माई नेम इज़ खान अब जर्मन में
१३ जून २०१०जर्मनी में बर्लिन फिल्म महोत्सव के दौरान माई नेम इज़ खान को एक बार दिखाया तो गया था, लेकिन इस हफ्ते फिल्म जर्मन में डब किया गया है और जर्मनी के सिनेमाघर अब इसे दिखा रहे हैं. स्थानीय प्रतिक्रियाएं काफी दिलचस्प रही हैं.
बॉलीवुड माने भावनाएं
बॉलीवुड की बात चलती है तो जर्मन लोग अपने आप को एक भारी जज्बाती कहानी के लिए तैयार कर लेते हैं. कई अख़बारों में फिल्म की चर्चा के साथ पाठकों के लिए फिल्म की कहानी भी छापी गई है. और ज़ाहिर है कि कहानी के साथ साथ माई नेम इज़ खान भी आलोचकों से बच नहीं सका है.
जर्मनी में बॉलीवुड फिल्मों के संगीत और प्रेम कहानियों को 'किट्श' कहा जाता है, यानी ऐसी कहानी जिसमें प्यार, संगीत और भावुकता कूट कूट कर भरे गए हों. हालांकि माई नेम इज़ खान में शाहरुख ने जर्मन जनता को दिखा दिया है कि वे अच्छा दिखने और नाचने के अलावा दर्शकों को सोचने पर मजबूर भी कर सकते हैं.
काजोल संग शाहरुख
लोग इस बात को भी गंभीरता से ले रहे हैं कि कभी खुशी कभी गम के बाद पहली बार काजोल और शाहरुख एक साथ दिखाई दिए. वैसे देखा जाए तो जर्मनी के हर बड़े सुपरमार्केट में कभी खुशी कभी गम की सीडी मिल जाती है, जर्मन डबिंग के साथ.
गाना न होना निराशा
कई पत्रकारों का मानना है कि बाकी हिंदी फिल्मों के मुकाबले माई नेम इज़ खान की गति कुछ तेज़ है. 130 मिनट के फिल्म में नाच गाना तो है ही नहीं और यह जर्मन दर्शकों के लिए हैरानी की बात है. जो लोग हिंदी फिल्मों में नाच गाना देखने आते हैं, वे तो निराश हैं लेकिन साथ ही उनका मानना है कि फिल्म में राजनीति, लव स्टोरी और हॉलीवुड के रोड मूवीज़ को अच्छी तरह मिलाया गया है.
फिल्म ने जर्मनी में नए दर्शकों को खींचा तो है ही, साथ ही शाहरुख के बारे में भी जानने की उत्सुकता बढ़ी है. जाने माने अखबार फ्रांकफुर्टर आल्गेमाइने का कहना है कि शाहरुख और बॉलीवुड ने एक ऐसे तरीके से गंभीर मुद्दों और मनोरंजन को जोड़ा है, जिसकी उम्मीद सिर्फ बॉलीवुड से की जा सकती है.
शाहरुख के बारे में कहा गया है कि वे बॉलीवुड के लिए ब्रैड पिट, जॉर्ज क्लूनी और रिचर्ड गीयर, सब कुछ एक साथ हैं. लेकिन कई अख़बारों ने फिल्म में करन जौहर और शाहरुख खान की मिली भगत को अझेल बताया है, जिसमें दोनों ने अपनी कल्पनाओं को खुली छूट दी है.
जर्मन जनता अपनी भावनाओं के लिए मशहूर नहीं हैं. इतालवियों की तरह न ये अपनी खुशी का इज़हार ज़ोर ज़ोर से करते हैं और न ही स्पेन वासियों की तरह अपनी ज़िंदादिली के लिए जाने जाते हैं. जर्मनी में इस फिल्म का रिलीज़ होना और जर्मन अख़बारों और लोगों के बीच इतनी चर्चा होना काफी आश्चर्य की बात है. यही नहीं, कई वेबसाइटों ने फिल्म की डीवीडी के साथ शाहरुख खान के ऑटोग्राफ वाली किताब और एक साड़ी मुफ्त देने का वादा भी किया है.
रिपोर्टः एम गोपालकृष्णन
संपादनः ए जमाल