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बीबीसी में हड़ताल

५ नवम्बर २०१०

दुनिया की सबसे बड़ी ब्रॉडकास्टिंग कंपनी बीबीसी में पत्रकार हड़ताल पर चले गए हैं. 4000 से ज्यादा सदस्यों वाली यूनियन के हड़ताल के कारण बीबीसी के कई टेलिविजन और रेडियो शो ऑफ एयर हो गए हैं.

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करीब 65 लाख श्रोता हर रोज की तरह शुक्रवार को जब बीबीसी रेडियो फोर पर अपना पसंदीदा कार्यक्रम टुडे सुनने बैठे तो उन्हें निराशा हाथ लगी क्योंकि कार्यक्रम प्रसारित ही नहीं हुआ. इसकी जगह पहले से रिकॉर्ड किया गया एक कार्यक्रम सुनाया गया. भारतीय समय के अनुसार सुबह 5:30 से पत्रकारों ने काम करना बंद कर दिया. नतीजतन टुडे जैसे कई और बड़े कार्यक्रम ऑफ एयर हो गए हैं. पत्रकारों ने पेंशन से जुड़ी अपनी मांगों को लेकर 48 घंटे की हड़ताल का एलान किया है.

BBC Auftritt von Nick Griffin Demonstranten vor dem BBC Gebäude
तस्वीर: AP

इस बीच बीबीसी के लगातार चलते रहने वाले समाचार कार्यक्रम पर भी इसका असर पड़ने की संभावना है. केवल दो मिनट का अपडेट देकर बाकी समय में पहले से तैयार रिपोर्ट और फीचर चलाए जा रहे हैं. बीबीसी के दफ्तर के बाहर हड़ताल को देखते हुए घेरेबंदी कर दी गई है. पत्रकारों ने इस महीने दो बार हड़ताल करने की योजना बनाई है. दूसरी हड़ताल 15 और 16 नवंबर को होगी.

बीबीसी प्रशासन और यूनियन के बीच चल रही बातचीत पिछले महीने टूट गई. पत्रकार यूनियन के 70 फीसदी से ज्यादा सदस्यों ने बीबीसी की पेंशन योजना को मानने से इंकार कर दिया. करीब 1.5 अरब पाउंड के पेंशन घाटे को खत्म करने के लिए बीबीसी ने पेंशन योग्य वेतन की राशि तय कर दी है जो तनख्वाह बढ़ने के साथ नहीं बढ़ेगी. पत्रकार यूनियन के महासचिव जेरेमी डियर ने कहा, "बीबीसी के यूनियन सदस्यों ने नए प्रस्ताव को पेंशनों की डकैती करार दिया है."

उधर बीबीसी की तरफ से जारी बयान में इस हड़ताल पर दुख जताया गया है. बीबीसी का कहना है कि चार दूसरी यूनियनों ने बीबीसी का प्रस्ताव मान लिया है. बीबीसी चीफ मार्क थॉम्पसन ने अपने संदेश में कहा है कि पत्रकारों को मिलने वाली पेंशन उचित है. हाल ही में सरकार ने बीबीसी के फंड में बड़ा फेरबदल किया है. बीबीसी वर्ल्ड सर्विस को अब विदेश मंत्रालय से कोई पैसा नहीं मिलेगा. बीबीसी को लाइसेंस फीस से होने वाली कमाई से वर्ल्ड सर्विस का खर्च भी उठाना होगा. ब्रिटेन के हर नागरिक रेडियो या टीवी के उपयोग के लिए लाइसेंस फीस चुकानी पड़ती है. बीबीसी की कमाई का ये सबसे बड़ा जरिया है.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः महेश झा

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