मुश्किल में पाकिस्तान
सरकार विरोधी प्रदर्शनों से पाकिस्तान एक बार फिर राजनीतिक अस्थिरता में घिर चुका है. 2013 में चुनाव जीतकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने नवाज शरीफ पर इस्तीफे का दबाव बढ़ता जा रहा है. इस खेल में कई खिलाड़ी हैं.
टीवी चैनल पर कब्जा
पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की पार्टी तहरीक ए इंसाफ और कनाडा से लौटे मौलवी ताहिर उल कादरी के समर्थकों ने सोमवार को राष्ट्रीय टीवी चैनल पीटीवी की इमारत पर कब्जा कर लिया. प्रदर्शनकारियों के नियंत्रण के बाद पीटीवी का अंग्रेजी प्रसारण बंद है.
प्रधानमंत्री लाहौर में
इससे पहले प्रदर्शनकारियों ने राजधानी इस्लामाबाद में संसद और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के आवास पर धावा बोला. अनहोनी की आशंका को देखते हुए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ इस्लामाबाद छोड़कर अपने गृह राज्य पंजाब चले गए. पंजाब में नवाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग एन की अच्छी पकड़ है.
प्रदर्शनकारियों पर सख्ती
प्रधानमंत्री के इस्तीफे के मांग कर रहे उग्र प्रदर्शनकारियों को काबू में करने के लिए इस्लामाबाद में पुलिस ने आंसू गैस और रबर की गोलियां फायर की. फायरिंग में कम से कम तीन लोगों की मौत हुई. सैकड़ों घायल हैं.
दो नेता, एक मकसद
सरकार विरोधी प्रदर्शनों की अगुवाई इमरान खान और सुन्नी मौलवी ताहिर उल कादरी (तस्वीर में) कर रहे हैं. दोनों नेता चुनावी प्रक्रिया में सुधार की मांग कर रहे हैं. दोनों का आरोप है कि बीते साल हुए चुनावों में शरीफ ने बड़े पैमाने पर धांधली की.
बातचीत की गुंजाइश
इमरान खान ने रविवार को बातचीत की किसी संभावना से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, "मैं सभी पाकिस्तानियों ने अपील करता हूं कि वो इस सरकार के खिलाफ खड़े हो. यह एक संवैधानिक सरकार नहीं है, ये हत्यारे हैं." सरकार का कहना है कि वो विपक्ष के साथ बातचीत के लिए तैयार है.
बड़े मार्च की शुरुआत
14 अगस्त को सरकार विरोधी हजारों प्रदर्शनकारियों ने लाहौर से इस्लामाबाद के लिए मार्च करना शुरू किया. पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक मार्च में दो लाख प्रदर्शनकारियों ने हिस्सा लिया. उन्हें रोकने के लिए सरकार ने कई रास्ते भी बंद किए लेकिन इस्लामाबाद पहुंचने के बाद प्रदर्शन उग्र हो गए. ये अब भी जारी हैं.
सिस्टम से झल्लाहट
विशेषज्ञों का कहना है कि कई पाकिस्तानी लचर कानून व्यवस्था, बेरोजगारी, बिजली की कमी और महंगाई जैसी समस्याओं की वजह से झल्लाए हुए हैं. वो बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं. हालांकि कई लोगों का यह भी आरोप है कि खान और कादरी लोगों के गुस्से का राजनीतिक फायदा उठा रहे हैं.
पर्दे के पीछे कौन
लोकतंत्र समर्थकों को लगता है कि प्रदर्शनों के पीछे पाकिस्तानी सेना का हाथ है. नवाज शरीफ का भारत के साथ संबंध सुधारने की पहल करना सेना को नागवार गुजर रहा है. शरीफ और पाकिस्तानी सेना के बीच अफगान नीति को लेकर भी मतभेद हैं.
तख्ता पलट का नया रास्ता
अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जरनल में 27 अगस्त को एक रिपोर्ट छपी. रिपोर्ट में कहा गया है कि शरीफ और सेना के बीच इस बात को लेकर समझौता होने जा रहा है कि "प्रधानमंत्री सुरक्षा मामलों और रणनीति के लिहाज से अहम विदेश नीति के मामलों का नियंत्रण छोड़ देंगे."
सेना की मध्यस्थता
अमेरिकी अखबार में छपी रिपोर्ट के एक दिन बाद 28 अगस्त को नवाज शरीफ ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख राहिल शरीफ से हालात संभालने की गुजारिश की. सेना अब मध्यस्थ की भूमिका निभा रही है.
सेना के हाथ में चाबी
1947 में मिली आजादी के बाद से अब तक पाकिस्तान की कमान ज्यादातर वक्त सेना के हाथ में रही है. विशेषज्ञों को लगता है कि मौजूदा सरकार के खिलाफ हो रहे है प्रदर्शन लोकतंत्र की मदद करने के बजाए सेना को दखल देने का मौका देंगें.