'मराठी माणूस' बाल ठाकरे
१७ नवम्बर २०१२मराठी माणूस की राजनीति और हिन्दुत्व की विचारधारा ने उन्होंने राजनीतिक पटल पर हमेशा बनाए रखा. उनकी तीखी, बेबाक टिप्पणियों के लिए उनसे नफरत करने वालों की कमी नहीं रही लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर पाना किसी के बस में भी नहीं रहा.
अपने भाषणों से भीड़ इकट्ठा करने वाले शिव सेना सुप्रीमो को उनके समर्थक भगवान की तरह पूजते थे और उनका विरोध करने वाले लोग उग्र शब्दों में अपना गुस्सा जाहिर करते. महाराष्ट्र के कद्दावर नेता ठाकरे हमेशा किंगमेकर माने जाते थे. कई लोगों के लिए वह महाराष्ट्र के सांस्कृतिक पहचान भी थे.
उग्र भाषण देने वाले ठाकरे ने करियर आरके लक्ष्मण के साथ 1950 में इंग्लिश अखबार फ्री प्रेस जरनल में शुरू किया. इसके बाद 1960 में में उन्होंने मार्मिक नाम का साप्ताहिक कार्टून पत्रिका निकालना शुरू किया. इसमें मराठी माणूस की अस्मिता और पहचान बनाने के बारे में तीखे लेख वह लिखा करते. यहीं से मुंबई के बाहर से आने वाले लोगों के खिलाफ उनकी नीति शुरू हुई. मूल रूप से बिहार से आने वाले ठाकरे ने बिहारियों के मुंबई में रहने का विरोध करने पर काफी विवाद हुआ.
ठाकरे की मराठी और महाराष्ट्रीयन समर्थक नीति ने उनकी पार्टी के नाम को एकदम चमका दिया. बीजेपी का समर्थन करने वाले ठाकरे यूपीए से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार प्रतिभा पाटिल का समर्थन करने से भी नहीं चूके क्योंकि वो मराठी थीं. आरक्षण वाले भारत में ठाकरे मराठियों के लिए मुंबई में नौकरी के संरक्षण की मांग कर रहे थे. क्योंकि बुद्धिमान मराठी लोगों को गुजरातियों और दक्षिण भारतीयों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा था.
23 जनवरी 1926 को पैदा हुए ठाकरे चार बच्चों में दूसरे थे. उनके पिता केशव सीताराम ठाकरे ने संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन में भाग लिया. एक ऐसा आंदोलन जिसने मराठी लोगों के लिए अलग देश की मांग की जिसकी राजधानी मुंबई होती.
जर्मन तानाशाह आडोल्फ हिटलर की प्रशंसा करने वाले ठाकरे ने जल्दी ही सड़क पर लड़ने वालों की एक फौज तैयार कर ली जो मराठी युवाओं को मुंबई के कारखानों में नौकरी दिलवाते. इसने उन्हें हिंदू हृदय सम्राट की उपाधि दिलवाई. ठाकरे ने खुद कभी चुनावों में हिस्सा नहीं लिया लेकिन एक पार्टी के बीज जरूर बोए जब उनके शिव सैनिकों ने कई उद्योगों और बॉलीवुड की ट्रेड यूनियनों में दबदबा कायम कर लिया.
ठाकरे के लिए राजनीति में सबसे अहम समय वो था जब उन्होंने बीजेपी के साथ मिल कर 1995 में राज्य में सरकार बनाई. हालांकि वह मुख्यमंत्री नहीं बने लेकिन उन्होंने रिमोट कंट्रोल से सरकार को चलाया. उग्र हिंदूवादी विचारधारा वाले ठाकरे ने अकसर पाकिस्तान और मुसलमान विरोधी टिप्पणियां भी की जिस पर काफी प्रतिक्रिया भी आई.
1995 में बॉम्बे को मुंबई का नाम देने वाली पार्टी के नेता के उम्रदराज होने को चिंता और उत्सुकता के साथ देखा जा रहा था क्योंकि पार्टी की सत्ता उन्होंने पुत्र मोह में उद्धव को दी जबकि उनके भतीजे राज ने नई प्रतिद्वंद्वी पार्टी शुरू की.
अक्टूबर में उनका एक वीडियो जारी किया गया, जिसमें बहुत कमजोर होते ठाकरे का भाषण अंतिम लग रहा था. उन्होंने कहा, "लोगों को अपनी (शिव सेना के प्रति) अखंड वफादारी रखनी चाहिए. आपने मेरा ध्यान रखा अब उद्धव और आदित्य का रखना."
अपने हर भाषण में ठाकरे ने क्षेत्रीय एजेंडा और पारंपरिक भारतीय मूल्यों की रक्षा की बात कही जो कि भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और वैश्वीकरण के दौर में विपरीत दिखाई पड़ती थीं. जिन लोगों की नौकरियां खतरे में थीं, उन्हें तो ठाकरे का पूरा समर्थन मिला लेकिन आधुनिक भारत की विचारधारा में उनकी जातिवादी टिप्पणियों ने अधिकतर को दूर कर दिया.
रिपोर्टः आभा मोंढे (एएफपी, पीटीआई)
संपादनः अनवर जे अशरफ