मीडिया ने बताया फैसले को स्वागतयोग्य
१ अक्टूबर २०१०आमतौर पर भारत के सभी अखबारों में इस फैसले को भारतीय जनमानस की परिपक्वता का सबूत बताया है. मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि इस फैसले से ऐसे भारत की नई तस्वीर उभरती है जिसमें कानून सांप्रदायिक भावनाओं पर हावी रहा.
भारत में फैसला आने से पहले कौमी दंगे भड़कने की आशंका के चलते इसे टालने की मांग की जा रही थी लेकिन गुरुवार को सुनाए गए इस फैसले ने इन आशंकाओं को पूरी तरह से गलत साबित कर दिया. हिंदुस्तान टाइम्स ने इसे ऐसा दूरदर्शी फैसला बताया जिसमें किसी ने कुछ खोया नहीं. अखबार लिखता है कि मुस्लिम दावेदारों का सुप्रीम कोर्ट में अपील करना इस बात का सबूत है कि हर कोई इस विवाद का हल कानून के दायरे में ही चाहता है. अखबार के मुताबिक, "अदालत ने कानून के दायरे से बाहर के मामले पर ऐसा संतुलित फैसला देकर समस्या की नब्ज को पकड़कर उसे काबू में कर लिया है."
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक इस फैसले के बाद किसी तरह की अप्रिय घटना का न होना भारत की नई तस्वीर को दिखाता है. इस पर खुशी जाहिर करते हुए अखबार लिखता है कि देश की नई पीढ़ी ने 20 साल पुराने जख्मों को भुलाकर जिस परिपक्वता का परिचय दिया है वह भारत को दुनिया की उभरती ताकत का सही हकदार बनाता है. सियासी दलों और समाज के बड़े बुजुर्गों ने भी यह साबित कर दिया कि ऐसी समस्याएं लंबे समय तक नहीं चलेंगी.
हालांकि द हिंदू इस फैसले की मामूली सी आलोचनात्मक व्याख्या करता दिखा. वह इसे कानूनी फैसले की बजाय ऐसा फैसला बताता है जिसमें सांप्रदायिक शांति की खातिर समस्या के समझौते का रास्ता तैयार किया है. वहीं इंडियन एक्सप्रेस ने भी इस फैसले को स्वागतयोग्य तो बताया है लेकिन साथ ही यह भी लिखा है कि अतीत के जख्मों को इतनी आसानी से मिटाया नहीं जा सकता.
रिपोर्टः एएफपी/निर्मल
संपादनः वी कुमार