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और कौन ले सकता है ब्रिटेन जैसी 'एक्जिट'

आरपी/आईबी (पीटीआई, एएफपी, डीपीए)२५ फ़रवरी २०१६

पिछले साल तक मुश्किल दिख रही 'ब्रेक्जिट' की तस्वीर ब्रिटिश पीएम कैमरन के विरोधी बोरिस जॉनसन के मैदान में कूदने के साथ ही साफ होती दिखने लगी है. यूरोपीय संघ से बाहर के रास्ते पर ब्रिटेन के अलावा जा सकते हैं और भी देश.

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Großbritannien Cameron und Johnson in London
तस्वीर: picture alliance/empics/Y. Mok

1973 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर के कार्यकाल में ब्रिटेन यूरोपीय संघ में शामिल हुआ था. लेकिन ब्रिटेन ने साझा मुद्रा यूरो नहीं अपनाई, खुद को शेंगेन के पासपोर्ट-मुक्त क्षेत्र से बाहर रखा. ब्रिटेन ने अपना मुक्त बाजार रवैया जारी रखा और नीदरलैंड्स, स्वीडन जैसे कुछ अन्य देशों ने भी ऐसा किया. एक बार फिर इतिहास खुद को दोहरा सकता है कि ब्रिटेन के ईयू से बाहर निकलने के साथ ही और 28 देशों के ब्लॉक के कुछ अन्य देश भी इस राह चलें.

Brexit Symbolbild
ब्रेक्जिट से यूरोप में चल सकती है राष्ट्रीयता और अलगाववाद की एक लहरतस्वीर: picture alliance/Klaus Ohlenschläger

2004 में ईयू में शामिल हुए चेक गणराज्य के प्रधानमंत्री बोहुस्लाव सोबोत्का ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को एक ईमेल में दिए जवाब में कहा है कि ब्रिटेन के ईयू को छोड़ने से यूरोप में राष्ट्रीयता और अलगाववाद की एक लहर चल सकती है.

ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन अपने देश को ईयू के साथ बनाए रखने के लिए देश भर में दौरे कर रहे हैं. दूसरी ओर ब्रिटिश कैबिनेट ही इस मुद्दे पर विभाजित है. 17 सदस्य ईयू के साथ रहने तो पांच ब्रेक्जिट के पक्ष में हैं. यहां तक की खुद कैमरन की कंजर्वेटिव पार्टी के सांसदों में 142 ईयू तो 120 ब्रेक्जिट चाहते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिटेन ईयू में बना रहेगा लेकिन लंदन के मेयर जॉनसन के ब्रेक्जिट के पक्ष में प्रचार करने से ईयू विरोधी खेमे को काफी बल मिला है.

कैमरन ने ईयू नेताओं के साथ 19 फरवरी को इस बात पर सहमति बनाई कि वे ब्रिटेन को ईयू के साथ बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे. इस बीच कैमरन ने संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन के लिए एक स्पेशल स्टेटस डील तय कर ली है जो कि 23 जून के रेफरेंडम के बाद प्रभाव में आ जाएगी.

ईयू अध्यक्ष डोनाल्ड टुस्क ने कहा है कि शरणार्थी संकट पर संघ के कदमों से ब्रिटिश जनता के ब्रेक्जिट के विचार मजबूत हुए हैं. टुस्क का मानना है कि 23 जून तक ईयू मिलकर इस संकट को हल करने के लिए जो कुछ भी करेगा, वह ब्रिटिश जनता के जनमत संग्रह पर असर डालेगा.

भारत की एक प्रमुख इंडस्ट्री समूह फिक्की ने ब्रिटेन के ईयू छोड़ने की स्थिति पर गहरी चिंता जताई है. फिक्की यानि फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के महासचिव डॉक्टर ए दीदार सिंह ने बताया है कि ब्रिटेन के बाहर निकलने से यूके में काम कर रही कई भारतीय कंपनियों के लिए काफी अनिश्चितता पैदा होगी. भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल नवंबर-दिसंबर में अपनी यूके यात्रा के दौरान कहा था कि ब्रिटेन कई भारतीय कंपनियों के लिए यूरोपीय संघ में प्रवेश का रास्ता है.

वहीं ब्रिटिश पीएम कैमरन की कैबिनेट में भारतवंशियों के लिए प्रमुख चेहरा रहीं प्रीती पटेल ब्रेक्जिट के समर्थन में हैं. पटेल का मानना है कि ईयू छोड़ने के बाद ब्रिटेन और भारत के बीच संबंध और मजबूत होंगे.

ब्रिटेन में 23 जून को इस मामले पर होने वाले जनमत-संग्रह पर डॉक्टर सिंह ने कहा, "ईयू में ब्रिटेन की सदस्यता का निर्णय ब्रिटेनवासियों की संप्रभुता का मामला है लेकिन भारतीय उद्योगों का मानना है कि ऐसे संशय के माहौल में कोई भी विदेशी कारोबार उससे अछूता नहीं रह सकता. इससे निवेश और रोजगार के मामले में बुरा असर पड़ सकता है.