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मेंढक से बन रही है मशीनी नाक

३१ अगस्त २०१०

दुनिया के कुछ हिस्सों में मेंढक या उसके अंडे खाए जाते हैं. लेकिन अब उनके जरिए एक ऐसी मशीनी नाक बनाई जा रही है जो बड़े काम की साबित हो सकती है. रक्षा क्षेत्र से लेकर प्रदूषण पर लगाम करने में होगी मददगार.

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तस्वीर: AP

जापान के वैज्ञानिक मेंढक के अंडों का इस्तेमाल सेंसर बनाने में कर रहे हैं. ये सेंसर्स बहुत ताकतवर हैं और गंध व गैसों को बहुत सटीकता से पहचान सकते हैं. दरअसल, ये सेंसर छोटी छोटी इलेक्ट्रॉनिक नाक हैं जो गंध और गैसों का पता लगा सकती हैं. इस क्षेत्र में कई साल से काम कर रहे जापान की नागोया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तोशियो फुकुदा बताते हैं, "कुछ माइक्रो या नैनो सेंसर्स होते हैं जो कई गैसों का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. ऐसे छोटे छोटे सेंसर्स बनाने की संभावना है जो गंध और गैसों को पता लगा सकें. इसके लिए माइक्रो इलेक्ट्रो मैकेनिकल सिस्टम नाम की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन उनकी अहमियत इस बात से तय होती है कि वे कितनी तरह की ऐसी गैस या गंधों का पता लगा सकते हैं, जिन्हें मानव नाक नहीं सूंघ सकती. ऐसी अलग अलग इलेक्ट्रॉनिक नाक बनाने पर काफी अध्ययन हो रहा है. कुत्ते की नाक बहुत संवेदनशील होती है, तो उसकी तरह के सेंसर बनाने पर काफी काम हो रहा है."

जैसे प्रोफेसर फुकुदा कुत्ते की नाक की बात कर रहे हैं, वैसे ही डॉ. शोजी ताकेयुची और उनकी टीम ने तीन छोटे छोटे कीट पतंगों का इस्तेमाल कर लिया है. उन्होंने रेशम की कीड़े, पत्तागोभी के कीट और फ्रूट फ्लाई का डीएनए निकाला और उसे अफ्रीकी मेंढक के अंडों में डाल दिया. ये अंडे भी सामान्य नहीं हैं. इन्हें जैविक रूप से वैज्ञानिकों ने खुद तैयार किया है. यानी मेंढकों को ज्यादा परेशान नहीं किया गया है. पर आप सोच रहे होंगे कि ये सेंसर यानी इलेक्ट्रॉनिक नाक करेंगे क्या? प्रफेसर फुकुदा बताते हैं, "ये सेंसर कई तरह की परिस्थितियों में मदद करते हैं. मसलन रक्षा क्षेत्र में ये सेंसर काफी काम आते हैं. इन सेंसर्स का इस्तेमाल खतरनाक गैसों का पता लगाने के लिए किया जाता है. इसके अलावा रोजमर्रा की जिंदगी में भी ये सेंसर काफी मददगार हैं. इनके जरिए हमारी जिंदगी काफी आरामदायक हो सकती है. इनके जरिए हम ऐसी गैसों का पता लगा सकते हैं, जो इंसान के लिए फायदेमंद होती हैं. इन गैसों का इस्तेमाल हम अपने घरों में कर सकते हैं, अस्पतालों में कर सकते हैं."

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तस्वीर: TimVickers

कीट पतंगों के डीएनए ने अंडे से मिलकर कमाल का काम किया है. डॉ शोजी ताकुयाची बताते हैं कि उन्होंने इन अंडों में डीएनए डालने के बाद एक खास तौर पर तैयार किए गए डिब्बे में इन्हें रखा दिया. वहां इन्हें अलग अलग गंध और रसायनों के संपर्क में लाया गया. ताकेयुची कहते हैं कि हमने तीन तरह के फेरोमोन्स और एक ओड्युरेंट का इस्तेमाल किया. ये चारों रसायनिक तौर पर एक जैसे होते हैं. और मजे की बात है कि अंडों ने इन्हें सबको अलग अलग पहचान लिया. यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है क्योंकि हमें हमेशा नए सेंसर्स की जरूरत होती है. डॉ. फुकुदा कहते हैं, "जैसे मानव नाक कुछ देर तक एक ही गंध में रहने लगे तो उसे उसकी आदत पड़ जाती है और फिर वह उसके प्रति कम संवेनशील हो जाती है. इसी तरह इस इलेक्टॉनिक नाक की संवेदनशीलता भी कुछ देर बाद कम हो जाती है और यह गैस पहचानने में कमजोर हो जाती हैं. इसलिए हमेशा नए और ज्यादा संवेदनशील सेंसरों की जरूरत बनी रहती है."

जापानी वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इन सेंसरों की मदद से ऐसी मशीनें बनाई जा सकेंगी जो प्रदूषण फैलाने वाली गैसों, मसलन कार्बन डाई ऑक्साईड को जल्दी और सही तरीके से पहचान सकें. ताकेयुची इसके लिए मच्छरों का उदाहरण देते हैं. वह कहते हैं कि मच्छर आदमी को गंध के जरिए ही पहचानता है और इसके लिए कार्बन डाइ ऑक्साइड का इस्तेमाल करता है. यानी मच्छरों में ऐसे रिसेप्टर्स होते हैं जो कार्बन डाइ ऑक्साइड को पहचान सकें. तो हम मच्छर का डीएनए निकालकर उसे मेंढक के अंडों में डाल देंगे, इस तरह कार्बन डाइ ऑक्साइड को पहचानने वाला सेंसर बन जाएगा. डॉ फुकुदा तो इसका इस्तेमाल और आगे तक करने की बात करते हैं. वह बताते हैं, "अगर किसी इंसान के शरीर में कुछ अजीब गंध का पता चलता है तो हम समझ जाते हैं कि कुछ गड़बड़ है. इससे हम उसकी बीमारी के बारे में पता लगा सकते हैं. इसके अलावा ये सेंसर पर्यावरण की मॉनिटरिंग में काफी मददगार होते हैं."

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कुत्ते की नाक का मुकाबला करने की कोशिशतस्वीर: picture-alliance / maxppp

कहां मेंढक के अंडे, कहां कीट पतंगे और देखिए, वैज्ञानिकों ने क्या से क्या बना डाला है. यही है कुदरत. अपने भीतर कितना कुछ छिपाए हुए और इंसान को कितना कुछ देने के लिए तैयार. लेकिन क्या हम भी कुदरत का खयाल इसी तरह रखते हैं? इस सवाल पर गौर कीजिएगा.

रिपोर्टः विवेक कुमार

संपादनः ए कुमार

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