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भारत को दमनकारी बना रहे हैं ऐसे कानून

२४ मई २०१६

भारत में कानूनों का इस्तेमाल असहमति की आवाजों को दबाने के लिए किया जा रहा है. ये कानून न सिर्फ पुराने पड़ चुके हैं बल्कि आधुनिक समाज का हिस्सा होने लायक भी नहीं हैं.

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छात्र संघ के नेता पर देशद्रोह का मुकदमातस्वीर: Reuters

असहमति की आवाजों को दबाने के लिए भारत में अक्सर पुराने पड़ चुके ऐसे कानूनों का इस्तेमाल होता है जिनके शब्द इतने ढीले हैं कि आप उन्हें किसी भी तरह प्रयोग कर सकते हैं. मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट ने इस आधार पर सरकार से अपील की है कि पुराने कानूनों को हटाया जाए या उनमें संशोधन किया जाए ताकि बोलने की आजादी को बचाया जा सके.

ह्यूमन राइट्स वॉच नामक संस्था की एक रिपोर्ट में आजादी से पहले के ऐसे कानूनों की एक सूची दी गई है जिनके जरिए बोलने की आजादी पर हमला हुआ है. इन कानूनों के जरिए मानहानि से लेकर देशद्रोह तक के मुकदमे दर्ज किए गए हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच की यह रिपोर्ट कन्हैया कुमार और उसके साथियों पर दर्ज किए गए देशद्रोह के मुकदमे के कुछ ही समय बाद आई है. जवाहर लाल यूनिवर्सिटी के छात्र कन्हैया कुमार, उमर और अनिर्बान पर देशद्रोह का मुकदमा चल रहा है. उनकी मौजूदगी में यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था जिसमें कथित तौर पर भारत मुर्दाबाद के नारे लगाए गए. इन तीनों की गिरफ्तारी के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे. तीनों फिलहाल जमानत पर जेल से बाहर हैं.

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छात्रों का विरोध प्रदर्शनतस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/D. Chakraborty

ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने एक बयान में कहा, "भारत के ये अपमानजनक कानून एक दमनकारी समाज की बानगी हैं न कि एक आगे बढ़ते लोकतंत्र की." उन्होंने कहा कि आलोचकों को जेल में डालने जैसी कार्रवाई खतरनाक है. गांगुली ने कहा, "अपने आलोचकों को कैद करना, उन्हें लंबी-दुरूह कानूनी प्रक्रिया में उलझाना और अपना बचाव करने के लिए मजबूर करना दिखाता है कि इंटरनेट के इस आधुनिक जमाने में भारत सरकार अभिव्यक्ति की आजादी और कानून के राज को लेकर कितनी प्रतिबद्ध है."

ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट कहती है कि राजद्रोह के कानून का सबसे ज्यादा दुरुपयोग होता है. इस कानून के तहत ऐसा कुछ भी करना अपराध है जो सरकार के खिलाफ नफरत या अवमानना भड़का सकता है. इस अपराध के लिए उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. हालांकि इस तरह के मामलों में सजा होना बहुत कम सामने आया है लेकिन कानूनी प्रक्रिया बेहद धीमी है और जिन पर यह मुकदमा दर्ज किया जाता है वे लोग कई-कई साल जेलों में सुनवाई के इंतजार में गुजार देते हैं.

2012 में तमिलनाडु की पुलिस ने हजारों लोगों के खिलाफ राजद्रोह का केस दर्ज कर लिया था. ये लोग एक न्यूक्लियर पावर प्लांट के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2014 में पूरे देश में राजद्रोह के 47 मुकदमे दर्ज हुए. इनमें सिर्फ एक व्यक्ति को दोषी पाया गया.

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आर्टिस्ट असीम त्रिवेदी की गिरफ्तारीतस्वीर: AP

संस्था की रिपोर्ट कहती है कि धार्मिक भावनाएं भड़काने के खिलाफ बनाया गया कानून भी अभिव्यक्ति की आजादी पर कड़ा प्रहार करता है. इस कानून के चलते प्रकाशकों, लेखकों और कलाकारों को खुद ही अपने ऊपर सेंसरशिप लागू करनी पड़ी है. मसलन 2014 में पेंग्विन इंडिया ने हिंदू धर्म के इतिहास पर लिखी अमेरिकन लेखक वेंडी डोनिगर की किताब को खुद ही बाजार से हटा लिया था क्योंकि एक धार्मिक संगठन ने उस पर मुकदमा कर दिया था.

वीके/एमजे (एएफपी)