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इच्छा मृत्यु

१५ फ़रवरी २०१४

जब इच्छा मृत्यु को वैध बनाने का मुद्दा सिर उठाता है तो दुनिया के अधिकतर देश बहस टाल देते हैं. बेल्जियम में बच्चों को ये अधिकार देने के बाद अब यूरोप के कई देशों में इच्छा मृत्यु की बहस ज्यादा मुखर हो गई है.

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Palliativmedizin
तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी की बेटिना कोख 2002 में एक दिन अपने घर के दरवाजे पर गिर पड़ीं, उसके बाद उनकी जिंदगी कभी सामान्य नहीं हो सकी. उनके पूरे शरीर को लकवा मार गया. अपने पति उलरिष की मदद से उन्होंने इच्छा मृत्यु के लिए जर्मन कोर्ट से आवेदन किया. उन्होंने कहा कि उनकी पीड़ा का अंत हो. आवेदन अस्वीकार कर दिया गया. वे दोनों 25 साल से शादीशुदा थे. अपने देश में मिली निराशा के बाद बेटिना एक स्ट्रेचर पर 10 घंटे लेटकर स्विट्जरलैंड गई, ताकि वह सम्मानजनक रूप से अपने जीवन का अंत कर सके. उनके पति ने यूरोपीय मानवाधिकार अदालत (ईसीएचआर) में अपील की.

10 साल बाद ईसीएचआर ने फैसला दिया कि जर्मन अदालत ने मानवाधिकार के यूरोपीय समझौते की धारा आठ का उल्लंघन किया है, जिसमें निजी और पारिवारिक जीवन के सम्मान को सुनिश्चित किया गया है. हास वर्सेस स्विट्जरलैंड डिसिजन नामके इस केस में अदालत ने माना कि आर्टिकल आठ के मुताबिक वादी चुन सकता है कि वह कैसे और कब अपनी जिंदगी को खत्म करे. लेकिन अदालत ने यह भी कहा कि यूरोपीय संघ के सदस्य देश अपने यहां यूथेनेशिया के कानून के बारे में खुद तय करें.

मानवाधिकार का मामला

दिसंबर 2013 में बेल्जियम की संसद ने बच्चों को इच्छा मृत्यु का अधिकार देने के बारे में सहमति जताई. 50 सांसदों ने इसके समर्थन में मत दिया. विरोध में सिर्फ 17 थे. 2002 से बेल्जियम, नीदरलैंड्स में और 2009 से लक्जम्बर्ग में यह कानून लागू हुआ है कि वयस्क मरीज की इच्छा पर डॉक्टर जीवन रक्षक दवाइयां रोक सकते हैं. अब संसद में अल्पवयस्कों को भी इच्छा मृत्यु देने का बिल पास कर दिया है. इसमें न्यूनतम आयु नहीं तय की गई है.

Sterbehilfe
ब्रिटेन में फैसले का इंतजारतस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी में मृत्यु की इच्छा रखने वालों की मदद करने वाले संगठन श्टैर्बेहिल्फे के याकुब यारोस कहते हैं, "यूरोपीय संघ में बहुत देश नहीं हैं जो यूथेनेशिया पर बहस करते हैं." इस संगठन ने 2010 से अब तक करीब 110 मरीजों को मदद की है. यारोस कहते हैं कि बेनेलक्स (बेल्जियम, नीदरलैंड्स और लक्जेम्बर्ग) में एक्टिव यूथेनेशिया के कानून बहुत कड़े हैं. साथ ही बीमारियों की भी सूची है और एक खास आयोग तय करता है कि किन मरीज को इच्छा मृत्यु दी जा सकती है. इसके बाद डॉक्टर दवाई देकर जीवन पर पूर्ण विराम लगाते हैं, इसे एक्टिव यूथेनेशिया कहा जाता है. 2012 के दौरान बेल्जियम में इसके करीब 1,400 मामले आए थे.

2012 में स्विस मेडिकल वकीलों के कराए गए एक सर्वे के मुताबिक लोग बहुत अलग प्रतिक्रिया देते हैं. जर्मनी में 87 फीसदी लोग इच्छा मृत्यु पर सहमति जताते हैं जबकि ग्रीस में सिर्फ 52 फीसदी इसके समर्थन में हैं.

फ्रांस के कानून के मुताबिक लाइलाज बीमारी से ग्रस्त रोगी की जीवन रक्षक प्रणाली मरीज के अनुरोध पर डॉक्टर हटा सकते हैं. वहीं पोलैंड थोड़ा रुढ़िवादी है. लुबिन की मेडिकल यूनिवर्सिटी की योलांटा पासियान ने पोलैंड के कानूनी ढांचे की उसके पड़ोसी देशों से ढांचे से तुलना की. वह कहती हैं, "पोलैंड में इच्छा मृत्यु के लिए कम वकील हैं. इसे वैध बनाने के लिए कोई काम नहीं हो रहा है लेकिन वसीयत पर काफी बहस है." इन वसीयतों में मरीज पहले से बता सकता है कि जीवन के आखिरी पलों में उसका क्या किया जाए.

यूरोपीय परिषद की संसदीय सभा ने 2012 में एक समझौता लागू किया जिसमें कहा गया है कि यूथेनेशिया या जानबूझकर मरने को "हमेशा रोका जाना चाहिए." हालांकि यह कानूनन अनिवार्य नहीं है.

Infografik Euthanasia in Europe Assistant suicide ENG
यूरोप में असिस्टेंट सुसाइड

ब्रिटेन में बदलाव

ब्रिटेन में मार्टिन नाम से सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला वहां के 1961 के आत्महत्या एक्ट को बदल सकता है. इस अधिनियम के तहत जो भी दूसरे की मौत में सहायता करता है, उसे 14 साल की सजा हो सकती है. मार्टिन, एक स्ट्रोक के बाद पूरी तरह विकलांग हो गए. उनको कानूनी कार्यवाही का सहारा लेना पड़ा क्योंकि उन्हें अपनी पीड़ा खत्म करने में कोई मदद नहीं मिली. मार्टिन ने दलील दी कि आर्टिकल 8 के तहत उनके अधिकारों का हनन हुआ है. 2014 में इस केस का फैसला आना है. उम्मीद है कि इससे साफ हो सकेगा कि डॉक्टर मरीज के मरने की इच्छा के बारे में बात करें या नहीं. डिग्निटी इन डाइंग नामके संगठन के मुताबिक 2002 से अब तक 100 ब्रिटिश नागरिक इच्छा मृत्यु के लिए स्विट्जरलैंड जा चुके हैं.

ब्रिटिश लेबर पार्टी के नेता लॉर्ड चार्ल्स लेसली ने एक डाइंग बिल हाउस ऑफ लॉर्ड्स में पेश किया. इसे गर्मियों में दूसरी बार रखा जाएगा. इस बिल के मुताबिक मानसिक रूप से संतुलित वयस्क, जिनकी जिंदगी बस छह महीने की है, उसे अपनी जिंदगी खत्म करने में मदद मिल सकती है.

रिपोर्टः लोरी हैर्बेर/आभा मोंढे

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी

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