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मंदी की चिंता से घबराये बीजेपी के अपने भी

२९ सितम्बर २०१७

भारत की अर्थव्यवस्था को तेज रफ्तार देने के वादे के साथ सत्ता में आये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "अच्छे दिन" और करोड़ों नौकरियों का सपना दिखाया था. तीन साल बाद भारत की अर्थव्यवस्था खुद अपने बुरे दिन से गुजर रही है.

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Yashwant Sinha
तस्वीर: AP

भारत का आर्थिक विकास तीन सालों में अपने सबसे निचले स्तर पर है. देश की मुद्रा और व्यापार कर के तंत्र में बड़े बदलाव के बाद छोटे व्यापारी मुश्किलों में हैं या फिर अपना व्यापार बंद कर रहे हैं. मोदी के अपने सहयोगी भी भयानक आशंकाओं की चेतावनी दे रहे हैं और कुछ का तो यह भी मानना है कि देश मंदी की ओर जा रहा है.

इस बीच, सरकार के मंत्री लोगों से संयम बरतने की अपील कर रहे हैं, लेकिन बीजेपी से जुड़े विश्लेषक भी मौजूदा संकेतों को बहुत उम्मीदों से नहीं देख रहे हैं. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार में लिखे अपने लेख में अर्थव्यवस्था की हालत पर गहरी चिंता जतायी है. उन्होंने आर्थिक सुधारों को जल्दबाजी में और बिना तैयारी के लागू करने के लिए सरकार की आलोचना की. उनका मानना है कि आने वाले दिनों में यह घरेलू व्यापार के लिए बहुत बाधाएं उत्पन्न करेगा. यशवंत सिन्हा ने कहा है, "निजी निवेश पिछले दो दशकों में सबसे निचले स्तर पर है, औद्योगिक उत्पादन ढह गया है, कृषि का क्षेत्र दबाव में है. निर्माण उद्योग जो सबसे ज्यादा नौकरियां देने वाला क्षेत्र है, वह मंदी में है और निर्यात सूख गया है."

Feld in Indien
तस्वीर: CC/Peter Blanchard

इससे पहले बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि भारत एक "बड़ी मंदी की आशंका" का सामना कर रहा है. पिछले हफ्ते सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा, "अर्थव्यवस्था में अनियंत्रित गिरावट है, यह गिर सकती है. हमें अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए कई सारे अच्छे कदम उठाने होंगे. अनियंत्रित गिरावट को भी नियमित किया जा सकता है, अगर कुछ नहीं किया गया तो हम एक बड़ी मंदी की ओर जाएंगे."

पिछले हफ्ते विकास और आर्थिक सहयोग संगठन ओईसीडी ने भारत के आर्थिक विकास के अनुमान को मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 7.3 प्रतिशत से घटा कर 6.7 प्रतिशत कर दिया. दूसरे संगठनों और बैंकों ने भी इसी तरह की समीक्षाएं की है. अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत को 8 फीसदी का विकास दर बनाये रखना होगा, साथ ही पर्याप्त नौकरियों की भी व्यवस्था करनी होगी क्योंकि हर साल करीब 1.2 करोड़ युवा कामकाजी लोगों की जमात में शामिल हो रहे हैं.

Indien Restaurant Delhi
तस्वीर: ANNA ZIEMINSKI/AFP/Getty Images

इन चेतावनियों का प्रधानमंत्री पर भी कुछ असर हुआ दिख रहा है. उन्होंने पिछले हफ्ते एक नई आर्थिक सलाहकार परिषद का गठन किया है जो उन्हें वित्त मंत्रालय से अलग हट कर सुझाव देगी. हालांकि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह बहुत देर से उठाया गया एक छोटा कदम है.

नई दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री बिश्वजीत धर कहते हैं, "दुर्गंध आ रही है. मुझे नहीं लगता कि आर्थिक सलाहकार कमेटी कुछ मदद कर पायेगी. सरकार उसकी सलाह पर कैसे काम करती है, यह अभी देखना होगा." भारत लंबे समय से बाजार में निवेशकों का दुलारा बना हुआ है क्योंकि यहां विकास दर काफी तेज है और सथ ही 1.3 अरब की आबादी तक हर कंपनी अपनी पहुंच बनाना चाहती है. एक साल पहले ही साल के पहले वित्तीय वर्ष में आर्थिक विकास की दर 9.1 फीसदी तक पहुंच गयी थी और तब भारत को थोड़े दिनों के लिए दुनिया की सबसे तेज रफ्तार अर्थव्यवस्था होने का फख्र हासिल हुआ लेकिन जल्दी ही यह दर फिसल कर 6.5 के स्तर पर चली गयी जो 2013 के बाद सबसे कम है.

सरकार के जल्दबाजी में उठाये कदमों से नगद आधारित छोटे कारोबार पर बहुत बुरा असर पड़ा है. पहले नोटबंदी की मार पड़ी और फिर जब हालात सामान्य होने शुरू हुए तभी जीएसटी का कहर टूटा. सरकार नागरिकों से कह रही है कि कर सुधारों के जरिये वह इसे सरल बना रही है लेकिन फिलहाल इसे लेकर छोटे व्यापारी मुश्किलों में फंसे हैं. बदलावों पर अमल करना उनके लिए काफी मुश्किल साबित हो रहा है. नई दिल्ली के थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन से जुड़े मिहिर शर्मा का कहना है, "सबसे ज्यादा नौकरियां तो छोटे व्यापार में ही मिलती थीं. अब सबसे ज्यादा मार उन्हीं पर पड़ी है."

सरकार की चारों तरफ आलोचना हो रही है लेकिन सत्ता में बैठे लोग अब भी विजेता की मुद्रा में ही हैं. लंबे समय तक ऊर्जा मंत्री रहने के बाद अब रेलवे की जिम्मेदारी संभाल रहे कैबिनेट मंत्री पीयूष गोयल कहते हैं, "सरकार ने कुछ बेहद अहम फैसले किये हैं, मुश्किलें और आलोचनाएं होंगी लेकिन हमें पूरा भरोसा है कि हम इस प्रगति के मार्ग पर बने रहेंगे."

एनआर/एके (एपी)

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