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भारत में नए श्रम कानून बनेंगे

१ जुलाई २०१४

अर्थव्यवस्था में आमूलचूल बदलाव के लिए भारत के नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार श्रम कानूनों में बदलाव की तैयारी कर रही है. इसका मुख्य उद्देश्य देश में उत्पादन और रोजगार बढ़ाना है.

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तस्वीर: STR/AFP/Getty Images

लगातार सरकारें मानती रही हैं कि अगले दो दशक में भारत में करीब 20 करोड़ लोग रोजगार पाने की उम्र में पहुंच रहे हैं और इसलिए श्रम कानूनों में बदलाव जरूरी है. लेकिन लेबर यूनियनों और राजनीतिक लाभ के मुद्दे की वजह से ये लटकते आए हैं. लेकिन अब भारत में लगभग तीन दशक के बाद एक पार्टी की बहुमत सरकार बनी है और ये उन कानूनों में बदलाव की कोशिश कर रही है, जो ब्रिटिश काल से चले आ रहे हैं.

श्रम मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि नई सरकार के शुरुआती 100 दिनों का यह प्रमुख कार्य होगा. भारत के श्रम कानून बेहद जटिल हैं और इसकी वजह से मजूदरों और उन्हें काम देने वालों दोनों को समस्या होती है. वर्ल्ड बैंक ने 2014 की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत दुनिया के सर्वाधिक अलोचदार बाजारों में है.

बिजनेस वर्ल्ड को उम्मीद

कारोबारियों का मानना है कि नरेंद्र मोदी के तौर पर उन्हें नया प्रधानमंत्री मिला है, जो बिजनेस को लेकर काफी गंभीर है और उन्हें लगता है कि भारत में भी श्रम कानूनों में बड़े बदलाव हो सकते हैं. उन्हें उम्मीद है कि इसके बाद किसी भी व्यक्ति को आसानी से नौकरी से नहीं निकाला जा सकेगा.

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मजदूर और उद्योग दोनों की चिंतातस्वीर: DIBYANGSHU SARKAR/AFP/GettyImages

श्रम मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि इसके लिए बीजेपी छोटे छोटे बदलाव कर रही है. इसके तहत ज्यादा कामगारों को न्यूनतम मजदूरी, ओवरटाइम के घंटों में वृद्धि और महिलाओं को नाइट ड्यूटी की इजाजत मिल सकती है. अधिकारी का कहना है, "हम चाहते हैं कि काम करने वालों और उद्योग, दोनों को मुक्त माहौल मिले. यह हमारी प्राथमिकता है."

एजेंडे पर अगला काम तुरंत नौकरी देने और तुरंत हटाने की समस्या को दूर करना है. अधिकारियों का कहना है कि इसमें बदलाव के लिए अधिकारियों से वार्ता शुरू हो चुकी है.

भारत के 20 साल के आर्थिक विकास को बेरोजगारी विकास के तौर पर भी देखा जाता है, जहां सर्विस क्षेत्र का तेजी से विकास हुआ लेकिन बहुत ज्यादा रोजगार नहीं मिला. भारत में रोजगार के बहुत विश्वसनीय आंकड़े नहीं हैं. लेकिन सांख्यिकी कार्यालय का कहना है कि 2004 से 2011-12 के बीच सिर्फ 50 लाख नई नौकरियां पैदा हुईं. इसी दौरान करीब साढ़े तीन लाख लोगों ने खेती छोड़ कर दूसरे काम करने का फैसला किया, ताकि ज्यादा कमाई हो. इनमें से ज्यादातर मजदूर बन गए.

रिसर्चों में पता चलता है कि भारत को सालाना सवा करोड़ नए रोजगार चाहिए. और वह इस लक्ष्य से बहुत पीछे है. कंपनियों का कहना है कि इसके लिए मुश्किल कानून भी एक प्रमुख वजह है.

भारत की 2000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था का सिर्फ 15 फीसदी उत्पादन पर निर्भर है. भारत का कहना है कि यह एक दशक में इसे बढ़ा कर 25 फीसदी करना चाहता है और इसके लिए 10 करोड़ रोजगार पैदा किए जाएंगे. अगर इसकी तुलना चीन से की जाए, तो वहां 2012 में जीडीपी का 45 फीसदी उत्पादन क्षेत्र से आया.

एजेए/एमजे (रॉयटर्स)