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मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा कानून को चुनौती

६ सितम्बर २०१०

सुप्रीम कोर्ट में निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा कानून को चुनौती देती याचिका पर पांच जजों की खंडपीठ सुनवाई करेगी. याचिकाकर्ता का कहना है कि कानून असंवैधानिक है और मूलभूत अधिकारों का हनन करता है.

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तस्वीर: AP

चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया ने कहा, "यह याचिका पांच सदस्यों वाली खंडपीठ के सामने रखी जाएगी. वो ही इस मामले में निर्देश जारी करेंगे. याचिकाओं में निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा कानून के कई प्रावधानों को चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ताओं का दावा है कि ये कानून असंवैधानिक है और मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करता है."

इस कानून के तहत 6 से 14 साल के बच्चों के लिए शिक्षा मुफ्त और अनिवार्य है. इसके अलावा कानून कहता है कि निजी शिक्षण संस्थानो को भी 25 फीसदी सीटें गरीब परिवारों के बच्चों के लिए आरक्षित होनी चाहिए. लेकिन इसे चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की गई हैं.

याचिकाओं में कहा गया है कि इस कानून से आर्टिकल 19(1) (जी) के तहत निजी शिक्षा संस्थानों के अधिकारों का उल्लंघन होता है. इस तहत निजी संस्थानों को पूरी स्वायत्तता है कि वे सरकार दखलंदाजी के बगैर अपने फैसले लें.

याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के टीएमए पाई फैसले का हवाला देते हुए कहा कि उस समय निजी संस्थाओं को ज्यादा से ज्यादा स्वायत्तता देने का फैसला किया गया था.

याचिका के मुताबिक इस कानून के हिसाब से सभी स्कूलों को आवेदन करने वाले हर बच्चे को स्कूल में एडमिशन देना होगा और ये बात निजी स्कूलों पर भी लागू होती है.

लेकिन बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा वाले इस कानून में 3-6 साल के बच्चों के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है. जबकि शिक्षा शुरू करने के लिए ये उम्र सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है. वैसे तो निजी संस्थाएं शहर से दूर कम कीमत पर आलीशान भवन बनवाती है.

रिपोर्टः एजेंसियां/आभा एम

संपादनः एस गौड़

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