बीएमडब्ल्यू के 100 साल
अपनी स्थापना से लेकर बीते एक शतक में बीएमडब्ल्यू दुनिया का सबसे प्रसिद्ध ऑटोनिर्माता ब्रांड बन कर उभरा है. बीएमडब्ल्यू की 100वीं वर्षगांठ पर एक नजर इसके यादगार सफर में आए मील के पत्थरों पर.
पहचान
बीएमडब्ल्यू की हर गाड़ी पर दिखने वाला सफेद और नीले रंग का लोगो 100 सालों से यही है. 7 मार्च 1916 को बायरिषे फ्लूगसॉएगवेर्के (बवेरियन एयरप्लेन वर्क्स) के रूप में शुरु हुई कंपनी का नाम बाद में बायरिषे मोटोरेनवेर्के (बवेरियन मोटर वर्क्स) हो गया.
बाइक्स
सन 1923 में बीएमडब्ल्यू ने अपनी पहली मोटरसाइकिल 'आर 32' निकाली. बर्लिन मोटर शो में पेश हुई ये बाइक खूब बिकी. हवाई जहाज के इंजिन बनाने वाली कंपनी ने मोटरसाइकिलों को दो सिलिंडर वाला बॉक्सर मोटर और एक शाफ्ट वाला खास इंजिन डिजाइन दिया.
खुद बनाया
साल 1928 में कंपनी ने आइजनाख में एक वाहन फैक्ट्री का अधिग्रहण किया और वहां इंग्लैंड के लाइसेंस वाली स्थानीय कार बनाना शुरु किया. यहीं 1932 में कंपनी की पहली स्वनिर्मित कार 303s का जन्म हुआ. इसमें पहली बार गुर्दे के आकार वाली ग्रिल का इस्तेमाल हुआ, जो आज इस ब्रांड की पहचान हैं.
वायु सेना
बीएमडब्ल्यू की शुरुआत रक्षा क्षेत्र के कॉन्ट्रेक्टर के तौर पर हुई. पहले और दूसरे विश्व युद्ध में इसने जर्मन सेना के विमानों के लिए इंजिनों का निर्माण किया. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान करीब 25,000 बंधुआ मजदूरों और यातना शिविर के कैदियों से काम लेने के काले इतिहास को बाद में कंपनी ने स्वीकारा और इसके लिए मुआवजा दिया.
युद्ध के बाद
1945 के बाद बीएमडब्ल्यू ने सोवियत-नियंत्रण वाले आइजनाख में प्रोडक्शन केंद्र खो दिया. इसके बाद म्यूनिख ने सिरे से मोटरसाइकिलें बनाने का काम शुरु किया. बाइक का नया मॉडल 501 म्यूनिख से ही निकला था. इसकी घुमावदार बॉडी के कारण इसे "बारॉक एंजेल" के नाम से भी जाना जाता है.
प्यारी इसेटा
बड़ी गाड़ियों का निर्माण इतना मंहगा था कि अपना हर मॉडल बेचने से उसे करीब 4,000 जर्मन मार्क का नुकसान उठाना पड़ता था. यहां तक कि इतावली कार कंपनी इसो रिवोल्टा से लाइसेंस प्राप्त इनकी कॉम्पेक्ट कार इसेटा तेजी से बिगड़ते आर्थिक हालात की चपेट में आए बिना नहीं रह सकी.
उत्तराधिकारी
साल 1959 में दिवालियापन का संकट झेल रही बीएमडब्ल्यू को डायम्लर ने खरीद लिया. अंतिम समय में आकर उद्यमी हेरबर्ट क्वांट ने कंपनी में तमाम बदलाव कर उसे बचाने में सफलता पाई. उनकी उत्तराधिकारी दो संतानें - श्टेफान क्वांट और सुजाने क्लाटेन (2015 की इस तस्वीर में अपनी मां के साथ) - कुल मिलाकर बीएमडब्ल्यू के 47 फीसदी शेयरों के मालिक हैं. इसका मूल्य 30 अरब यूरो से भी अधिक होगा.
दूसरी शुरुआत
बीएमडब्ल्यू 1500 के रूप में सन 1961 में कंपनी ने नई डिजाइन वाला एक मिडिल क्लास कार मॉडल उतारा. कुछ बदलावों के साथ यह कार बाद में मॉडल 1600, 1800 और 2000 के रूप में बाजार में उतरी और खूब सफल हुई. अपनी दो दरवाजों वाली कार "नुल-ज्वाई" या "जीरो टू" के मॉडलों ने कंपनी को स्थाई सफलता दिलाई.
तीन का दम
बीएमडब्ल्यू का सबसे ज्यादा बिकने वाला मॉडल इसकी 3 सिरीज का हिस्सा है, जिसकी शुरुआत 1975 में हुई. छह सालों में ही इसकी दस लाख ईकाइयां निकल चुकी थीं. साल 2012 में इस लोकप्रिय सिरीज की सिक्स्थ जेनरेशन आ चुकी हैं, और सेवेंथ जेनरेशन को 2018 में लाने की योजना है.
मुख्यालय
'फोर सिलिंडर' कही जाने वाली कंपनी के नए मुख्यालय का उद्घाटन 1973 में हुआ. आज यह बवेरिया की राजधानी म्यूनिख की पहचान है. 70 और 80 के दशक में बीएमडब्ल्यू दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाले ऑटोनिर्माता थे. आज की तारीख में कंपनी के 25 उत्पादन केंद्र हैं, जो दुनिया के 14 देशों में फैले हैं. इनमें एक लाख से भी अधिक लोग काम करते हैं.
मिनी
बीएमडब्ल्यू ने 1994 में ब्रिटेन के रोवर ग्रुप को खरीदा था. छह सालों तक इस अधिग्रहण पर घाटा उठाने के बाद इसे त्याग भी दिया. उसका केवल एक ब्रांड, मिनी, बीएमडब्ल्यू के पोर्टफोलिया का हिस्सा बना रहा. 2001 से उसकी मांग बढ़ी. 2003 से तो बीएमडब्ल्यू अपनी फैक्ट्रियों में लक्जरी कारें रोल्स रॉइस भी बना रहा है.
बिजली वाली गाड़ी
इलेक्ट्रिक कारों के क्षेत्र में बीएमडब्ल्यू अपने आई3 और कार्बन फाइबर बॉडीज के साथ बाकी ब्रांडों से काफी आगे है. बड़े बड़े शहरों में लोग परंपरागत पेट्रोल और डीजल वाले इंजिनों से दूरी बनाने लगे हैं. फोल्क्सवागेन कांड के बाद से नई कारें खरीदने वालों से बीएमडब्ल्यू की इलेक्ट्रिक कारों को फायदा मिल सकता है.