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बिल नहीं भरते भारतीय

२७ नवम्बर २०१३

क्या आपने बिजली का बिल भरा है? बिजली, पानी या टेलीफोन का बिल आते ही उसे चुकाने की चिंता होने लगती है. लेकिन सर्वे बताता है कि बिल भरने में भारतीय गच्चा दे जाते हैं.

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तस्वीर: BilderBox

भारत के अलावा इसके पड़ोसी मुल्कों में भी डिफॉल्टरों की लंबी सूची है. और इसकी सबसे बड़ी वजह है पैसों की कमी. नीदरलैंड्स की कंपनी आर्टाडियुस के सर्वे में सामने आया है कि एशिया प्रशांत इलाके में सबसे ज्यादा परेशानी भारत के ग्राहकों से है, जहां करीब 7.7 फीसदी लोगों ने बिल नहीं भरे. पूरे एशिया प्रशांत इलाके में यह प्रतिशत लगभग 5.2 फीसदी है, जबकि इस मामले में जापान इलाके का सबसे अच्छा देश है, जहां सिर्फ 2.2 फीसदी बिल ही ऐसे हैं जो नहीं भरे गए.

80 दिन में बिल

कंपनी ने इस सर्वे के नतीजे इंटरनेट पर भी जारी कर दिए हैं. इसके मुताबिक बिल भरने में देरी (डीएसओ) के मामले में भारत का इलाके में बुरा रिकॉर्ड रहा है, जहां इसकी मीयाद लगभग 80 दिन है. सर्वे रिपोर्ट बताती है कि इसके मुकाबले ग्राहकों को ऑस्ट्रेलिया में आम तौर पर बिल भरने में 45, तो इंडोनेशिया में 57 दिन लगते हैं.

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विदेशी ग्राहकों से भी परेशानीतस्वीर: picture-alliance/dpa

आर्टाडियुस पेमेंट बैरोमीटर 2013 के सर्वे में भारत और चीन के अलावा हांग कांग, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और ताइवान में कंपनियों के लोगों से बातचीत की गई. पता चला कि एशिया प्रशांत में 28.4 फीसदी मामलों में लोगों ने देर से बिल जमा किया. जहां तक विदेशी ग्राहकों का सवाल था, इन कंपनियों को ज्यादा मुश्किल हुई. सिंगापुर के मामले में 35.3 प्रतिशत विदेशी ग्राहकों ने तय वक्त के बाद अपने बिल भरे.

पैसों की किल्लत

जिन कंपनियों से बात की गई, उनका कहना है कि लोगों के पास पैसों की किल्लत है और इस वजह से वे वक्त पर बिल नहीं भर पाते. यह बात सबसे ज्यादा इंडोनेशिया में उभर कर सामने आई. दूसरी तरफ विदेशी ग्राहकों से पैसे मिलने में देरी इसलिए हुई क्योंकि इसकी प्रक्रिया बहुत जटिल है. सर्वे के मुताबिक चीन को इसकी वजह से सबसे ज्यादा परेशानी उठानी पड़ी.

हालांकि सर्वे में कहा गया है कि एशिया प्रशांत इलाका अभी भी आर्थिक विकास के मामले में दुनिया में सबसे आगे चल रहा है. इस साल के अनुमान के मुताबिक यहां 4.8 फीसदी विकास होगा, जो पिछले साल के 4.7 के बराबर ही है. यहां के ज्यादातर निर्यातक देश हैं.

रिपोर्टः ए जमाल

संपादनः निखिल रंजन