1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मुस्लिमों को दो ही बच्चे

२९ मई २०१३

भारत के पड़ोसी मुल्क म्यांमार में उस प्रस्ताव पर हंगामा है, जिसके मुताबिक रोहिंग्या मुसलमानों को दो ही बच्चे पैदा करने की अनुमति होगी. विपक्षी नेता आंग सान सू ची ने इसका तीखा विरोध किया है.

https://p.dw.com/p/18fKL
तस्वीर: Reuters

सू ची के अलावा मुस्लिम उलेमाओं ने भी सरकार के इस प्रस्ताव की निंदा की है. बौद्ध मतावलंबियों पर यह नियम लागू नहीं किया जाएगा. देश में पिछले कई महीनों से बौद्धों और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच झड़पें चल रही हैं. बौद्धों पर रोहिंग्या मुसलमानों के जातीय नरसंहार का आरोप लग रहा है.

इस आदेश के बाद संभव है कि म्यांमार धर्म के आधार पर बच्चों की नीति तय करने वाला दुनिया का पहला देश बन जाए. हालांकि देश के बौद्धों ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया है, जो रोहिंग्या आबादी के लगातार बढ़ने से परेशान हैं.

हिंसाग्रस्त रखीन राज्य में अधिकारियों ने बताया कि वे सैनिक शासन के वक्त अमल में लाए गए नियम को दोबारा लागू करने वाले हैं, जिसके मुताबिक रोहिंग्या मुसलमानों को दो से अधिक बच्चे पैदा करने की इजाजत नहीं होगी. हालांकि अभी नहीं बताया गया है कि यह नियम कब से लागू किया जाएगा.

Myanmar Zyklon Mahasen Golf von Bengalen 15.05.2013 OVERLAY GEEIGNET
रोहिंग्या को बाहरी मानते हैं स्थानीय लोगतस्वीर: Soe Than Win/AFP/Getty Images

सू ची को अफसोस

विपक्षी नेता और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता सू ची ने कहा, "अगर यह सही है, तो यह कानून के खिलाफ है." उन्होंने कहा, "यह भेदभाव से भरा है और मानवाधिकार का भी उल्लंघन करने वाला है." पिछले साल दो बार बड़ी हिंसा के बाद भी सू ची पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों के लिए कुछ नहीं बोला.

यह नीति रखीन राज्य के दो जिलों में लागू की जाएगी, जिनकी सीमाएं बांग्लादेश से मिलती हैं. राज्य में इन्हीं दोनों जगहों बुथीदाउंग और मौगदाव में मुस्लिमों की जनसंख्या सबसे ज्यादा है. म्यांमार की कुल आबादी करीब छह करोड़ है, जिनमें सिर्फ चार फीसदी मुस्लिम हैं. हालांकि इन दोनों जिलों की 95 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है.

केंद्र सरकार ने हालांकि इस बारे में कोई बयान नहीं दिया है और अधिकारी चुपचाप इसे रखीन में लागू करने की बात कर रहे हैं. इस बारे में जब सरकारी प्रवक्ता से पूछा गया, तो उन्होंने प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया. हथियारबंद बौद्ध आबादी पिछले साल से रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा में लगे हैं, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई है और कम से कम सवा लाख लोगों को घर बार छोड़ कर भागना पड़ा है. इनमें से कई लोग बांग्लादेश में जाकर रह रहे हैं.

Straßenschlachten in Myanmar
सैनिकों पर भी है भारी दबावतस्वीर: AFP/Getty Images

जातीय हिंसा

मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि सरकार और सुरक्षा एजेंसियां मिल कर रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ जातीय हिंसा में लगी हैं. रखीन राज्य में हिंसा के बाद देश के दूसरे हिस्सों से भी हिंसा की खबरें आ रही हैं, जिसके बाद राष्ट्रपति थेन सेन पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है.

म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को अपने 135 अल्पसंख्यक जातियों में नहीं शुमार करती है. इसका कहना है कि ये लोग बांग्लादेश से गैरकानूनी ढंग से देश में घुस आए हैं. उन्हें नागरिकता भी नहीं दी जाती है. बांग्लादेश का कहना है कि रोहिंग्या मुसलमान कई शताब्दियों से म्यांमार में रह रहे हैं और उन्हें नागरिकों के तौर पर पहचान मिलनी चाहिए.

रखीन राज्य की प्रवक्ता विन मिआइंग का कहना है कि इस नीति को लागू किया जा रहा है, ताकि मुस्लिमों की आबादी को नियंत्रित रखा जा सके. पिछले महीने सरकार के एक कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लगातार बढ़ रही आबादी से तनाव बढ़ रहा है. यंगून क्षेत्र के राष्ट्रीय मामलों के मंत्री जाव आए माउंग का कहना है, "जनसंख्या की बढ़ती बाढ़ को रोकने के लिए यह सबसे अच्छा तरीका है ताकि हमारी राष्ट्रीय पहचान पर खतरा न हो. अगर आबादी को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाएगा, तो हमारी अपनी पहचान के छिनने का खतरा है." उनका कहना है कि इस नीति से मुसलमानों को भी फायदा होगा क्योंकि छोटे परिवारों में बच्चों को खाना और कपड़ा देना आसान होता है.

Proteste von Mönchen in Myanmar
बौद्ध अनुयायियों के साथ लंबा संघर्षतस्वीर: dapd

चीन की मिसाल

मौगदाव के बौद्ध भिक्षु मणितारा ने इस नीति का स्वागत करते हुए कहा, "यह एक अच्छा विचार है. अगर सरकार सचमुच बंगाली आबादी को नियंत्रित करती है, तो दूसरी जातियों को ज्यादा सुरक्षा महसूस होगी और पहले के मुकाबले कम हिंसा होगी." रोहिंग्या मुसलमानों को ज्यादातर बौद्ध "बंगाली" कहते हैं. वे इसकी चीन की नीति से भी तुलना करते हैं.

चीन में एक बच्चे की नीति है लेकिन यह किसी धर्म पर आधारित नहीं है. यहां तक कि वहां अल्पसंख्यकों के लिए अपवाद भी है. म्यांमार के इस्लामी धार्मिक मामलों के काउंसिल के प्रमुख न्यूंत मौंगशीन का कहना है, "इस प्रतिबंध से मानवाधिकार का उल्लंघन होता है." उनका कहना है कि अगर सैनिक शासन में भी ऐसा किया जाता है, तो भी लोकतांत्रिक मूल्यों के हिसाब से यह गलत है.

उन्होंने कहा, "अधिकारियों को सावधान रहने की जरूरत है. अगर यह समुदायों के बीच तनाव कम करने के लिए किया जा रहा है, तो इससे हल नहीं निकल सकता." दूसरे मुस्लिम संगठनों ने भी इसका विरोध किया है.

रोहिंग्या समुदाय के लोगों को म्यांमार में पिछले कई सालों से कई तरह की पाबंदियां झेलनी पड़ रही हैं. उन्हें अपने गांव से बाहर जाने के लिए इजाजत लेनी पड़ती है, शादी के लिए जोड़ों को अनुमति लेनी पड़ती है और सैनिक शासन के दौरान भी उन्हें दो बच्चों तक सीमित किया गया. अगर कोई इस नीति के खिलाफ जाता है, तो उसके बच्चे का रजिस्ट्रेशन नहीं किया जाएगा और न ही उसे स्कूल में दाखिला मिलेगा. उसे घूमने और शादी करने की भी अनुमति नहीं होती.

एजेए/एमजे (एपी)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें