मोदी के आर्थिक कदम राजन के भरोसे
३० मई २०१४पिछले साल सितंबर में जब 51 साल के राजन ने भारतीय रिजर्व बैंक की बागडोर संभाली थी, तो भारतीय मुद्रा यानि रुपये की हालत कमजोर थी, निवेशकों का भरोसा टूट रहा था और विदेशी निवेशक तो खास तौर पर निराश थे.
राजन के कुछ कदमों के अलावा इस महीने आए चुनाव नतीजों के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति बदल रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहचान बेहतर आर्थिक विकास के लिए होती है और राजन के साथ मिल कर वह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर माहौल बनाने की कोशिश करेंगे.
कैसे हों आर्थिक कदम
हालांकि शुरुआती कदम के तौर पर राजन को ब्याज दर बढ़ाना पड़ा है और इसकी वजह से कर्ज लेना मुश्किल हो सकता है. लेकिन समझा जाता है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें कुछ राहत मिल सकती है और उनके एजेंडे में पहला काम महंगाई पर काबू पाना हो सकता है. फंड मैनेजर आमुन्डी सिंगापुर के प्रमुख अधिकारी फिलिपे यावर का कहना है, "मोदी राजन समीकरण हमें फोल्कर रीगन की जोड़ी की याद दिलाता है, जहां फेडरल बैंक के सामने महंगाई पर काबू पाने का काम था और दूसरी तरफ राष्ट्रपति का करिश्माई व्यक्तित्व था." भारत में ब्याज दरों में अगले साल तक कोई कमी होती नहीं दिख रही है.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्व अर्थशास्त्री और शिकागो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रह चुके राजन को 2012 में भारत बुलाया गया. तब वह वित्त मंत्री पी चिदंबरम के सलाहकार बनाए गए. राजन की एक और पहचान उस भविष्यवेत्ता के तौर पर होती है, जिसने सबसे पहले वैश्विक मंदी का अनुमान लगाया था.
सरकार के साथ पटेगी?
काम की शुरुआत में ही वह बड़े बदलाव करने वाले अर्थशास्त्री के तौर पर उभरे. यहां तक कि इकोनॉमिक टाइम्स ने खबर लगाई, "नेम इज राजन.. गेम इज बॉन्ड" इसमें राजन की तस्वीर जेम्स बॉन्ड की मुद्रा में छापी गई. अब राजन को भारत कि वित्त मंत्री 62 साल के अरुण जेटली के साथ मिल कर काम करना है. जेटली पेशे से कॉरपोरेट वकील हैं लेकिन दोनों ने कभी मिल कर काम नहीं किया है.
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि राजन जिस तरह के सख्त कदम उठाने के हिमायती रहे हैं, शायद मंत्री को वह ठीक न लगे और इसकी वजह से आने वाले दिनों में आर्थिक मोर्चे पर कुछ रस्साकशी भी हो सकती है. इस अधिकारी ने नाम बताए बगैर कहा, "राजन सरकार के लिए समस्या खड़ी कर सकते हैं कि अगर वे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति के मुद्दे पर रिजर्व बैंक की योजनाओं को खुलेआम बता रहे हैं. अगर वे बाद में सरकार के साथ मिल कर चलने की कोशिश भी करें, तो पीछे नहीं हट पाएंगे."
अपनी शर्तों पर
सीपीआई मुद्रास्फीति की दर इस साल अप्रैल में 8.59 फीसदी थी, जो उससे पहले लगातार 10 फीसदी रही थी. सिंगापुर में वरिष्ठ अर्थशास्त्री राजीव मलिक का कहना है, "महंगाई पर निशाना लगा कर सरकार को भरोसे में लेने की कोशिश होगी और मुझे नहीं लगता कि यह इतना आसान काम होगा. लेकिन मुझे लगता है कि यह सही कदम है."
राजन ने इस बात के संकेत दे दिए हैं कि वे बहुत दब कर काम नहीं कर सकते हैं. उन्होंने हाल ही में स्विट्जरलैंड में इशारा किया कि भारतीय रिजर्व बैंक स्वतंत्र है, "सरकार के साथ बात करके मुझे खुशी होगी. मैं सरकार की बात खुशी से सुनूंगा. लेकिन आखिर में ब्याज दर मैं ही तय करूंगा." वह यहां तक कह गए, "सरकार मुझे बर्खास्त कर सकती है, लेकिन सरकार मौद्रिक नीति नहीं तय कर सकती."
एजेए/एमजे (रॉयटर्स)