मौन की शक्ति
आमतौर पर हम बोलकर इतने अधिक काम लेते हैं कि मौन की अपार शक्ति को भूल ही जाते हैं. अगर मौन रह कर कुछ सुना जाए तो सुनने और उसे याद रखने की क्षमता 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. देखिए मौन के तमाम फायदे...
अगर कोई बिना विराम दिए लगातार बोलता जाए तो क्या आपको कुछ भी समझ आएगा. यानि बोलने के दौरान भी मौन बेहद अहम भूमिका निभाता है. याद कीजिए अटल बिहारी वाजपेयी जैसे महान वक्ता के बोलने और विराम लेने दोनों का ही अंदाज लोगों को कितना पसंद है.
कैसी भी बहस छिड़ी हो सावधानी से सही मौके पर लिया गया विराम विवाद की दिशा बदल सकता है, जब दूसरा व्यक्ति चिल्ला रहा हो ऐसे में शांत रह पाने की काबिलियत अपने आप में बड़ी बात है. आपसे लड़ रहा व्यक्ति भी खुद परेशान हो जाएगा कि आप बदले में चिल्लाने वाली प्रतिक्रिया क्यों नहीं दे रहे.
किसी तरह के समझौते पर पहुंचने के लिए बात चल रही हो, उसमें भी उस इंसान को बढ़त मिलती है जो शांति बनाए रखते हुए आत्मविश्वास से भरा दिखाई दे. इस तरह उस बातचीत में भी आप अपनी कमजोरी विपक्षी के सामने आने से बचा पाते हैं.
मौन से आत्मीयता भी बढ़ती है. एक प्यार भरी नजर, हल्का स्पर्श, मीठी मुस्कान हो और मुंह से कोई बोल ना निकालें, तो भी ये खामोशी कितना कुछ जता देती है. इसके बाद जब आप कुछ बोलते हैं तो उसका खूब प्रभाव होता है.
जब आप खुद मौन हों तो सामने वाले की बॉडी लैंग्वेज ज्यादा अच्छी तरह समझ सकते हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि किसी भी कम्युनिकेशन का 70 से 80 प्रतिशत नॉन-वर्बल यानि अनकहा होता है. हमारे शरीर में दो कान, लेकिन एक मुंह इसीलिए है ताकि हम जितना सुनें उसका आधा ही बोलें.
हफपोस्ट वेबसाइट पर छपे एक लेख में बताया गया है कि खाना खाते समय भी मौन का अभ्यास करना फायदेमंद है. एक तो आप इस तरह धीरे धीरे खाते हैं, उसे ज्यादा चबाते हैं, और इस तरह खान का स्वाद और सुगंध का भी आनंद ले पाते हैं. इस तरह शरीर भी स्वस्थ और सुडौल बना रहेगा.
पढ़ने, कुछ अच्छा रचने, सोचने, आत्ममंथन करने या कुछ नया ढ़ूंढ निकलने के लिए भी शांति और मौन एक आदर्श स्थिति होती है. इसका अभ्यास करने के लिए शुरु शुरु में अपने मोबाइल में दिन में तीन-चार बार का अलार्म लगा सकते हैं. हर बार जब अलार्म बजे तो कम से कम 90 सेकेंड के लिए मौन रहने का अभ्यास करें.
जब भी कोई बुरी खबर मिले तो ऐसे समय पर खासकर मौन रहने का अभ्यास करें. इससे दुख, निराशा, हताशा जैसी नकारात्मक भावनाओं को स्थिर होने का समय मिलता है. इससे आप हर स्थिति में ज्यादा संतुलित प्रतिक्रिया दे सकेंगे.
आगे चलकर महीने या हफ्ते के एक पूरे दिन आप मौन रहने का व्रत ले सकते हैं. इस दिन बहुत जरूरी हो तभी बोलें. वरना मैसेज, ईमेल से काम चलाएं. टीवी, मोबाइल, इंटरनेट, रेडियो, परिवार, दोस्त या सहकर्मियों की बातें सुन सुन कर आप पर लगातार तमाम तरह की जानकारी की बरसात हो रही होती है. अभ्यास करते करते आप भीड़ में भी चुपचाप शांति पाना सीख जाते हैं.
मौन की स्थिति में किसी भी बात पर ज्यादा सोचने, जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया देने और अंतत: दिमाग में बैठी रही फालतू की बातों से बच सकते हैं. आजकल महामारी का रूप लेती जा रही मानसिक बीमारियों को दूर रखने और आपको एक शांत और प्रसन्नचित्त इंसान बनाने में भी इससे मदद मिलगी. और आप जीवन में जो चाहें वो लक्ष्य पा सकेंगे.