ब्रसेल्स में बजट पर बातचीत नाकाम
२४ नवम्बर २०१२आपसी मतभेदों को दूर करने की सारी कोशिशें आखिरकार नाकाम रहीं और बस यह सुझाव ही आते रहे कि संकट से जूझ रहे इलाके को तुरंत आपसी सहमति बनानी होगी ताकि जरूरी भरोसा लौटाया जा सके. यूरोपीय संघ का बजट तय कर पाना शुरू से ही काफी माथापच्ची का काम रहा है और इसके लिए सहमति हासिल करने में हमेशा ही बहुत खींचतान होती है. इस बार तो मामला और कठिन है, संकट से जूझ रहे देश खर्च में कटौतियों के कारण घरेलू स्तर पर लोगों का भारी गुस्सा झेल रहे हैं. ऐसे में 2014-20 का बजट तय कर पाना अब तक की सबसे मुश्किल बातचीत में से एक साबित हो रहा है.
ब्रसेल्स में गुरुवार और शुक्रवार को बातचीत करने के बाद भी सहमति भले ही न बन पाई हो लेकिन यूरोपीय संघ के नेताओं ने यह जताने में जरा भी देर नहीं कि यह कोई बड़ी बात नहीं है. उनकी दलील है कि कोई बड़ा विवाद नहीं है उन्हें बस थोड़े और समय की जरूरत है और वो जल्दी ही एक साझा आधार ढूंढ लेंगे और फिर जब नए साल की शुरुआत में अगले दौर की बातचीत होगी तो सहमति बन जाएगी. फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद ने कहा, "मैं वह (नाकाम) शब्द इस्तेमाल नहीं करूंगा क्योंकि यह सही नहीं है. कोई हारा नहीं, न ही कोई जीता क्योंकि कोई करार नहीं हो सका."
उधर स्पेन के प्रधानमंत्री मारियानो राजोय ने कहा है, "नेताओं ने नेक ख्वाहिश जताई है, समझौता हमेशा एक कला होती है." हालांकि हाल के दिनों में यह ज्यादा कामयाब साबित नहीं हुआ. 2014-20 के बजट पर सहमति बनाने की कोशिश नाकाम होने के एक हफ्ते पहले ही 2013 के बजट पर बातचीत भी टूट गई. यहां यूरोपीय संघ के देशों की सरकारें प्रक्रियाओं के मुद्दे पर उलझ गईं और फिर समझौता नहीं हो सका.
बजट सम्मेलन से महज दो दिन पहले ही दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुके ग्रीस के लिए बेलआउट के फैसले पर देरी के लिए यूरोजोन के वित्त मंत्री इस बीच सुर्खियों में रहे. 12 घंटे की बातचीत के बाद भी लंबे समय के लिए उपायों पर सहमति नहीं बन सकी. बजट पर सहमति न होने से यूरोपीय संघ की समस्याओं को सुलझाने वाली छवि पर जो बट्टा बजट लगा रहा है वो तो अपनी जगह है ही, इसके अलावा कुछ व्यावहारिक दिक्कतें भी सामने आएंगी. विश्लेषक चेतावनी दे रहे हैं कई देशों को अपना खर्च घटाने पर मजबूर होना पड़ेगा.
यूरोपियन पॉलिसी सेंटर थिंक टैंक से जुड़े फाबियान जुलिग कहते हैं, "इसके आगे बढ़ने से और कुछ नहीं तो कम से कम यूरोप के खर्चों में तो देरी होगी ही, वो भी ऐसे वक्त में जब अर्थव्यवस्थायें बुरा प्रदर्शन कर रही हैं और उन्हें अलग से मदद की जरूरत है." ब्रसेल्स की बैठक नाकाम होने के पीछे ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को बड़ी वजह माना जा रहा है. ब्रिटेन का कहना है कि यूरोपीय संघ के खर्चों को 2011 के स्तर पर ही रखा जाए जबकि खर्चों में कटौती के दौर में इसे घटाने की मांग हो रही है. जुलिग का कहना है, "जब कोई देश किसी समझौते पर राजी होने के लिए तैयार नहीं हो रहा हो तो कुछ बुनियादी फैसले होने चाहिए. क्या वह यूरोपीय संघ के देशों के साथ काम करने को तैयार है या फिर उसे हमेशा के लिए बाहर हो जाना चाहिए."
बजट पर जब अगली बैठक होती तो ब्रिटेन का पड़ोसी आयरलैंड बड़ी भूमिका निभाएगा. यूरोपीय संघ की अध्यक्षता घूमते घूमते एक जनवरी से उसके पास पहुंच रही है अगले छह महीने तक उसी के पास रहेगी. आयरिश प्रधानमंत्री एंडा केन्नी ने पहले ही चेतावनी दे दी है कि अगर 2014-20 के खर्चों पर सहमति नहीं बन पाई तो अध्यक्षता बीच में ही खत्म की जा सकती है. आयरिश प्रधानमंत्री ने कहा, "देश को इस समय तो बड़ा बोझ उठाना पड़ ही रहा है लेकिन अगर सहमति नहीं हो पाई तो कारगर अध्यक्षता बनाए रखने में भी काफी मुश्किल आएगी.
एनआर/ओएसजे(डीपीए)