1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भविष्य में होंगे मस्तिष्क प्रत्यारोपण

१ मई २०१४

बेहद गोपनीय अमेरिकी सैन्य शोधकर्ताओं का कहना है कि अगले कुछ महीनों में वे मस्तिष्क प्रत्यारोपण के विकास से जुड़ी नई प्रगति के बारे में जानकारी पेश करने वाले हैं. मस्तिष्क प्रत्यारोपण की मदद से याददाश्त बहाल की जा सकेगी.

https://p.dw.com/p/1BrxT
तस्वीर: Fotolia/vladgrin

अमेरिका की डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (डीएआरपीए) प्रबुद्ध स्मृति उत्तेजक को बनाने की योजना के कार्यक्रम का नेतृत्व कर रही है. यह इंसानी दिमाग को बेहतर तरीके से समझने के लिए बनाई गई योजना का हिस्सा है. इस योजना में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दस करोड़ अमेरिकी डॉलर की सहायता दी है.

विज्ञान ने पहले ऐसा काम नहीं किया है. और इस पर नैतिक सवाल भी उठ रहे हैं कि जख्मी सैनिक की याददाश्त को बहाल करने और बूढ़े होते मस्तिष्क के प्रबंधन के नाम पर क्या इंसानी दिमाग के साथ छेड़छाड़ जायज है.

कुछ लोगों का कहना है कि जिन लोगों को इससे लाभ पहुंचेगा उनमें पचास लाख अमेरिकी हैं जो अल्जाइमर बीमारी से पीड़ित हैं और करीब तीन लाख अमेरिकी फौजी हैं जिनमें महिलाएं और पुरुष शामिल हैं. ये वो सैनिक हैं जो इराक और अफगानिस्तान में युद्ध के दौरान घायल हुए और उनके मस्तिष्क में चोटें आई.

डीएआरपीए के प्रोग्राम मैनेजर जस्टिन साचेंज ने इसी हफ्ते अमेरिकी राजधानी में हुई एक कॉन्फ्रेंस में कहा, "अगर आप ड्यूटी के दौरान घायल हो जाते हैं और आप अपने परिवार को याद नहीं रख पाते हैं, ऐसे में हम चाहते हैं कि हम इस तरह के कामों को बहाल कर सकें. हमें लगता है कि हम न्यूरो कृत्रिम उपकरण का विकास कर सकते हैं जो सीधे हिप्पोकैंपस से इंटरफेस कर सकें और पहली प्रकार की यादें बहाल कर सकें. हम यहां एक्सप्लिसिट मेमरी के बारे में बात कर रहे हैं."

बहाल होंगी यादें

एक्सप्लिसिट मेमरी यानि स्पष्ट यादें, ये लोगों, घटना, तथ्य और आंकड़ों के बारे में स्मरणशक्ति है और किसी भी शोध ने यह साबित नहीं किया है कि इन्हें दोबारा बहाल किया जा सकता है. अब तक शोधकर्ता पार्किंसन बीमारी से पीड़ित लोगों में झटके कम करने में मदद कर पाए हैं और अल्जाइमर के पीड़ितों में डीप ब्रेन सिमुलेशन प्रक्रिया की मदद से याददाश्त मजबूत करने में सफल हुए हैं.

इस तरह के उपकरण हृदय पेसमेकर से प्रोत्साहित हैं और दिमाग में बिजली को पहुंचाते हैं लेकिन यह हर किसी के लिए काम नहीं करता है. जानकारों का कहना है कि स्मृति बहाली के लिए और अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण की जरूरत होगी. वेक फॉरेस्ट यूनिवर्सिटी के सहायक प्रोफेसर रॉबर्ट हैंपसन कहते हैं, "स्मृति, पैटर्न और कनेक्शन की तरह है." डीएआरपीए की योजना पर टिप्पणी से इनकार करते हुए वे कहते हैं, "हमारे लिए स्मृति कृत्रिम बनाना वास्तव में ऐसा कुछ बनाने जैसा है जो विशिष्ट पैटर्न देता हो."

चूहों और बंदरों पर हैंपसन के शोध से पता चलता है कि हिप्पोकैंपस में न्यूरॉन्स तब अलग तरह से प्रक्रिया देते हैं, जब वे लाल या नीला रंग या फिर चेहरे की तस्वीर या भोजन के प्रकार को देखते हैं. हैंपसन का कहना है कि मानव की विशिष्ट स्मृति को बहाल करने के लिए वैज्ञानिकों को उस स्मृति के लिए सटीक पैटर्न जानना होगा. सिंथेटिक जीव विज्ञान पर डीएआरपीए को सलाह देने वाले न्यूयॉर्क के लैंगोनी मेडिकल सेंटर में चिकित्सा विज्ञान में नैतिकता पर काम करने वाले आर्थर कैपलान कहते हैं, "जब आप दिमाग से छेड़छाड़ करते हैं तो आप व्यक्तिगत पहचान से भी छेड़छाड़ करते हैं. दिमाग में फेरबदल की कीमत आप स्वयं की भावना को खोने की जोखिम से करते हैं. इस तरह का जोखिम नई तरह का है, जिसका हमने कभी सामना नहीं किया है."

एए/आईबी (एएफपी)