ब्राजील के सामने हॉलैंड का नारंगी सांबा
३ जुलाई २०१०वर्ल्ड कप का यह नतीजा हैरान कर देने वाला था. यह ठीक है कि नीदरलैंड्स ने इस बार के सारे मैच जीते थे लेकिन वह पांच बार की चैंपियन को हरा देगा, यह किसी ने नहीं सोचा था. ब्राजील के रियो द जनेरो, साऊ पाओलो और ब्राजीलिया जैसे शहरों में दोपहर के 12 या एक बज रहे होंगे. समुद्र किनारे गाने बजाने का इंतजाम हो चुका था. नगाड़े निकल चुके थे. बीयर की बोतलें खुलनी शुरू हो गई थीं. हर बार की तरह जश्न की रस्म बस मनने ही वाली थी.
मैच पूरा का इंतजार था. पहले हाफ में ब्राजील गोल कर चुका था. पोर्ट एलिजाबेथ में कोच कार्लोस डुंगा आगे की रणनीति पर विचार शुरू कर चुके होंगे. अर्जेंटीना से भिड़ना होगा तो क्या करेंगे, जर्मनी से कैसे निपटेंगे.
लेकिन नारंगी रंग के सैलाब ने ब्राजील के मजबूत खंभे उखाड़ दिए. फेलिपे मेलो को रेड कार्ड क्या मिला, सारे सपने बिखर गए. मेलो का सिर पहले ही दगा दे चुका था, जिससे टकरा कर गेंद जाल में जा समाई थी और ब्राजील की बढ़त खत्म हो गई थी. अब उनकी खता ने आगे का खेल खराब कर दिया.
इधर, रेफरी का हाथ दाहिनी जेब में गया, उधर कोच डुंगा के हाथ अपने सिर पर. शायद उन्होंने समझ लिया कि यह रेड कार्ड नहीं, टीम के लिए लाल झंडी है. पर खेल बच रहा था. कई मिनट का खेल बच रहा था. ग्राउंड पर पूरे 10 ब्राजीली फुटबॉलर बच रहे थे. उनके हौसले बच रहे थे और दुनिया भर में ब्राजील को चाहने वालों की उम्मीदें बच रही थीं. दस खिलाड़ियों से भी ब्राजील एक गोल कर देगा. ऐसा सोचना कोई बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं होती.
जोहानिसबर्ग और पोर्ट एलिजाबेथ से लेकर अगले वर्ल्ड कप के मेजबान ब्राजील के शहरों तक में सांबा की धुनें बज रही थीं. पांव थिरक रहे थे. बीयर की चुस्कियां ली जा रही थीं. पर इस बीच, नीदरलैंड्स ने कुछ और मंसूबे बना लिए थे.
ब्राजील को पटकने के लिए थोड़ा साम, दाम और थोड़ी तेज़ी की रणनीति तैयार थी. काका सहित ब्राजीली खिलाड़ी आपा खोने लगे और शायद यहीं से मैच पर पकड़ भी. नारंगी रंग वालों की रणनीति काम कर गई. उन्हें बस एक ही तो मौका मिला, जिसे उन्होंने भुना लिया.
दस खिलाड़ियों के साथ एक गोल किया तो जा सकता है, पर उतारना मुश्किल है. ब्राजील भी यह नहीं कर पाया. खेल खत्म. मैच के बाद ब्राजीली खेमे में सन्नाटा पसर गया. फुटबॉल चाहने वालों के होठों की तरह नगाड़े भी बंद हो गए. सांबा थम गया. कम कपड़ों में मुंह पर ब्राजीली झंडे पुतवा कर मैच देखने आई लड़कियों के चेहरे उतर गए. सब लाचारी से एक दूसरे की ओर देखने लगे. यकीन मुश्किल था. कुछ बोलना भी मुश्किल. खामोशी पसर चुकी थी.
बीच बीच में फुटबॉल के किसी दीवाने की सिसकी जरूर सुनाई दे जाती, लेकिन फिर वही खामोशी. ग्राउंड के अंदर जर्सी बदलने और एक दूसरे से गले मिलने के रिवाज पूरे किए जाते रहे. किसी किसी ने पसीना पोंछने के बहाने नम आंखों को टी शर्ट से पोंछ लिया तो किसी ने बरबस भर आई आंखों का पानी गालों पर ढलक जाने दिया.
आंसुओं की मोटी पतली लकीरें ग्राउंड के अंदर से बाहर तक खिंच गईं. यह लकीर पोर्ट एलिजाबेथ से रियो द जनेरो तक खिंच चुकी थी. शायद उससे भी कहीं ज्यादा. हर उस जगह, जहां फुटबॉल के मामले में ब्राजील को अपना माना जाता है. लाखों करोड़ों लोगों के लिए वर्ल्ड कप तय समय से 10 दिन पहले ही खत्म हो चुका था. आगे के नतीजे उनके लिए कोई मायने नहीं रखते.
लेकिन यह तो फुटबॉल विश्व कप है. ब्रह्मांड का सबसे बड़ा खेल मेला. यहां आंसुओं में कुछ भी खत्म नहीं होता. ग्राउंड के अंदर सांबा चल रहा था. परंपरागत पीले कपड़ों की जगह ऑरेंज यानी नारंगी कपड़ों में. नीदरलैंड्स के खिलाड़ी अपनी कामयाबी पर जी भर कर जश्न मना लेना चाहते थे. आखिर उन्होंने इस विश्व कप में अब तक का सबसे बड़ा नतीजा भी तो दिया है.