema Biswas
अभिनेत्री सीमा विश्वास के साथ के राजगोपाल कान महोत्सव मेंतस्वीर: Getty Images/AFP/A. Pizzoli

राजगोपाल बताते हैं, "मैंने शंकर को कहा कि उन गलियों में जाए, रहे और सोये. उसका तो ऐसी जिंदगी से कोई वास्ता नहीं रहा है. इसलिए मैं चाहता था कि वह जाने कि बेघर होना क्या होता है. और इसीलिए बतौर ऐक्टर मैं उसे पसंद करता हूं. वह सब चीजों के लिए तैयार है और इंटेंस भी." फिल्म में सिंगापुर की बहुसंस्कृतिवादी समाज के अंदर चलने वाले संघर्ष का उम्दा चित्रण है.

जेल काट कर आए शिवा को अपनी मां के साथ रसोई के फर्श पर रात बितानी पड़ती है क्योंकि घर का बेडरूम एक चीनी प्रवासी को किराये पर दे दिया गया है. राजगोपाल बताते हैं, "ऐसा होता है. लोग पैसा कमाने के लिए अपने घरों के कमरे विदेशी प्रवासियों को किराये पर दे देते हैं. खासकर गरीब भारतीयों में तो ऐसा खूब होता है."

राजगोपाल बताते हैं कि सिंगापुर के बारे में अच्छी बात है कि हमें सरकार की ओर से सस्ते घर दिए जाते हैं लेकिन हममें से 90 फीसदी लोग तो कबूतरखानों जैसे फ्लैट्स में रहते हैं.

Filmfestival Cannes Film Slack Bay
कान फिल्म महोत्सवतस्वीर: picture alliance/dpa

राजगोपाल भिन्न नस्ल के लोगों के बीच पनपते रिश्तों पर भी बात करते हैं. फिल्म में शिवा का रिश्ता एक चीनी प्रवासी से बन जाता है, जो प्रॉस्टिट्यूशन को मजबूर है. राजगोपाल बताते हैं, "भारतीय और चीनी का जोड़ा बनना और दिखना बहुत कम होता है. खासकर सिंगापुर में कोई चीनी व्यक्ति किसी भारतीय से रिश्ता बना ले. ऐसा नहीं होता, चमड़ी के रंग के कारण."

राजगोपाल जानते हैं कि उन्होंने जिस सिंगापुर को दिखाया है, वह काफी लोगों को हैरान कर सकता है. वह कहते हैं, "सिंगापुर की इमेज तो आधुनिक और व्यवस्थित देश की है लेकिन मैं उन्हें दिखाना चाहता था जो हाशिए पर रहते हैं. यह भी हमारे मुल्क की ही एक सच्चाई है. ऐसा भी होता है."

लेकिन फिल्म का सबसे संवेदनशील विषय भारतीय समाज की जिंदगी है. राजगोपाल खुद उसी समाज से हैं. वह बताते हैं, "अपने ही देश में मुझे विदेशी की तरह देखा जाता था. सिंगापुर में कोई भारतीय सिंगापुरी नहीं होता, विदेशी होता है. जब मैं टैक्स ऑफिस में जाता हूं तो मुझसे पूछते हैं, कहां से हैं आप. मैं यहीं पैदा हुआ हूं. लेकिन मैं विदेशी हूं." वह बताते हैं कि इसका असर आपके भावनात्मक दायरे पर पड़ता है और राजगोपाल ने यही दिखाने की कोशिश की है.

वीके/आईबी (एएफपी)