भारतीय सांसद भी कर सकते हैं गंभीर चर्चा
२२ दिसम्बर २०१५आम तौर पर लोग संसद में होने वाले हंगामों से ही परिचित हैं, लेकिन आज संसद की कार्यवाही देखने वालों को यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ होगा कि हमारे सांसद यदि चाहें तो वे बेहद गंभीर चर्चा भी कर सकते हैं. किशोर न्याय विधेयक के पक्ष और विपक्ष में बोलने वाले सांसदों ने आज जिस संजीदगी और गंभीरता के साथ विधेयक के एक-एक वाक्य पर विचार किया और सरकार को अपने सुझाव दिये, उससे देश के संसदीय लोकतंत्र के भविष्य के प्रति आश्वस्ति होती है.
राज्यसभा में चर्चा की पृष्ठभूमि में पिछले कुछ दिनों से राजधानी दिल्ली में चल रहे प्रदर्शन हैं जो तीन साल पहले चलती बस में एक युवती के साथ हुए नृशंस बलात्कार के दोषी के रिहा किए जाने के विरोध में किए जा रहे हैं. बलात्कार के दौरान पाशविक हिंसा करने वालों में एक सत्रह साल का किशोर भी शामिल था जो अभी इसी महीने बाल सुधार गृह से रिहा हुआ है. अभी तक के कानून के मुताबिक 18 वर्ष से कम उम्र का अपराध करने वाला बालक ही माना जाता है और अपराध चाहे कितना भी जघन्य क्यों न हो, उसे तीन साल से ज्यादा की सजा नहीं दी जा सकती. और यह सजा भी वह जेल में नहीं, बाल सुधार गृह में रहकर काटता है.
जनमत के दबाव में सरकार ने लोकसभा में एक नया किशोर न्याय विधेयक पेश किया और पारित कराया. राज्यसभा द्वारा पारित होने के बाद अब सिर्फ राष्ट्रपति के दस्तखत की देर है कि यह विधेयक कानून में बदल जाएगा. इस विधेयक में यह प्रावधान है कि यदि बलात्कार जैसा जघन्य अपराध करने वाला व्यक्ति 16 और 18 वर्ष के बीच की उम्र का हो, तो उस पर बालिग की तरह मुकदमा चलाया जा सकता है और तीन वर्ष के बजाय सात वर्ष तक की सजा दी जा सकती है. विधेयक में यह सावधानी बरती गई है कि किसी भी सूरत में दोषी को फांसी या उम्रकैद की सजा नहीं दी जाएगी और उसे जेल में अपराधियों के साथ नहीं रखा जाएगा.
विधेयक के आलोचकों का तर्क है कि जिन देशों में भी इस तरह के कानून बने हैं, वहां किशोरों के द्वारा किए जाने वाले गंभीर अपराधों में कोई खास कमी नहीं आई है. दूसरे, उनका सवाल है कि क्या न्याय का लक्ष्य दोषी से बदला लेना है या उसे सुधारना है. खासकर तब, जब अपराध करने वाला अपरिपक्व मानसिकता का किशोर हो. उनका यह भी कहना है कि जनता की मांग पर कानून में बदलाव करना भीड़ की मानसिकता को बढ़ावा देना है. लेकिन विधेयक के समर्थकों का तर्क है कि देश में बाल सुधार गृह भी इतनी खराब हालत में हैं कि वहां रहकर किसी के सुधारने की गुंजाइश जरा कम ही है. साथ ही, यदि कोई किशोर वयस्कों की तरह बलात्कार जैसा जघन्य अपराध करता है तो उसे क्यों न वयस्कों की तरह ही सजा भी दी जाए.
राज्यसभा में सांसदों ने विधेयक की बारीकी से समीक्षा की और अपने सुझाव दिए. आशा की जानी चाहिए कि भविष्य में सभी मुद्दों पर इसी तरह से गंभीर बहस होगी और सांसदों के अच्छे सुझावों को विधेयक में जगह दी जाएगी. विधेयकों पर बहस के माध्यम से मुद्दों पर देशव्यापी बहस का जन्म होता है जिससे भविष्य में और बेहतर कानून बनाने का रास्ता खुलता है.