बूंद-बूंद जिंदगी
धरती पर उपलब्ध कुल पानी का सिर्फ तीन फीसदी पीने लायक है. बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कई जगहों पर समुद्री पानी को पीने लायक बनाया जा रहा है. पूरी दुनिया में नदियां बुरी हालत में हैं.
सिर्फ तस्वीर नहीं
भारतीयों के लिए यह तस्वीर अनोखी या अनजान नहीं. राजस्थान से लेकर अफ्रीका के कई देशों तक में महिलाओं को कई किलोमीटर चल कर पानी लाना पड़ता है. लेकिन असल में ये एक अहम अधिकार से महरूम हैं जो इंसान होने के नाते इन्हें मिलना ही चाहिए.
मारामारी
आज दुनिया का हर दूसरा आदमी किसी न किसी शहर में रह रहा है. उनमें से ज्यादातर लोग महानगरों में रह रहे हैं. इस शहरीकरण ने जो सबसे बड़ी समस्याएं खड़ी की हैं उनमें से एक है पानी. 40 लाख से ज्यादा लोगों के शहर हैदराबाद में पानी की किल्लत, मुसीबत बनी ही रहती है.
गंदे पानी का अनाज
नाइजीरिया के शहर लागोस की झुग्गी बस्तियों में पानी एक बड़ी लड़ाई है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 20 करोड़ लोग ऐसा अनाज खाते हैं जो गंदे पानी से उगाया जाता है. ये लोग खतरनाक महामारियों के खतरे की जद में हैं.
बूंद बूंद को तरसे जीवन
जुलाई 2010 में संयुक्त राष्ट्र ने साफ पीने के पानी और स्वच्छ टॉयलेट को मानवाधिकारों में शामिल किया. लेकिन विकासशील देशों के करोड़ों लोगों के लिए यह अधिकार अभी किसी गिनती में ही नहीं है.
विवाद का असर पानी पर
काबुल की यह बच्ची उन इलाकों का प्रतीक है जहां कोई न कोई विवाद चल रहा है. ऐसे विवादों में शहरों का ढांचा टूट जाता है और पानी जैसी सुविधाएं हासिल कर पाना मुश्किल हो जाता है. बड़ी अफगान आबादी के लिए पानी उपलब्ध नहीं है.
नए नए हल
धरती पर उपलब्ध कुल पानी का सिर्फ तीन फीसदी पीने लायक है. बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कई जगहों पर समुद्री पानी को पीने लायक बनाया जा रहा है. अल्जीरिया की राजधानी अल्जीयर्स में भी ऐसा हो रहा है. लेकिन यह बहुत खर्चीला और तकनीकी रूप से मुश्किल काम है.
सिंगापुर से सीखो
सिंगापुर पानी की कमी से जूझती दुनिया के लिए आदर्श हो सकता है. इस द्वीप पर 50 लाख लोग रहते हैं. लेकिन यहां पीने का पानी लगभग ना के बराबर है. जमीन के नीचे उपलब्ध पानी और बारिश से भी काम नहीं चलाया जा सकता. पहले यह छोटा सा मुल्क मलेशिया से पानी के आयात पर निर्भर था. फिर इसने पानी को रिसाइकल करने की योजना शुरू की. कामयाब योजना.
बनाना पड़ेगा पानी
सिंगापुर में एक भूमिगत सुरंग बनाई गई. यह सुरंग पानी की एक एक बूंद को जमा करती है. उसके बाद एक जटिल प्रक्रिया के तहत रोजाना लगभग आठ लाख क्यूबिक मीटर पानी रिसाइकल किया जाता है. आज पानी रिसाइकल करने के मामले में सिंगापुर दुनिया का लीडर है.
पानी के दो रंग
पानी सिर्फ जरूरत नहीं, विनाश भी है. विशेषज्ञों की आशंका है कि आने वाले वक्त में मौसम में बदलाव पानी की विनाशकारी ताकत को और बढ़ाएंगे. पाकिस्तान की बाढ़ जैसी आपदाओं के जरिए पानी का उम्मीदों पर फिरने वाला रंग नजर आएगा. इसलिए जल्द से जल्द इंसान को नए मौसम के अनुरूप अपनी जरूरतों को ढालना होगा.
बिजली भी घटेगी
न्यूयॉर्क की नियाग्रा नदी पर बना बांध दुनियाभर में फैले उन बांधों का हिस्सा है जहां पानी से बिजली बनाई जा रही है. कुल जरूरत का लगभग छठा हिस्सा बिजली पानी से ही बनती है. लेकिन बदलते मौसम ने बारिश का मिजाज बदल दिया है. इसलिए झीलों में पानी कम हो रहा है. यानी भविष्य में बिजली उत्पादन पर भी असर होगा.
बर्बादी कब रुकेगी?
पानी की सबसे ज्यादा बर्बादी विकसित देशों में होती है. यह छोटा सा यंत्र 50 फीसदी बर्बादी बचा सकता है. ऐसी कंपनियां तेजी से बढ़ रही हैं जो पानी की बर्बादी रोकने की तकनीक विकसित करने पर काम कर रही हैं, क्योंकि भविष्य पानी का ही है.