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बेहतर जीवन की चाह में डूबती जिंदगी

ईशा भाटिया (एपी)१७ अगस्त २०१५

जंग से बदहाल देशों के लोग एक नए जीवन की चाह में यूरोप का रुख कर रहे हैं और ऐसा करने में अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं. तुर्की से ग्रीस के कॉस में घुसने की कोशिश करते ऐसे ही लोगों की दास्तान.

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तस्वीर: Getty Images/AFP/L. Gouliamaki

रात के अंधेरे में अचानक ही नौजवानों का एक झुंड सड़क पर निकलता है. प्लास्टिक की कश्ती को संभाले हुए, छिपते छिपाते एजियन के समुद्र तक ले जाता है. यहां खड़े हो कर समुद्र में दूर कहीं दिखती टिमटिमाहट इन्हें अपनी ओर खींच रही है. यह रोशनी एक द्वीप की है, जिसका नाम है कॉस. ग्रीस का यह द्वीप महज चार किलोमीटर दूर है. इन नौजवानों की आजादी बस चार ही किलोमीटर दूर है. लेकिन यह जरा सा फासला तय करना आसान नहीं. ये लोग तुर्की के बोद्रुम में खड़े हैं. वैसे तो यह शहर सैलानियों में लोकप्रिय रहा है लेकिन पिछले कुछ वक्त से यह अवैध रूप से यूरोप आने का सबसे लोकप्रिय रास्ता बन गया है.

जिस प्लास्टिक की कश्ती को ये लोग यहां ले कर आए हैं, उसमें ज्यादा से ज्यादा चार लोग ही सवार हो सकते हैं. लेकिन ये आठ हैं. कश्ती में एक बिजली की मोटर लगा कर कॉस तक पहुंचा जा सकता है. मोहम्मद अली भी ऐसी ही एक कश्ती के इंतजार में बैठा है. 36 साल का अली सीरिया में वकालत की पढ़ाई कर रहा था. अपनी बीवी और दो बेटों के साथ वह सीमा पार कर सीरिया से तुर्की तो आ गया, पर अब आगे का रास्ता मुश्किल दिख रहा है. कुछ दिन पहले तस्करों ने उन्हें कश्ती में ले जाने का वायदा किया था. लेकिन जब चार की जगह कश्ती में 16 लोगों को देखा, तो अली ने ना जाने का फैसला किया, "वह नाव डूबने वाली थी. मुझे डर था कि हम मर जाएंगे, इसलिए मैं नहीं गया."

यही आज की हकीकत है

अली की तरह यहां सीरिया, ईरान, मध्य पूर्व, लीबिया और अफ्रीका के अन्य देशों के लोग हैं, जो ग्रीस से होकर यूरोप में प्रवेश करना चाहते हैं. एक तरफ बोद्रुम के रेस्तरां में बैठे पर्यटक तुर्की के लजीज खाने का लुत्फ उठा रहे हैं, तो दूसरी ओर ताड़ के पेड़ों के नीचे बैठे शरणार्थी किसी चमत्कार का इंतजार कर रहे हैं. वह चमत्कार किसी तस्कर के रूप में आएगा और इन्हें यहां से किसी वीरान बीच पर ले जाएगा. वहीं से फिर इन्हें नाव में भर कर कॉस भेजा जाएगा. हालात ये हैं कि जिन दुकानों पर पर्यटकों को लुभाने के लिए फ्रिज के मैग्नेट और चाबी के छल्ले मिलते थे, वहां अब लाल रंग के लाइफगार्ड भी बिकने लगे हैं. शरणार्थी इन्हें अपने साथ ले जाते हैं ताकि अगर कहीं नांव डूब जाए, तो वे इनके सहारे अपनी जान बचा सकें. एक दुकानदार का कहना है, "यही आज की हकीकत है."

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लोग यहां से निकलने के लिए इतने बेचैन हैं कि अपनी जान को खतरे में डालने को तैयार हैं.तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Palacios

कुछ नावें तो ऐसी हैं, जिन्हें इंटरनेट पर महज 100 यूरो में खरीदा जा सकता है. इनमें सवार होने के लिए ये लोग तस्करों को 1000 यूरो तक चुकाते हैं. कई बार नाव शुरू में ही डूब जाती है. तट से ज्यादा दूर ना होने पर लोग जैसे तैसे अपनी जान बचा लेते हैं. एक महिला नाव को छोड़ कर तट की ओर भागने लगती है. पलट कर वह चीखती है, "तुम लोग अपनी जान को जोखिम में डाल रहे हो. नाव में पानी भर चुका है, वापस आ जाओ." लेकिन ये लोग यहां से निकलने के लिए इतने बेचैन हैं कि अपनी जान को खतरे में डालने से भी पीछे नहीं हटेंगे.

जंग ने सब तबाह कर दिया

आंकड़े बताते हैं कि इस साल रिकॉर्ड लोगों ने यूरोप में प्रवेश करने की कोशिश की है. ग्रीस के अनुसार 134,988 लोग तुर्की के रास्ते वहां पहुंचे हैं, जबकि इटली ने जुलाई तक संख्या 93,540 बताई है. वहीं स्पेन और माल्टा में आंकड़ा 237,000 पार कर चुका है. इस साल 2,300 लोग यूरोप आने की चाह में अपनी जान गंवा चुके हैं. बोद्रुम और कॉस के बीच कितनी जानें गयीं, इस पर कोई आधिकारिक आंकड़े मौजूद नहीं हैं. केवल जुलाई में ही कॉस पहुंचने वाले सीरियाई लोगों की संख्या करीब 7,000 रही.

सीरिया के मोहम्मद अली को इन आंकड़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता. वह तो बस युद्धग्रस्त देश छोड़ कर अपने परिवार के साथ कहीं शांति में रहना चाहता है. इसीलिए वह एक बार फिर समुद्र पार करने की कोशिश करेगा और इस बार लाइफ जैकेट पहन कर, "मेरे लिए सबसे जरूरी मेरा परिवार है. अब मेरे पास अपने देश में रहने का कोई कारण नहीं बचा है. जंग ने सब तबाह कर दिया है."