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मुख्यमंत्रियों के जनादेश का मामला

मारिया जॉन सांचेज
१६ अगस्त २०१७

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया कि आकाशवाणी और दूरदर्शन ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उनके भाषण को प्रसारित करने से मना कर दिया. उनसे कहा गया कि जब तक भाषण को नया रूप नहीं देते, तब तक इसे प्रसारित नहीं किया जाएगा.

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Indien Manik Sarkar
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Romana

त्रिपुरा की राज्य सरकार द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि राज्य के मार्क्सवादी मुख्यमंत्री माणिक सरकार का भाषण 12 अगस्त को रेकॉर्ड किया गया लेकिन 14 अगस्त की शाम उनके कार्यालय को एक पत्र द्वारा सूचित किया गया कि उन्हें अपने भाषण में यथोचित परिवर्तन करने होंगे वरना उसे प्रसारित नहीं किया जा सकता. सरकार ने ऐसा करने से इंकार कर किया और उनका भाषण प्रसारित नहीं किया गया. आकाशवाणी और दूरदर्शन प्रसार भारती नामक संस्था के तहत काम करते हैं, जो स्वायत्त संस्था है.

इस प्रकरण से कई अहम सवाल खड़े होते हैं जिनका संबंध भारतीय लोकतंत्र के भविष्य से तो है ही, केंद्र-राज्य संबंधों और देश की संघीय व्यवस्था से भी है. पहला सवाल तो यही है कि मुख्यमंत्रियों को मिलने वाले जनादेश का क्या मूल्य है? जब प्रधानमंत्री लालकिले से अपनी पार्टी की विचारधारा के अनुकूल भाषण कर सकते हैं, तो क्या राज्य का निर्वाचित मुख्यमंत्री स्वाधीनता दिवस पर अपनी विचारधारा के अनुकूल भाषण नहीं कर सकता? क्या आकाशवाणी और दूरदर्शन जैसे सार्वजनिक प्रचार माध्यम भारत सरकार और इस तरह केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की मिल्कियत हैं? भारतीय जनता पार्टी जब विपक्ष में थी, तब वह हमेशा कांग्रेस पर सरकारी प्रचार माध्यमों के दुरुपयोग का आरोप लगाती थी. क्या अब वह उनका अपने संकीर्ण राजनीतिक हितों के लिए दुरुपयोग नहीं कर रही? क्या किसी राज्य के मुख्यमंत्री के भाषण को सेंसरशिप की प्रक्रिया से गुजरना होगा? क्या ऐसा करना उस राज्य की जनता और उसके द्वारा मतदान के माध्यम से दिये गए जनादेश का अपमान नहीं है जिसने उस मुख्यमंत्री और उसकी पार्टी को चुना है?

जब भारत को आजादी मिली थी, उस समय उसे विभाजन की विभीषिका को भी झेलना पड़ा था. स्वाधीनता संघर्ष के नेता देश की जातीय, क्षेत्रीय, धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता से भली-भांति परिचित थे और उसे भारत की समृद्ध परंपरा मानते थे. लेकिन साथ ही वे यह भी नहीं चाहते थे कि भारत को भविष्य में फिर किसी विभाजन का मुंह देखना पड़े. इसलिए वे एक शक्तिशाली केन्द्रीय सत्ता के पक्ष में थे और इस बात को भी बखूबी समझते थे कि यह केंद्रीय सत्ता केवल जोर-जबरदस्ती के बल पर देश के विभिन्न भागों को एक राष्ट्रराज्य के तहत इकट्ठा नहीं रख सकेगी. इसलिए उन्होंने केंद्रीय एवं संघीय प्रणाली को मिलाकर भारतीय राज्यतंत्र के एक नए रूप का निर्माण किया जिसमें केंद्र को अधिक अधिकार मिले हुए थे लेकिन राज्यों के भी ऐसे अधिकार थे जिन्हें केंद्र छीन नहीं सकता था.

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार इस विशिष्ट संघीय प्रणाली के मूलभूत सिद्धांतों का पालन कर रही है? क्या किसी भी लोकतंत्र में ऐसा हो सकता है कि किसी राज्य के मुख्यमंत्री को स्वाधीनता दिवस पर अपने राज्य की जनता को संबोधित करने से सिर्फ इसलिए रोक दिया जाए क्योंकि उनका भाषण केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की विचारधारा और नीतियों की आलोचना करता है? मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने माणिक सरकार के इस भाषण का पूरा पाठ जारी किया है. इसमें नवउदारवादी आर्थिक नीतियों की आलोचना की गई है और देश में लगातार बढ़ते जा रहे सांप्रदायिक तनाव और हिंसा पर चिंता प्रकट की गई है. जाहिर है कि यह मोदी सरकार को स्वीकार्य नहीं. हाल ही में निवर्तमान उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की विदाई पार्टी में स्वयं प्रधानमंत्री मोदी और नवनिर्वाचित उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने उनके इस बयान पर कटाक्ष किए थे कि देश में अल्पसंख्यक बेचैनी महसूस कर रहे हैं. फिर वे माणिक सरकार को अपनी बात सरकारी प्रचार माध्यमों के जरिये त्रिपुरा की जनता तक क्यों पहुंचाने देते?