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माइक्रो प्लास्टिक खतरा है पीने के पानी के लिए

२१ जुलाई २०१७

प्लास्टिक की समस्या में अब एक नयी समस्या जुड़ गयी है माइक्रो प्लास्टिक की. उन्हें नदियों, तालाबों और झीलों से कैसे दूर रखा जाये. रास्ता परंपरागत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट सुझा सकते हैं. गंदे पानी की पूरी सफाई हो सकती है.

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Deutschland Mikroplastik
तस्वीर: picture alliance/JOKER/A. Stein

स्विट्जरलैंड के बाजेल शहर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में टेक्निकल डाइरेक्टर रोबैर्टो फ्राय के साथ उतरा जा सकता है सीवेज की अंधेरी दुनिया में. वहां आपका सामना होगा सीलन और भयानक दुर्गंध से. कुछ देर वहां रहें तो दुर्गंध के स्रोत का भी पता चल जाता है. बड़े शहरों के सीवेज से होकर वह सब कुछ बहता है जिसका एक आधुनिक समाज इस्तेमाल करता है. ट्रीटमेंट प्लांट बाजेल के रोबैर्टो फ्राय बताते हैं, "यहां हर दिन 80,000 घनमीटर गंदा पानी आता है, हर सेकंड करीब 1000 लीटर."

और उसमें मिला होता है उद्योग, कृषि और घरों से निकलने वाले तरल कचरे का कॉकटेल. इसका कुछ हिस्सा अत्यंत जहरीला होता है. किसी को पता नहीं कि नाले में कौन कौन से रसायन फेंके जाते हैं. ट्रीटमेंट प्लांट के कर्मचारियों को भी नहीं लेकिन उन्हें जहां तक संभव हो सके गंदे पानी की सफाई करनी होती है. इस समय ट्रीटमेंट प्लांटों में पानी की सफाई तीन चरणों में होती है.

सफाई के पहले चरण में चार बड़े बड़े पेंच जैसे घूमते पंपों की मदद से हर सेकंड 10,000 लीटर पानी को ट्रीट किया जाता है. दस मीटर आगे एक मशीन सफाई के दूसरे चरण में कचरे के बड़े टुकड़ों को पानी में से छान लेती है. उसमें टॉयलेट पेपर, हाइजीन आर्टिकल, प्रिजर्वेटिव, पत्ते, मरे हुए जानवर और वह सब कुछ जो नाले से होकर गंदे पानी में पहुंचता है, छन जाता है. छोटे टुकड़ों को छानने वाली एक मशीन में पत्थर के छोटे टुकड़े, रेत और शीशे के टुकड़ों को छान लिया जाता है. जिन चीजों को रिसाइकल नहीं किया जा सकता उन्हें एक प्लांट में जला दिया जाता है.

यहां तक साफ किया हुआ गंदा पानी अब तीसरे चरण में जैविक सफाई के लिए भेजा जाता है. यहां हवादार और गर्म माहौल में बैक्टीरिया की मदद ली जाती है. वे सूक्ष्म कचरे के ऑर्गेनिक मिश्रण को पानी, कार्बन डाय ऑक्साइड, नाइट्रेट, फॉस्फेट और सल्फेट में तोड़ देते हैं. सफाई अत्यंत प्रभावशाली तरीके से होती है. यहां तक पहुंचा पानी अब महकता नहीं है. अब उसे पास की नदी में छोड़ा जा सकता है. लेकिन सच कहें तो पानी अभी पूरी तरह साफ नहीं हुआ है. अब उसमें माइक्रो गंदगियां बची हैं.

Plastikmüll am Strand im Senegal
तस्वीर: picture-alliance/dpa

लेकिन हकीकत ये है कि आजकल के प्लांट पानी में से अत्यंत सूक्ष्म तत्वों को फिल्टर नहीं कर सकते. पर वैज्ञानिक इसे बदलने की कोशिश कर रहे हैं. स्विट्जरलैंड की ही तरह दूसरे यूरोपीय देश भी पानी की सुरक्षा को बेहतर बनाना चाहते हैं. पानी को माइक्रो प्लास्टिक से बचाने का एक तरीका है सफाई का एक चौथा चरण जो रासायनिक और मैकेनिकल साधनों की मदद से पानी से अत्यंत सूक्ष्म गंदगी वाले कणों को अलग कर देगा.

वैज्ञानिक इस समय ये शोध कर रहे हैं कि इस चौथे चरण का पर्यावरण पर क्या असर होगा. शोध अल्गी और मछलियों की मदद से हो रहा है. प्रयोगशाला में हुए प्रयोगों में पता चला है कि इसका एक सकारात्मक असर है, भ्रूण के विकास में. तालाबों में होने वाले केंकड़ों पर हुए शोध भी इसी ओर इशारा करते हैं. इन छोटे जीवों पर माइक्रो गंदगियों का फौरन असर होता है. केंकड़े किस पानी में क्या प्रतिक्रिया दिखाते हैं, यह जानने के लिए कि रिसर्चर उन्हें उनके पसंदीदा आहार के साथ तीन हफ्तों के लिए किसी एक डब्बे के पानी में रखते हैं.

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के पास हुए इस तरह के परीक्षणों ने दिखाया है कि सामान्य पानी में केंकड़ों को ज्यादा भूख नहीं लगती. लेकिन अगर वे साफ पानी में हो तो खाना पूरी तरह खत्म कर देते हैं. स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिक चौथे चरण की सफाई के अपने परीक्षणों के साथ गंदे पानी को साफ करने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. इसका फायदा बाद में दुनिया भर में पानी की सफाई में मिलेगा.

बाजेल के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में साफ होकर शहर के लोगों द्वारा इस्तेमाल किया गया पानी राइन नदी में पहुंचता है. भविष्य में यह पानी दुनिया के सबसे साफ पानी में शामिल होगा.

जो सीगलर/एमजे