माइती नेपाल
हर साल हजारों नेपाली लड़कियों का अपहरण कर वेश्यावृत्ति के पेशे में बेच दिया जाता है. इस चंगुल से आजाद होने वाली खुशकिस्मतों के जीवन में माइती नेपाल गरिमा और खुशियां वापस लाने का काम कर रहा है.
भयावह आंकड़े
राहत एजेंसियों के अनुमान के अनुसार हर साल करीब दस हजार नेपाली लड़कियों को तस्कर विदेशों में नौकरी दिलाने के झूठे वादे के साथ उनके परिवार से दूर ले जाते हैं. लेकिन कइयों की नौकरी की चाह देहव्यापार जैसे एक दुःस्वप्न में खत्म होती है. छुड़ाकर वापस लाए जाने पर परिवार तो नहीं लेकिन माइती नेपाल उनके जीवन में फिर से खुशियां भरने की कोशिश करता है. जैसे कि नृत्य के माध्यम से.
नारकीय जीवन
नेपाली लड़कियों को भारत ले जाकर उन्हें वेश्यावृत्ति के पेशे में बेच दिया जाता है. लड़कियां बलात्कार और हिंसा की शिकार बनती हैं. इन दर्दनाक अनुभवों के कारण कई बार महिलाएं कई तरह के यौन संचारित रोगों, हेपेटाइटिस या एचआईवी से संक्रमित हो जाती हैं. माइती नेपाल में ऐसी बीमार महिलाओं को भी शरण मिलती है.
कमजोरों की चैंपियन
माइती नेपाल की स्थापना 1993 में अनुराधा कोइराला ने की. लक्ष्य था, जबरन वेश्यावृत्ति में धकेली गई पीड़ितों को आजाद कराना और उन्हें जीवन संवारने का एक नया अवसर देना. लड़कियों के लिए शिक्षा की व्यवस्था और सम्मान के साथ जीने के लिए मदद मुहैया कराना. इसके अलावा यह मानव तस्करी के रोकथाम पर भी केंद्रित है क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर जबरन वेश्यावृत्ति के बारे में जागरुकता नहीं है.
भाग्यशालियों का मंच
बचाई गई लड़कियां माइती नेपाल के साथ काम करने के दौरान इससे जुड़े जागरूकता अभियानों का भी हिस्सा बनती हैं. नृत्य या पूर्व पीड़ितों के मुद्दे पर स्ट्रीट थिएटर जैसी कलात्मक अभिव्यक्ति भी इसके कुछ तरीके हैं. लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए वे उन्हें तस्करों के तौर तरीके और उनके बहकावे में आने पर पैदा होने वाले खतरों के बारे में बताते हैं.
बॉर्डर पर चेकिंग
इसके अलावा माइती नेपाल भारत से लगी अपनी सीमा पर भी नजर रखता है. अगर उन्हें किसी लड़की के अगवा किए जाने या संभावित शिकार की तलाश में घूमते पुरुष मिलते हैं तो इस संदेह के बारे में वे पुलिस को जानकारी देती हैं.
भारत का प्रवेश द्वार
नेपाल और भारत के बीच सीमा खुली है. गीता नामकी लड़की जब केवल नौ साल की थी तब उसका अपहरण कर इसी रास्ते ले जाकर एक भारतीय वेश्यालय में बेच दिया गया था. वह वापस लौटी लेकिन टूटे हुए हौसले और एचआईवी संक्रमण के साथ.
माइती नेपाल की स्थापना
कोइराला गीता जैसी महिलाओं के लिए ही राहत संगठन चलाती हैं. मानव तस्करी, शोषण, अत्याचार, बलात्कार की शिकार बनी महिलाओं की मदद कर उन्हें सेहतमंद और इज्जतदार जीवन जीने का मौका देना अनुराधा कोइराला का लक्ष्य है.
बनाएं रक्षा दीवारें
माइती नेपाल भारत से लगे सीमा क्षेत्र में ग्यारह "ट्रांजिट होम" चला रही है, जहां लौटने वाली लड़कियों का ध्यान रखा जाता है. राजधानी काठमांडू में माइती नेपाल का मुख्यालय है. यहां पढ़ाई, व्यावहारिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण देने की व्यवस्था है. ट्रेनिंग का उद्देश्य समाज में उन्हें दोबारा जोड़ना है.
आघात के लिए नृत्य
हर दिन काठमांडू में माइती केंद्र के आंगन में नाच गाना होता है. यह उनके आंदोलन को मजबूत बनाता है और लड़कियों में आत्मविश्वास भरता है. संगठन अब तक 12,000 से भी अधिक लड़कियों और महिलाओं को बचा कर उनको मदद पहुंचा चुका है. कोइराला बताती हैं कि ऐसी 30,000 लड़कियों को सीमा पार करने से पहले ही रोका जा सकता है.
यूरोप में कदम
यूनिसेफ के एक कार्यक्रम के तहत इस साल माइती नेपाल के एक नृत्य समूह को जर्मन शहर कोलोन के स्कूल में एक वर्कशॉप के लिए लाया गया. एक जर्मन युवा ने एली हॉएस स्कूल में इस समूह के नृत्य की कोरियोग्राफी की.
"मां" के साथ घूमना
अनुराधा कोइराला (बीच में) इन लड़कियों के साथ कोलोन में थी. कोइराला या तो इन लड़कियों को उनके नाम से या फिर 'मेरी बच्ची' कह कर बुलाती हैं. पीड़ितों को हर दिन और मजबूत बनने के लिए प्रेरित करने वाली एक मां के रूप में उनका सपना है कि एक दिन माइती नेपाल जैसी संस्था की जरूरत ही ना रह जाए.
दो महीने के दौरे पर
कोलोन की एक शाम को उनका प्रदर्शन. यूरोप में माइती नेपाल की नर्तकियां दो महीने के सफर पर हैं. नेपाल लौटने से पहले वे जर्मनी के अलावा ऑस्ट्रिया और स्विट्जरलैंड का दौरा भी करेंगी.