मरने की जगह
भारतीय हिंदू और जैन समुदाय के लोग गंगा किनारे वाराणसी पहुंचते हैं, अपने पाप धोने और खुद को जन्म मृत्यु के चक्र से आजाद करने के लिए.
शवदाह
मणिकर्ण घाट वाराणसी का सबसे मशहूर घाट है जहां दाह संस्कार किया जाता है. माना जाता है कि अगर किसी के शव का यहां दाह संस्कार हो तो उसके सारे पाप खत्म हो जाते हैं और वह मुक्त हो जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां चौबीस घंटे एक न एक चिता जलती रहती है.
देह त्याग का इंतजार
उत्तर प्रदेश की काशी या वाराणसी, यहां हिंदू अपने जीवन के आखिरी दिन बिताना चाहते हैं, या चाहते हैं कि उनका शरीर यहीं पंचतत्व में विलीन हो जाए. इसलिए यहां कई लोग अपनी मौत का इंतजार करने आते हैं.
मुक्ति भवन
भारत के कई हिस्सों से लोग वाराणसी पहुंचते हैं. मुक्ति भवन जैसे घरों में करीब 100 लोग करीब 48,000 रुपये दे कर कमरा किराए पर लेते हैं. कुछ लोग यहां 10-15 साल भी रहे हैं.
आध्यात्मिक यात्रा
मुक्ति भवन इसी तरह का एक ठिकाना है, जहां लोग मौत का इंतजार करते हैं. वे आरती, धार्मिक गीत सुनते हैं. यहां मरीज और उनके परिवार वाले 12 रुपये प्रतिदिन के किराए पर रह सकते हैं.
कोई विकल्प नहीं
मोक्ष भवन में रहने वाले इस दंपति को अपना घर, बेटे बहू के बुरे व्यवहार के कारण छोड़ना पड़ा. वे कहीं और नहीं जा सकते थे इसलिए यहां आ गए. उन्होंने यहां किराए पर कमरा ले रखा है और थोड़ी बचत से जैसे तैसे खर्च चला रहे हैं.
मुक्ति
वाराणसी में मरने वाले को मुक्ति मिलेगी, ऐसा कहा जाता है. इसका मतलब है कि उस व्यक्ति की आत्मा फिर धरती पर नहीं आएगी. ये महिला इसी आस में आंध्र प्रदेश से वाराणसी पहुंची हैं.
जीवन चक्र
ये महिलाएं अपना बाकी जीवन प्रार्थना, बातचीत, बागीचे में घूम कर काट रही हैं. वे कहती हैं कि इस पवित्र जगह रह कर वे बार बार जन्म से मुक्ति चाहती हैं.