महंगाई से परेशान प्रधानमंत्री ने बुलाई बैठक
११ जनवरी २०११प्याज पूरे भारत के खुदरा बाजारों में 55 से 60 रूपये किलो बिक रहा है. ये कीमतें और ऊपर जाती अगर नासिक के कारोबारियों ने दो दिन के लिए बुलाई अपनी हड़ताल कुछ ही घंटो में खत्म न कर दी होती. नासिक और आसपास के इलाकों में प्याज की भरपूर फसल होती है. अब प्रधानमंत्री को भी लग रहा है कि कीमतें कुछ ज्यादा ही बेकाबू हो रही हैं. इन पर लगाम कसने के उपायों पर विचार करने के लिए मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया और कृषि मंत्री को बैठक का बुलावा भेजा है.
उधर कृषि मंत्री शरद पवार का कहना है, "सब्जियों की कीमत काफी ज्यादा है और हमारा उन पर कोई नियंत्रण नहीं." हालांकि इसके साथ ही उन्होंने ये भरोसा जरूर जताया कि कीमतें धीरे धीरे नीचे आएंगी. शरद पवार का मानना है कि गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों से सब्जियों की नई खेप आनी शुरु हो गई है और जैसे जैसे सप्लाई बढ़ेगी कीमतें नीचे आएंगी.
पवार से पहले कई और वरिष्ठ मंत्री भी खाने पीने की चीजों की बढ़ती कीमतों पर काबू पाने में सरकार की लाचारी जता चुके हैं. सब्जियां, दूध, अंडा और मीट की बढ़ी कीमतों के कारण खाने पीने की चीजों की महंगाई दर 18 फीसदी पर चली गई है. प्याज की कमी नई फसल के आने के बाद भी दूर नहीं हो रही है.
इस बीच आयकर विभाग के छापे के विरोध में नासिक के सब्जी कारोबारियों की हड़ताल ने तो प्याज खाने वालों को तरसाने की तैयारी कर ली थी. उनका आरोप है कि इन छापों के कारण वो अपना प्याज 30 रूपये से ज्यादा की कीमत पर नहीं बेच पा रहे. आयकर विभाग से मिले आश्वासन के बाद नासिक के प्याज कारोबारी जिला एसोसिएशन ने अपनी हड़ताल वापस ले ली और मामला ठंडा पड़ गया. एसोसिएशन के अध्यक्ष सोहनलाल भंडारी के मुताबिक आयकर अधिकारियों ने उनकी शिकायतें दूर करने का आश्वासन दिया है.
इस बीच दिल्ली और आसपास के इलाकों में सब्जी कारोबारियों के ठिकाने पर आयकर विभाग के लगातार छापे पड़ रहे हैं. पाकिस्तान को वाघा सीमा के रास्ते सब्जियों को आने देने और भारत को प्याज के निर्यात पर लगी रोक हटाने के लिए मनाने की कोशिशों का कोई असर नहीं हुआ है. बल्कि अमृतसर के कारोबारियों ने तो पाकिस्तान जाने वाली टमाटर और दूसरी सब्जियों की खेप भी भेज दी है लेकिन पाकिस्तान पर कोई असर नहीं हुआ है.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः ओ सिंह