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बाल अधिकारों के लिए नोबेल विजेता

Hans Sproß१० दिसम्बर २०१४

भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला युसूफजई को आज नोबेल शांति पुरस्कार सौंपा जा रहा है. सत्यार्थी बाल मजदूरी के खिलाफ लड़ रहे हैं तो मलाला ने लड़कियों को शिक्षा उपलब्ध कराए जाने में अपना जीवन लगा दिया है.

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Friedensnobelpreis 2014 Malala Yousafzai, Kailash Satyarthi
तस्वीर: Reuters/Imago

नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद डॉयचे वेले को दिए गए इंटरव्यू में कैलाश सत्यार्थी ने पुरस्कार के बारे में कहा था, " एक बड़ा सम्मान और करोड़ों नजरअंदाज बच्चों की आवाज को मान्यता." 60 वर्षीय सत्यार्थी का जन्म मध्य प्रदेश के विदिशा में हुआ. इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने प्रोफेसर की नौकरी छोड़ दी और बाल मजदूरी के खात्मे के लिए 1980 में बचपन बचाओ आंदोलन का गठन किया. पिछले तीस सालों में उनके संगठन ने कारखानों और निजी घरों से 80,000 से ज्यादा बंधुआ बाल मजदूरों को आजाद कराया है. आज उनका आंदोलन दुनिया भर में फैला है.

बच्चों के शोषण को समाप्त करने के लिए कैलाश सत्यार्थी ने महात्मा गांधी के बताए रास्ते शांतिपूर्ण प्रदर्शनों और विरोध का सहारा लिया है. नोबेल पुरस्कार समिति का कहना है कि उन्होंने बाल अधिकारों की सुरक्षा के अंतरराष्ट्रीय समझौते में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. बाल मजदूरी विरोधी आंदोलन के अनुसार गरीबी के कारण 5 से 14 साल की आयु के 12 फीसदी बच्चों के परिवार उनसे मजदूरी कराने को मजबूर हैं. सत्यार्थी का कहना है कि उनका सामना सिर्फ अमीरों और गरीबों की बढ़ती खाई से ही नहीं बल्कि संगठित अपराध से है जो मुनाफे के लिए बच्चों का शोषण करते हैं.

अपना संघर्ष बना साझा संघर्ष

17 साल की मलाला को 2013 में ही नोबेल पुरस्कार के लिए मनोनीत किया गया था लेकिन उस साल उन्हें पुरस्कार नहीं मिला. एक साल पहले तालिबान ने उन्हें मारने की कोशिश की थी और गंभीर रूप से घायल मलाला को इलाज के लिए ब्रिटेन ले जाना पड़ा था. स्वात घाटी की मलाला का कसूर था कि वह तालिबान के फरमान के बावजूद लड़कियों की शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ रही थी और स्कूल जा रही थी.

एक हफ्ते बाद होश में आने के बाद मलाला ने कहा था, "खुदा का शुक्र है मैं जिंदा हूं." अपनी आत्मकथा में मलाला ने लिखा है कि उनके मन में कोई आक्रोश नहीं था जब वे उस आदमी के बारे में सोचती हैं जिसने उस पर गोलियां चलाईं, "मैं इंतकाम नहीं लेना चाहती." इस एक घटना ने मलाला को लाखों करोड़ों लड़कियों का हीरो बना दिया जिन्हें या तो पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध नहीं है या जिन्हें पढ़ने नहीं दिया जा रहा क्योंकि वे लड़कियां हैं.

शीघ्र ही साफ हो गया कि तालिबान मलाला की आवाज चुप कराने में विफल रहा है. उन्होंने मलाला फंड बनाकर पाकिस्तान में लड़कियों को स्कूल जाने में मदद देनी शुरू की. उन्होंने कहा, "मैं चाहती हूं कि सबको पता हो, मैं अपने लिए कोई मदद नहीं चाहती. मैं सिर्फ यह चाहती हूं कि मेरे मकसद को समर्थन मिले, शांति और शिक्षा." जुलाई 2013 में मलाला ने संयुक्त राष्ट्र के युवा सम्मेलन को संबोधित किया. उन्हें पश्चिमी दुनिया में भारी समर्थन मिला और पुरस्कार दिए गए. नवंबर 2013 में ईयू का मानवाधिकार पुरस्कार शखारोव पुरस्कार दिया गया. वे नोबेल पुरस्कार पाने वाली सबसे युवा विजेता हैं.

एमजे/ओएसजे (डीडब्ल्यू)