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कला

मानव तस्करों के खिलाफ कॉमिक्स किताबों की अनूठी पहल

अपूर्वा अग्रवाल
९ मार्च २०१७

पूर्वोत्तर और दक्षिणी राज्यों में मानव तस्करी के खिलाफ बच्चों को जागरूक बनाने के लिये कॉमिक किरदारों की मदद ली जा रही है. ये किताबें बच्चों को मानव तस्करों से सतर्क रहने और बचने के तरीके सुझा रही हैं.

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Charlie Brown Linus
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Schultz

मोहन एक खूबसूरत आदमी है जो रानी और मानाई के शहरी जीवन की दास्तां पूर्वोत्तर राज्य असम के राहत शिविरों में रहने वाली लड़कियों को बताता है. ये तीन काल्पनिक किरदार हैं और एक कॉमिक्स का हिस्सा हैं. इन कॉमिक किताबों के जरिये सुनाई जा रहीं कहानियां मानव तस्करी के चुंगल में फंसी उन लड़कियों की आपबीती है जिन्हें बड़े शहरों में ले जाया गया. इस दिशा में काम करने वाले कार्यकर्ताओं के मुताबिक ऐसी किताबों को कई भाषाओं में लाया जा रहा है और इन कॉमिक्स का उद्देश्य बच्चों को ऐसी स्थिति के प्रति सतर्क करना है और उनमें जागरूकता लाना है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015 में मानव तस्करी के जो मामले सामने आये थे उनमें से तकरीबन 40 फीसदी बच्चों से जुड़े थे. असम में उत्साह एनजीओ चलाने वाले मिगुएल क्यू रानी और मानाई की ऐसी कहानियों को लिख रहे हैं. उन्होंने कहा, "बोडोलैंड क्षेत्र के कई जिलों की लड़कियां इन राहत शिविरों में रह रही हैं लेकिन यहां कोई स्कूल नहीं है. सुविधाओं के अभाव में ये लड़कियां तस्करों में चुंगल में फंस जाती हैं.

जनवरी में छपी इन कॉमिक्स को असम सरकार का सहयोग मिला तो अब इन्हें ज्यादा से ज्यादा बच्चों तक पहुंचाने के लिये छापा जा रहा है.

दक्षिण भारत के तेलंगाना की कॉमिक "बुक द लाइट ऑफ ए सेफ विलेज" में मानव तस्करी के खिलाफ लड़ने वाले चार हीरोज की कहानी है. इन कहानियों में एक पिता अपनी बेटी को बचाते नजर आते हैं. पहले वाकये में मानव तस्करों का शिकार बनी पिंकी को शहर ले जाने से लेकर उसे बचाने तक की कहानी है. 

इस कॉमिक सीरीज को छापने वाले प्रकाशक माइ च्वाइस फाउंडेशन के विवियन ए आइसेक ने बताया, "इसका मकसद एक सकारात्मक संदेश देना है और पूरे समाज के बच्चों को इस तस्करी के प्रति सचेत कर बचने के तरीके बताना है."

तस्करों के चुंगल से बची राधिका के बारे में आइसेक बताती हैं कि राधिका को लगता है कि इन तस्करों के गांव में आने से पहले ये किताबें क्यों नहीं लाई गई और अगर ऐसा होता तो आज उसकी जिंदगी कुछ अलग होती.

साल 2015 में तेलगु भाषा में छपी सेफ विलेज सीरीज अब चार भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है. इन किताबों को 500 गांवों में 11 साल और इससे बड़ी उम्र के बच्चों को बांटा जा रहा है.

ये कॉमिक्स अपने पाठकों को बताती है कि भारत में तस्करी के शिकार होने वाले बच्चों की औसतन उम्र 12 साल है और करीब 1 फीसदी लड़कियों को बचाया जाता है. इसके मुताबिक हर 10 मिनट में 1 लड़की को सेक्स कारोबार के लिये बेच दिया जाता है. साथ ही किताब में यह भी बताया गया है कि कैसे ये तस्कर बच्चों को बहला-फुसला कर ले जाते हैं और अधिकतर मामलों में परिवार के जानने वाले या इनके कोई नजदीकी ही होते हैं.

एए, एके (रॉयटर्स)