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भारत की लाचार स्वास्थ्य व्यवस्था

२० सितम्बर २०१५

भारत में हर साल लाखों लोग सही समय पर सही इलाज ना मिल पाने के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं. यह हाल उस देश का है, जो खुद को जल्द ही दुनिया के सामने एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

30 साल के सुमन के दोनों गुर्दे खराब हैं. बाकी दोनों भाइयों की तरह उसे भी गुर्दे की बीमारी है. सबसे बड़े भाई की इस बीमारी के चलते मौत हो चुकी है. बेहतर उपचार के लिए बिहार से दिल्ली आए सुमन यहां महंगा इलाज कराने में असमर्थ है. परिवार पहले ही इलाज के लिए खेती की जमीन बेच चुका है. महंगी दवा उनकी पहुंच के बाहर है.

यह कहानी अकेले सुमन की नहीं है. भारत में हर साल लाखों लोग सही समय पर सही इलाज ना मिल पाने के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं. यह हाल उस देश का है, जो खुद को जल्द ही दुनिया के सामने एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है.

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भारत में 1,050 मरीजों के लिए एक ही बेड उपलब्ध है.तस्वीर: AFP/Getty Images

नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन एनएसएसओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी के पास न तो कोई सरकारी स्वास्थ्य योजना पहुंचती है और न ही कोई निजी बीमा. ऐसे में जान बचाने के लिए उनके पास इलाज के लिए कर्ज लेना ही एक मात्र उपाय बचता है.

गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के लिए सरकारी अस्पतालों में बहुत सी स्कीमें हैं लेकिन वे स्कीमें सही तरीके से लागू नहीं होती. कई बार मरीज सरकारी अस्पताल के चक्कर लगाता है लेकिन परामर्श के बाद भी सही दवा नहीं मिलती. बहुत से गरीबों को अपने अधिकारों के बारे में नहीं पता है. जो मरीज सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए जाते हैं, उन्हें लंबी लंबी कतारों में लगना पड़ता है और जब डॉक्टर से मुलाकात का समय मिलता है, तो ज्यादातर दवा वहां उपलब्ध नहीं होती.

भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां 1,050 मरीजों के लिए सिर्फ एक ही बेड उपलब्ध है. इसी तरह 1,000 मरीजों के लिए 0.7 डॉक्टर मौजूद है. बड़ी आबादी के लिए महंगे और निजी अस्पतालों में इलाज कराना तो बहुत दूर की बात है, इतनी बड़ी आबादी के लिए भारत पहले से ही स्वास्थ्य क्षेत्र पर सबसे कम खर्च करने वाला देश है.

कुल जीडीपी का मात्र एक से दो फीसदी हिस्सा देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च किया जाता है. अगर देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करना है, तो देश की आबादी की सेहत के लिए भी सोचना पड़ेगा. सवा अरब की आबादी वाले देश में अगर जनता की सेहत का सही ख्याल रखना है, तो केवल बेहतर नीतियां बनाने से ही काम नहीं चलेगा, उन्हें अमल में भी लाना होगा. सरकारों में स्वास्थ्य नीति बनाने वालों को सुनिश्चित करना होगा कि इलाज के लिए भटकते मरीजों को सही समय पर सही उपचार मिल सके.

ब्लॉग: आमिर अंसारी