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मदद की रकम से ज्यादा असर अहम

१२ सितम्बर २०१३

जर्मनी विकास सहायता देने वाले प्रमुख औद्योगिक देशों में है, लेकिन सहायताकी रकम पर अक्सर विवाद रहा है. जर्मनी के विकास सहायता मंत्री डिर्क नीबेल का कहना है कि सहायता की रकम से ज्यादा अहम उससे होने वाला असर है.

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डिर्क नीबेलतस्वीर: picture-alliance/dpa

विकास में गैरबराबरी की शिकायत करने वाले औद्योगिक देशों से ज्यादा योगदान की मांग करते हैं तो धन देने वाले इन देशों में सहायता के औचित्य पर बहस होती रही है. पिछले सालों में विकास सहायता के साथ अक्सर मानवाधिकारों के अलावा नागरिक और महिला अधिकारों का मुद्दा जुड़ता रहा है. जर्मनी के वर्तमान विकास सहायता मंत्री डिर्क नीबेल ने देश की विकास नीति और उसे लागू करने की संरचना में परिवर्तन किए हैं. उनके साथ डॉयचे वेले की बातचीत के प्रमुख अंशः

जर्मन विकास नीति में आप कौन सी नई चुनौतियां देखते हैं?

Deutscher Medienpreis Entwicklungspolitik Preisverleihung
मीडिया पुरस्कार विजेताओं के संगतस्वीर: DW/T.Ecke

सबसे पहले तो संरचनात्मक सुधारों को पूरा करना है, जो हमने अंदरूनी तौर पर किए हैं. परियोजनाओं को लागू करने वाले संगठनों को राजनीतिक रूप से प्रभावित करने के अधिकार के लिए अभी भी हर रोज संघर्ष करना पड़ता है. यह पूरी तरह से साफ होना चाहिए जर्मनी की विकास संबंधी नीति बनाने का काम सरकार का है. उन्हें लागू करने वाली संस्थाएं वह करती हैं, जो उनका नाम बताता है.ये संस्थाएं जर्मन सरकार की ओर से उन परियोजनाओं को लागू करती है.

हमें अपनी विकास नीति से संबंधित कामों के असर की बेहतर जांच करनी होगी. खर्च की गई रकम 2015 के बाद से विकास सहयोग का एकमात्र पैमाना नहीं होगी. जो किया जा रहा है उसका असर निर्णायक होगा. इसलिए मैं इस पक्ष में हूं कि स्थापित मान्यताओं के बारे में आलोचनात्मक सवाल किए जाएं और अच्छी विकास परियोजनाओं को मापने के नए रास्ते खोजे जाएं, विकासशील देशों में भी और औद्योगिक देशों में , जिनकी यहां जिम्मेदारी है.

जब आप स्थापित मान्यताओं को खत्म करने की बात करते हैं, तो आपके दिमाग में 0.7 प्रतिशत का लक्ष्य है. (औद्योगिक देशों ने 2015 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद का 0.7 फीसदी विकास सहायता पर निवेश करने का आश्वासन दिया है.) क्या जर्मनी को, जो पिछले सालों के आर्थिक संकट के दौरान अच्छा प्रदर्शन करने वाले कुछेक देशों में शामिल है, एक अलग संकेत देना चाहिए और इस लक्ष्य को पाने की और जोरदार वकालत करनी चाहिए?

जर्मनी सालाना 10 अरब यूरो से ज्यादा के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दाता देश है. यह वह राशि है जो करदाताओं को देनी पड़ती है. जब मैंने अपना पद संभाला था तो हमारा हिस्सा 0.35 प्रतिशत था, अब यह 0.38 प्रतिशत है. यह एक वृद्धि है, लेकिन यह एकमात्र निर्णायक पैमाना नहीं है. कोई कितना धन दे रहा है, यह अच्छे विकास के नतीजों को तय नहीं करता, बल्कि यह कि इस धन से क्या हासिल किया गया है. 2015 के बाद यह पैमाना होना होना चाहिए.

धन का प्रभावी इस्तेमाल

क्या साल के अंत में पोलैंड में होने वाली संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण वार्ता उपयुक्त अंतरराष्ट्रीय मंच हो सकता है, जहां औद्योगिक देश यह संकेत दे सकें कि वे नई जिम्मेदारियां उठाने के लिए तैयार हैं?

हमें अपने ऊपर दबाव नहीं बनाना चाहिए. यदि हम 2015 के बाद विकास और स्थायित्व के सामूहिक लक्ष्य तय करना चाहते हैं, तो हमें उससे पहले बाधाएं नहीं खड़ी करनी चाहिए, खासकर जहां तक वित्तीय मुद्दों का सवाल है. सबसे पहले हमें कुल मिलाकर लक्ष्यों पर बात करनी चाहिए. यदि वित्तीय सवाल पहले ही उठा दिए जाएंगे तो कुछ देश पहले ही मना करने लगेंगे.

GIZ Bangladesch
विकास के लिए मददतस्वीर: GIZ

पिछले चुनावों के दौरान विकास सहायता मंत्रालय को भंग करने और उसे दूसरे मंत्रालयों में मिलाने की मांग के कारण आप सुर्खियों में रहे थे. उसके बाद आप ही इस मंत्रालय के प्रमुख बना दिए गए और आपने जर्मन विकास नीति को बदलने का बीड़ा उठाया. जीटीजेड, डीईडी और इन्वेंट के विलय से संगठनात्मक रूप से अंतरराष्ट्रीय सहयोग सोसायटी जीआईजेड बना है. मुद्दों के मामले में आपने नया क्या किया है?

हमने ग्रामीण विकास को फिर से प्राथमिकता दी है. इसकी पिछले 15 सालों में काफी उपेक्षा हुई थी, सिर्फ जर्मनी में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में. ज्यादातर लोग जो गरीब हैं और भूखमरी के शिकार हैं, देहातों में रहते हैं. देहाती इलाकों का विकास कृषि अर्थव्यवस्था से ज्यादा है. फसल कटने के बाद अनाज को सुरक्षित रखने के बारे में जानकारी के अभाव के कारण 40 प्रतिशत का नुकसान, नजदीक के बाजार तक पहुंचने के लिए ढांचागत संरचना का अभाव, पानी की कमी वाले देशों में ड्रिप सिंचाई जैसी साधारण तकनीक के बारे में जानकारी का अभाव या कृषि मशीनों की मरम्मत का मुद्दा, यह सब ऐसे इलाके हैं जिनमें बदलाव आने में समय लगता है. इसलिए अगले चुनाव तक सफलता का बड़ा एहसास नहीं होता जिसे आप दिखा सकें.

हम समझ गए हैं, और यह अंतरराष्ट्रीय तौर पर मान्य है कि अर्थव्यवस्था की ताकत को विकास की प्रक्रिया के साथ फौरी तौर पर जोड़ा जाना चाहिए. हम विकास नीति के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए निजी लोगों के विचार, प्रतिभा, ज्ञान और धन का इस्तेमाल कर सकते हैं.इस तरह ही हम करदाताओं के कम धन से मौजूदा हाल से ज्यादा गहन रूप से काम कर सकते हैं.

डिर्क नीबेल 2009 से जर्मनी के आर्थिक सहयोग और विकास मंत्री हैं. उनके नेतृत्व में जर्मनी की तीन विकास सहायता संस्थाओं, तकनीकी सहयोग सोसायटी जीटीजेड, जर्मन विकास सेवा डीईडी और प्रौढ़ शिक्षा एजेंसी इन्वेंट का विलय हुआ.

इंटरव्यू: मिरियम गेर्के/एमजे

संपादन: निखिल रंजन

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