मुशर्रफ की बदकिस्मत वापसी
पाकिस्तान के पूर्व सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ पांच साल देश से बाहर रहने के बाद बड़ी उम्मीद से चुनाव में हिस्सा लेने पाकिस्तान पहुंचे. शायद उन्हें इस बात का अनुमान नहीं था कि उनकी वापसी उनके लिए परेशानियां खड़ी कर देगी.
घर वापसी
मुशर्रफ सिर्फ पाकिस्तान के संसदीय चुनावों में हिस्सा लेने के लिए 24 मार्च को दुबई से पाकिस्तान पहुंचे. चुनाव 11 मई को होना तय हैं.
नजरबंद
एक समय में पाकिस्तान में सबसे बड़ी ताकत के रूप में जाने गए जनरल परवेज मुशर्रफ को इस्लामाबाद स्थित उनके निवास पर ही नजरबंद रखा गया है. 18 अप्रैल को अदालत के उनकी गिरफ्तारी के आदेश देने के बाद ऐसा हुआ.
नजरबंदी या हिफाजत?
पाकिस्तानी उदारवादी मान्यताओं वाले लोगों और सेना के चहेते रहे जनरल मुशर्रफ को तालिबान और दूसरे इस्लामी संगठनों से लगातार धमकियां मिल रही हैं. उनके आठ साल के कार्यकाल घुसपैठ रोकने वाली नीतियो के चलते ये संगठन उनके दुश्मन बन गए.
विशेष देखभाल
आलोचकों का मानना है कि नजरबंद होने के बाद भी मुशर्रफ को जिस तरह की विशेष सुविधाओं के साथ रखा जा रहा है वह सही नहीं है. यही अगर वह कोई और राजनेता होते तो सीधे जेल भेजे जाते लेकिन सैन्य पृष्ठभूमि के कारण उन्हें फायदा मिल रहा है.
पलटी बाजी
मुशर्रफ पर इस समय अदालत में कई मामले चल रहे हैं, जिसमें अपने कार्यकाल के दौरान वरिष्ठ न्यायाधीशों को बर्खास्त करने जैसे मामले भी शामिल हैं. 2007 में वकीलों के देशव्यापी आंदोलन करने पर उन्हें मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी के साथ कई दूसरे न्यायाधीशों को पद पर बहाल करना पड़ा था.
अपने आप में पहला आंदोलन
मुशर्रफ की गिरफ्तारी से पहले 16 अप्रैल को पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने मुशर्रफ के नामांकन की अर्जी खारिज कर दी थी. उन पर चल रहे कानूनी मामलों की वजह से उन्हें चुनाव में हिस्सा लेने में अयोग्य ठहराया गया. उन मामलों में पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या में शामिल होने का आरोप भी शामिल है.
चर्चा में
पाकिस्तानी न्यूज एजेंसियां मुशर्रफ के पल पल की खबर रखने की ताक में दिन रात लगी हैं. जनरल परवेज मुशर्रफ तब भी खबरों में थे जब अमेरिका के साथ मिल कर वह तालिबान और अल कायदा के खिलाफ मोर्चा संभाले थे और आज भी उतनी ही खबरों में हैं, वजह भले ही बदल गई है.