भारत में खतरे की घंटी बजाती शराब
२३ मई २०१५अब शराब पीने की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की मांग तेज हो रही है. पेरिस स्थित संगठन ओईसीडी के इस अध्ययन में रूस और एस्टोनिया के बाद भारत तीसरे स्थान पर है. ताजा खुलासे से चिंतित स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने सरकार से शराब के सेवन को नियंत्रित करने के लिए नई नीति बनाने की मांग की है. आंकड़ों से साफ है कि देश का युवा तबका अब कम उम्र में ही मयखाने का दरवाजा तलाश रहा है. देश में बढ़ते सड़क हादसों की यह एक प्रमुख वजह है. सेकसरिया इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक हेल्थ के निदेशक डा पी.सी.गुप्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के हवाले कहते हैं, "लगभग तीस फीसदी भारतीय अल्कोहल का सेवन करते हैं. इनमें चार से 13 फीसदी लोग तो नियमित रूप से शराब का सेवन करते हैं. उनमें से आधे लोग खतरनाक पियक्कड़ों की कतार में शुमार हैं." कैंसर विशेषज्ञ डा. सुनील मुखर्जी कहते हैं, "मुंह, लीवर और स्तन समेत कैंसर की कई किस्मों का संबंध शराब के सेवन से है." सामाजिक कार्यकर्ता नीलिमा घोष कहती हैं, "आश्चर्य की बात यह है कि इन आंकड़ों के बावजूद सरकारें इस गंभीर मामले पर कोई ध्यान नहीं दे रही हैं."
विशेषज्ञों का कहना है कि दूसरे उत्पादों के बहाने टीवी चैनलों और अखबारों में शराब की विभिन्न किस्मों के लुभावने विज्ञापन दिखाए और छापे जा रहे हैं. लेकिन किसी भी सरकार ने इन पर अंकुश लगाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है. इन लुभावने विज्ञापनों से आकर्षित होकर कम उम्र के किशोर भी शराब की बोलत को मुंह लगा रहे हैं. यही नहीं, बीते 10 वर्षों में किशोरियों में भी तेजी से शराबखोरी बढ़ी है. विशेषज्ञों की राय में कम उम्र के युवकों के साथ युवतियों में बढ़ती शराबखोरी गहरी चिंता का विषय है. युवतियों को होने वाली विभिन्न बीमारियों का प्रभाव उनकी संतान पर भी पड़ता है. लिहाजा, बढ़ती शरबाखोरी के दूरगामी नतीजे हो सकते हैं.
कई तरह के खतरे
शराब के बढ़ते सेवन से स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान के अलावा भी कई तरह के खतरे हैं. शराब का सेवन दिल, दिमाग, लीवर और किडनी की दो सौ से भी ज्यादा बीमारियों को न्योता देता है. कई मामलों में यह कैंसर का भी प्रमुख कारण बन जाता है. कम उम्र के किशोरों में शराब पीने की बढ़ती प्रवृत्ति का उनके भविष्य और रोजगार पर सीधा असर पड़ता है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि शराब का बढ़ता सेवन समाज के हर तबके के लोगों को समान रूप से प्रभावित करता है. शराब की बढ़ती खपत का अर्थव्यवस्था से भी संबंध है.
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि शराब पीकर काम पर आने वाले कर्मचारियों की वजह से उत्पादकता को जो नुकसान होता है उससे भारत जैसे किसी भी विकासशील देश को सालाना उत्पादन में लगभग एक फीसदी नुकसान होता है. और यह एक मोटा अनुमान है. एक गैर-सरकारी संगठन के प्रमुख नृपेन धर कहते हैं, "किशोरों में बढ़ते शराब का सेवन का दूरगामी असर हो सकता है. इससे उनके भावी जीवन की दशा-दिशा तो तय होती ही है, जीवन में उनको कई तरह की बीमारियों से भी जूझना पड़ता है."
कैसे उपाय
विशेषज्ञों का कहना है कि शराब की बढ़ती खपत पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र को एक राष्ट्रीय नीति बनानी चाहिए. उनकी दलील है कि शराब की बिक्री से मिलने वाले भारी राजस्व ने ही सरकार के कदमों में बेड़ियां डाल रखी हैं. राजस्व को ध्यान में रख कर ही पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम ने 18 वर्षों से जारी शराबबंदी खत्म कर दी है. लेकिन महज राजस्व के लिए देश के भविष्य से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता. शराब और सिगरेट की बिक्री से होने वाली आमदनी को उसकी वजह से होने वाले स्वास्थ्य खर्च के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए और नई नीति बनाने से पहले नफा नुकसान का हिसाब होना चाहिए.
सरकार एक निश्चित उम्र से पहले किसी के शराब पीने को कानूनी जुर्म बना कर इस समस्या पर काफी हद तक अंकुश लगा सकती है. इसके साथ ही कम उम्र के किशोरों को शराब बेचने की स्थिति में विक्रेता के खिलाफ भी कार्रवाई का प्रावधान रखा जाना चाहिए. सामाजिक संगठनों को भी आम लोगों में शराब के खतरे के प्रति आगाह करने के लिए जागरुकता अभियान चलाना होगा. इन अभियानों में स्कूलों और कालेजों पर खास ध्यान देना जरूरी है. लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या चंद रुपए के लालच को छोड़ कर सरकार भावी पीढ़ी और देश को शराब के कुप्रभावों से बचाने की दिशा में कोई ठोस पहल करेगी? विशेषज्ञों के मुताबिक, फिलहाल तो इसकी उम्मीद कम ही है.
ब्लॉग: प्रभाकर