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मिस्र, नाइजीरिया में बढ़े मौत की सजा के मामले

१ अप्रैल २०१५

एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2014 में मिस्र और नाइजीरिया में मौत की सजा के मामलों में भारी वृद्धि हुई है. इन देशों में राजनैतिक उथल पुथल और आंतरिक अस्थिरता इस बढ़ोत्तरी का बड़ा कारण रहे.

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तस्वीर: vkara - Fotolia.com

मिस्र में साल 2013 में 109 लोगों के मुकाबले 2014 में 509 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई. एमनेस्टी की रिपोर्ट के मुताबिक, "इन लोगों में से 37 ऐसे हैं जिन्हें अप्रैल में और 183 लोगों को जून में भेदभावपूर्ण तरीके से मुकदमा चलाकर मौत की सजा सुनाई गई." जुलाई 2013 में मुर्सी की सरकार गिरने के बाद उनके करीब 1,400 समर्थक राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल सिसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में मारे गए.

नाइजीरिया में भी साल 2013 में 141 के मुकाबले 2014 में 659 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई. इनमें से ज्यादातर उत्तरी नाइजीरिया में इस्लामी कट्टरपंथी समूह बोको हराम से संबंधित हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल की वैश्विक मामलों की निदेशक आउड्रे गॉग्रन ने कहा, "यह बहुत चिंताजनक स्थिति है कि साल 2014 में मौत की सजा के मामलों में बढ़ोतरी हुई है." उन्होंने कहा कि मृत्युदंड देना न्याय नहीं है.

रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में साल 2014 में मौत की सजा से 113 लोगों ने मुक्ति पायी. गॉग्रन ने कहा, "यह परेशान करने वाली बात है कि बेगुनाह लोगों को मौत की सजा सुनाया जाना कितना आम है."

रिपोर्ट में पाकिस्तान में मौत की सजा से पाबंदी हटाए जाने की भी कड़ी आलोचना की गई है. पेशावर हमले के बाद पाबंदी हटाए जाने के बाद से दिसंबर में ही 7 लोगों को फांसी दी गई. और यह सिलसिला 2015 में जारी है. मौत की सजा देने में चीन सबसे आगे है. रिपोर्ट में ईरान, सऊदी अरब, इराक और अमेरिका को मौत की सजा देने वाले देशों में आगे बताया गया है. हालांकि 2013 के मुकाबले 2014 में अपराधियों को मौत की सजा दिए जाने में कमी आई है, लेकिन साल 2014 में ज्यादा लोगों को मौत की सजा सुनाई गई है.

पिछले करीब 40 सालों से मौत की सजा के खिलाफ आवाज उठा रही संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक कुल मिलाकर सकारात्मक परिवर्तन यह है कि अब पहले के मुकाबले कम देशों में मौत की सजा दी जा रही है. संस्था के महानिदेशक सलिल शेट्टी ने कहा, "वे देश जो अब भी मौत की सजा देते हैं उन्हें अईना देखने की जरूरत है. उन्हें अपने आप से पूछने की जरूरत है कि क्या वे जीवन के अधिकार का हनन करते रहना चाहते हैं."

एसएफ/आरआर (एएफपी)