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बॉलीवुड में बढ़ी महिलाओं की अहमियत: माधुरी

१ मार्च २०१४

वर्ष 1984 में अबोध फिल्म से अपना करियर शुरू करने वाली अभिनेत्री माधुरी दीक्षित कहती हैं कि हिंदी फिल्म उद्योग में अब महिलाओं की अहमियत बढ़ रही है.

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Madhuri Dixit
तस्वीर: UNI

माधुरी दीक्षित का कहना है कि पहले महिलाएं सिर्फ अभिनेत्री या हेयर ड्रेसर के तौर पर ही सेट पर नजर आती थीं लेकिन अब वे पटकथा लेखन और निर्देशन से लेकर कैमरे के पीछे तक हर विधा में सक्रिय हैं. अपनी फिल्म गुलाब गैंग के प्रमोशन के सिलसिले में कोलकाता पहुंची माधुरी ने अपने तीन दशक लंबे सफर और फिल्मोद्योग में आए बदलावों पर डॉयचे वेले से बातचीत की. पेश हैं मुख्य अंश:

छह-सात वर्षों बाद फिल्मों में वापसी का अनुभव कैसा रहा?

देखिए, मैं इसे वापसी नहीं मानती. मैंने फिल्मों को कभी अलविदा तो कहा नहीं था. बस परिवार के लिए अभिनय से एक ब्रेक लिया था. आमिर खान जैसे अभिनेता भी तीन-चार साल का ब्रेक लेते हैं. तब तो कोई वापसी नहीं कहता. मेरे मामले में ऐसा क्यों. मुझे तब और अब में कोई खास फर्क नहीं महसूस हुआ.

क्या अमेरिका में रहने के दौरान मुंबई लौटने का ख्याल मन में हमेशा बना था?

मुंबई ने मुझे जीवन में सबकुछ दिया है. इसलिए यहां लौटना तो मेरी नियति थी. मैंने कभी अभिनय के बारे में सोचा तक नहीं था. लेकिन नियति ने मुझे सही समय पर सही जगह खड़ा कर दिया. मुझे सही मौके भी मिलते रहे. इसके अलावा मैंने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए काफी मेहनत की. मेरे माता-पिता भी चाहते थे कि मैं यहां लौटूं.

Madhuri Dixit
तस्वीर: Getty Images

गुलाब गैंग एक महिला प्रधान फिल्म है. फिल्मोद्योग में महिलाओं की स्थिति में पहले के मुकाबले कैसे बदलाव आए हैं?

अब फिल्मोद्योग में महिलाओं की अहमियत बढ़ी है और उनकी भूमिकाएं बदली हैं. अब वह लेखन से निर्देशन तक हर क्षेत्र में सक्रिय हैं. नई पीढ़ी के निर्देशक भी अब महिलाओं को नए नजरिए से देख रहे हैं. पहले फिल्मों में महिलाओं के लिए अभिनय प्रतिभा दिखाने के मौके कम थे. लेकिन अब महिला किरदारों को ध्यान में रखते हुए कहानियां लिखी जा रही हैं.

इस फिल्म में काम करने का अनुभव कैसा रहा?

बेहद अच्छा. इसमें अच्छा और बुरा दोनों किरदार महिलाओं ने ही निभाया है. यह मौजूदा दौर में काफी प्रासंगिक है. यह फिल्म समाज में महिलाओं की स्थिति को दर्शाते हुए सामाजिक बदलाव पर जोर देती है. दिलचस्प यह है कि इसकी पटकथा एक पुरुष ने लिखी है. मुझे उम्मीद है कि समाज में महिलाओं के प्रति पुरुषों का नजरिया जल्दी ही बदलेगा. ऐसी और फिल्में बननी चाहिए.

आपने फिल्मोद्योग में तीन दशक का सफर पूरा कर लिया है. पहले के मुकाबले आज की स्थिति में कितना फर्क आया है?

अब यह पहले के मुकाबले ज्यादा संगठित है. लेकिन साथ ही दबाव भी ज्यादा है. उस दौर में मैं अभिनय के साथ सीखती रही थी. लेकिन अभिनेताओँ की नई पीढ़ी आत्मविश्वास से भरपूर है. फिल्म निर्माण बेहद प्रोफेशनल हो गया है. तकनीक भी पहले के मुकाबले काफी बेहतर हुई है. अब अभिनेताओं को पहले की तरह दिक्कत नहीं उठानी पड़ती. सारी चीजें पेशेवर तरीके से आगे बढ़ती हैं. भारतीय सिनेमा फिलहाल बेहद दिलचस्प दौर से गुजर रहा है.

तीन दशक बाद भी आपकी सक्रियता और अभिनय में निखार की क्या वजह है?

मेरे भीतर एक शिशु है. अब भी मैं कोई नई चीज देखते ही उसे हासिल करने के लिए बच्चे की तरह मचल उठती हूं. मेरे भीतर नई चीज सीखने और बेहतर करने की भूख हमेशा बनी रहती है. यही चीज मुझे लगातार कुछ नया करने के लिए प्रेरित करती रहती है.

इंटरव्यू: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा